सोमवार, अगस्त 31, 2020

कोरोना का प्रभाव: देवीदीन चंद्रवंशी

कोरोना का प्रभाव
विश्व करुण क्रन्दमय है,
हा हा कार मचा है जग मे। 
लगता युद्ध तीसरा 
है, 
प्रकृति का प्रतिकार है
रग-रग मे।। 
अति व्याकुल है निज वतन,
इस महामारी के प्रकोप
से। 
यह धरा निर्जन हो रहा है, प्रकृतिक के कोप से।। 
इस समर में जीतने की शक्ति बनाना है, 
बचना है इस कहर 
से। 
निज जीवन जीने 
का, 
सकारात्मक सोच अपनाना है।। 
अति प्रचण्ड महामारी 
से, 
मरहम नही लगा घावो
में। 
ब्यथित वेदना जीवन 
की, 
जीवन बीता अभाव
में।। 
लाखो जान गई कुर्बानी से, 
इस तण्डव से विश्व काँप रहा है। इस महामारी के भीषण ज्वाला से, 
देश सुरक्षा माँग रहा 
है।। 
बाहर नही निकलना 
है, 
विनती करो निज सदन में। 
सुखमय जीवन जीना है, 
कसक न हो तनिक इस तन मे।। 

पाठ का नाम-कोरोना का प्रभाव 

स्वरचित कविता 
देबीदीन चन्द़वँशी 
तह0पुष्पराजगढ़
जिला अनूपपुर 
म0प्र0
अतिथि शिक्षक
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गुजारिश: एफ. शिव

गुजारिश: एफ. शिव 
आसान से सवाल का, 
  आसान सा जवाब चाहता हूँ |
महकते हुए मंजर ए गुल से, 
   एक गुलाब चाहता हूँ |

 रूठो ना मेरे सवाल पर, 
     बस एक हॅसी  सा ख्वाब चाहता हूँ |
 सफर कठिन है जिंदगी का, 
    मैं तो बस तुम्हारा साथ चाहता हूँ |

 थम थम  कर चल रही है जिंदगी, 
          बस इसे परवाज चाहता हूँ |
 दो चार कदम चल कर थक जाता हूं मैं, 
         हमसफर बनने का एहसास चाहता हूँ |

 हमसफर बन  कर चलो मेरे साथ, 
       बस इसका जवाब चाहता हूँ |
 मिलकर लिखेंगे नया 
      फलसफा जिंदगी का, 
 साथ चलने के लिए, 
 बस एक हमसफर चाहता हूँ |

 मुमकिन है कि तुम दो साथ मेरा, 
 तुम्हारे साथ अपनी एक पहचान चाहता हूँ |
 क्या दोगी तुम साथ मेरा? 
 बस इसका जवाब चाहता हूँ |

                                एफ. शिव 
               शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय कटंगी
                    जिला बालाघाट मध्य प्रदेश
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देशभक्ति गीत (आल्हा-लय): राम सहोदर



देशभक्ति गीत  (आल्हा-लय)
भारत माता के दुश्मन को देंगे नाकों चना चबाय।
सरहद में की छेड़ा-छाड़ी तो हस्ती चीन की दऊ मिटाय  ॥ 
शांति पुजारी हम तब तक हैं, जब तक रहिबो हाथ मिलाय। 
दुश्मन बन यदि आँख दिखाया, तुरत ही आँख निकालू  आय॥
हमको निर्बल मत समझे तू, हमरी हस्ती समझ न पाय। 
आग्नि पुंज के हम अंगारे हैं, क्षण में तुझको देय जलाय ॥
राम कृष्ण की यह धरती है, अत्याचारी न टिक पाय।
दगाबाज तू तुच्छ दोगला, तेरा अंत निकट गया आय ॥
सुलझाने का झांसा देकर तू बार-बार देता उलझाय ।
सामत आया तेरा अब है, तेरी अकल ठिकाने नाय ॥
गुरु-चेला तुम दोनों सुन लो, पाक-चीन है कान लगाय ।
विस्तारबाद की नीति छोड़ो, गर चाहो अपना कुशलाय ॥
लैंड माफिया बनना चाहें, तेरी करम  फूट गयी हाय। 
अहंकार काफूर तुम्हारा, क्षण में ही हम देय कराय ॥
सीधी बात करें हैं जब तक, तेरे समझ में आवे नाय ।
औकात पे अपने यदि हम आ जाये, क्षण में तुझको देंय मिटाय  ॥
तुझसा टेढा यदि हम हो गए, देंगे नानी याद दिलाय ।
दगाबाज दुर्नीति दुराग्रह, इससे बाज तू आता नाय ॥
सरहद नीति उल्लंघन करता, हम पर दोष लगाता आय ।
संबंध सहोदर यदि बिगड़ा तो, चक्र-सुदर्शन देंय चलाय॥

काव्यरचना:-

राम सहोदर पटेलशिक्षक,शासकीय हाईस्कूल नगनौड़ी,गृह निवास- सनौसीथाना-ब्योहारी जिला शहडोल (मध्यप्रदेश)

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भूली बिसरी यादें (संस्मरण): मनोज कुमार चंद्रवंशी

"भूली बिसरी यादें" (संस्मरण)
             

उन दिनों की बात है। जब मैं कक्षा पांचवी में पढ़ता था। मेरे साथ मेरे सहपाठी रामशरण, मुनेश, जग्गू, जी पढ़ते थे। मेरा विद्यालय मेरे गाँव से लगभग 1 किलोमीटर दूर था। जो चारों तरफ से प्रकृति के स्वच्छंद वातावरण जंगलों से गिरा हुआ था। जहाँ की प्राकृतिक सुंदरता आज भी देखने लायक है। मैं जब भी विद्यालय का 'मनोहरी सुंदरता' की यादों को तरोताजा करता हूँ तो मेरा ह्रदय आनंदित हो उठता है। मेरी माँ मुझे हमेशा पढ़ने के लिए प्रातः 4:00 बजे उठाया करती थी। मैं नित्य क्रिया करके अध्ययन में लग जाया करता था। मेरी माँ मुझे लगभग 10:00 बजे तैयार कर टिफिन देकर विद्यालय को रवाना कर थी। माँ की अद्भुत करुणा एवं प्रेम को मैं जब भी याद करता हूँ। मेरा ह्रदय प्रफुल्लित हो जाता है।

मैं विद्यालय पहुँचकर सभी सहपाठियों से आलिंगन  करता था। फिर सभी गुरुजनों का प्रणाम करता था। इसके पश्चात प्रार्थना हुआ करता था। विद्या की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती की प्रार्थना करने के पश्चात मेरा पठन काल शुरू होता था। मेरे विद्यालय में एक ही "गुरुजी" थे जो बहुत ही 'कर्तव्यनिष्ठ' समय के पाबंद एवं बहुत ही उच्च कोटि के विचारधारा वाले थे। जिनका "छवि एवं व्यक्तित्व" आज भी मुझे झलकता हुआ दिखाई देता है। मेरे विद्यार्थी काल में गुरुजी ने मेरे सभी सहपाठियों को विद्यालय प्रांगण में क्यारी बनाने का कार्य सौंपे। हम सभी क्यारी बनाकर विभिन्न प्रकार के पुष्पीय पौधे कुछ पेड़ रोपित किए वे पेड़ पौधे आज भी अपने मनोहरी दृश्य को प्रस्तुत करते हैं।

बचपन  का समय मेरे जीवन का "अनोखा काल था।" मेरे गुरुजी मुझे जब भी गृह कार्य दिया करते। मैं सबसे पहले ग्रह कार्य पूरा करके गुरुजी के टेबल में  रख दिया करता था। मेरे इस कार्य को देखकर तालियों की गुंजायमान हुआ करता था। मुझे गुरुजी बहुत  शाबाशी दिया करते थे। गुरूजी बहुत प्रशंसा किया करते थे। "बेटा तुम बहुत आज्ञाकारी, शिष्टाचारी एवं अनुशासन प्रिय हो।" तुम बहुत ऊंचाइयों को स्पर्श करोगे। गुरुजी का आशीर्वाद मेरे जीवन के लिए स्मरणीय है।

मेरे विद्यार्थी जीवन में मेरे गुरु मेरे लिए आदर्श थे। मैं और मेरे सहपाठी  गुरु के 'उदात्त चरित्र एवं विराट व्यक्तित्व' को देखकर आपस में वार्तालाप किया करते थे। हमारे गुरु जी हमारे लिए इस दुनियाँ में "अद्वितीय" हैं। उस समय विद्यालय शिक्षा के केंद्र के साथ-साथ संस्कार का केंद्र भी हुआ करता था। जहाँ पर नैतिक,  अध्यात्मिक एवं सदाचार का पाठ पढ़ाया जाता था। वो पल मेरे लिए अविस्मरणीय है।

जब मैं सायं विद्यालय से घर आता था।मेरी माँ हृदय की आगोश में बहुत  पुचकारा करती थी।माँ की करुणा एवं वत्सल मेरे जीवन के अनमोल था। मैं जब भी "भूली बिसरी यादें" को तरोताजा करता हूँ। मेरा मन मयूर नृत्य करने लगता है।"अतीत मेरे जीवन का स्वर्णिम काल था।"

                    ✍रचना
              स्वरचित एवं मौलिक
             मनोज कुमार चंद्रवंशी
         जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश

जरा याद करो कुर्वानी (कविता)- डी.ए.प्रकाश खाण्डे



ज़रा याद करो कुर्वानी
          ===============
जो पाल पोषकर समृद्ध किया,
जीवन का सब दांव लगाकर |
दुःख--दर्दों को पीया है जिसने,
प्रेम- प्यार की नदी बहाकर |
सारी खुशियां अर्पित कर दी,
धरा धरोहर और जवानी |
उनकी गाथा क्यों भूल गए,
इनकी जरा याद करो कुर्वानी ||

वतन प्रेम पर हुए फ़िदा,
बचपन का सब खेल भूलकर |
देश प्रेम का कर्ज उतारे वीर,
फांसी फंदे में हँसते झूलकर |
राजगुरु- सुखदेव-भगत सिंह,
अब किसका लिखूं कहानी |
माँ का बेटा अजर अमर हो,
इनकी ज़रा याद करो कुर्वानी ||

जल जंगल के खातिर बिरसा,
अपनी जान गवाया था |
अपने जन और वतन के खातिर,
अंग्रेजों से युद्ध रचाया था |
गोरों को जो चना चबायी,
वो झांसी की मर्दानी |
झलकारी भी हुई शहीद,
इनकी जरा याद करो कुर्वानी ||

द्रासा और गलवान घाटी पर,
लात मारे रिपु के छाती पर |
जो मात्रभूमि पर हुए न्योछावर,
पुलवामा और सुकमा घाटी पर |
सरहद में जाकर सीना ताने हैं,
धन्य है उनकी जवानी |
सुहागिन की सुहाग अमर है,
उनकी ज़रा याद करो कुर्वानी ||

राणा की रणभूमि अमर है,
साहस शौर्य सुहावन होकर |
कवियों की काव्य अमर है,
वतन प्रेम में सुपावन होकर |
आजादी के शूर वीरों की गाथा,
उनके अंतिम साँसों की बानी |
भीमराव के उपकारित माथा,
उनकी ज़रा याद करो कुर्वानी ||

  -डी.ए.प्रकाश खाण्डे(शिक्षक)
शासकीय कन्या शिक्षा परिसर पुष्पराजगढ़,जिला-अनूपपुर मध्यप्रदेश
ईमेल- d.a.prakashkhande@gmail.com
मोबाइल नंबर -9111819182,8839212828

सोमवार, अगस्त 17, 2020

संवेदना(लघुकथा) - डी.ए.प्रकाश खाण्डे

संवेदना (लघुकथा)- डी.ए.प्रकाश खाण्डे

होली की त्यौहार कुछ ही दिन बचा था सभी जनसामान्य त्यौहार के लिए बाजार से सामाग्रियां ले रहे थे |मेरे संस्था के सभी कर्मचारियाँ भी घर जाने की तैयारी में थे,मेरा गाँव विद्यलय से बारह किलोमीटर की दूरी पर है | सुबह जाए तो साम को लौट आते है इसलिए कोई ख़ास तैयारी नहीं किये थे | विद्यालय आवासीय होने के कारण सरकारी कमरा भी मिला है जिसके देखभाल करने की वजह से त्यौहार में घर जाने का विचार नहीं बनाया था | विद्यालय की छुट्टी के बाद बाजार गया था, वहां मेरे संस्था के वर्मा बाबू मिल गए ,उन्हें बताया की आज गाँव जाउगा सुबह आना होगा | वर्मा बाबू सुनकर प्रसन्न हुए और बोले रात में ही लौटना हो तो मैं भी चलूँगा | दोनों बातचीत करते गाँव पहुँच गए, वर्मा जी घर को चारो तरफ देखे और सभी से बात करने के बाद चाय पीकर हम दोनों गाँव के एक मंदिर गए | जहां पर मेरे बचपन के मित्र एवं सहपाठी से मुलाक़ात हुआ और वह मुलाक़ात एक याद बनकर ही रह गया | मित्र जब भी मिलता था बहुत खुस और प्रसन्नचित से बात करता था,देखते ही मुझे मंडल कहकर बात करने लगे,थोड़ी सी मुलाक़ात एक याद बनकर रह गया | बात कम हो हुआ और मैंने गाँव के प्रतिष्ठित और बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी श्री महंत जी को पूंछा |

मित्र ने धीरे से बताये की "महंत जी इस समय मंदिर बहुत कम आते हैं, वे घर पर ही मिल जायेगे |"  हम श्री महंत जी के घर आगये और समाज के कुछ बाते किये | सुबह परीक्षा थी इसलिए रात में ही लौटकर आगये थे |
  होली त्यौहार के  दो - तीन दिन बाद  व्हाट्सएप पर खबर आया की किरर घाटी पर बस दुर्घटना पर तीन लोगो की मृत्यु हो गई है | जिसमे वही मित्र का नाम था जिससे मंदिर में मुलाक़ात हुआ था, विश्वास नहीं होरहा था तो मैंने खबर की पुष्टि के लिए छोटे भाई रहीस कुमार को फोन लगाया,उनका विद्यालय बाजार से लगा है इसलिए पूरी जानकारी लेकर मुझे बताये की घटना सही है |
    मेरे हृदय में पीड़ा और संताप बढ़ता ही गया ........अस्पताल पहुंचा, जहा सभी स्वजन मृत शरीर को गाडी में रख चुके थे, मेरी संवेदना की धार उमड़ कर आँखों में छलक पड़ी | आँखों में मित्र का जीवनवृत्त दिखाई देता देने लगा मेरे आँखे तिलमिला उठा की कमरा जाऊं की गाँव | विचार व्यथा को क्या व्यक्त करूँ; ये मित्र बहुत ही सरल और सच्चे स्वभाव के थे, दुःख दर्द की क्या कथा लिखूं | दसगात्र के दिन गया था - संवेदना गंभीर है,वेदना की धारा बहती जा रही है | कोरोना संक्रमण के कारण लाकडाउन चल रहा था,विकट परिस्थियों पर सामाजिक क्रियाकलाप सम्पन्न हुआ | पीड़ा पर पीड़ा बढ़ती जा रही है, बच्चे छोटे - छोटे है | मेरे निकट रिश्तेदार भी है जिससे संवेदना को ज्यादा व्यक्त कर पाने में असमर्थ हूँ | कहते है की" विपत्तियाँ आती है तो अपने सभी दरवाजे बंद करके आती है |"

शनिवार, अगस्त 15, 2020

स्वतंत्र भारत: राम सहोदर पटेल


स्वतंत्र भारत

बहुमूल्य रत्न अनेक निछाबर किये,

लाल, बाल, पाल सा विभूतियां गमाया है।

तब कहीं मिली है आजादी कठिनाई से,

अगस्त सैतालीस में स्वराज को पाया है।

जिम्मेदारी बढ़ गयी विकास आन्दोलन की,

चूसकर विदेशियों ने जमकर रुलाया है।

बाद स्वतंत्रता के अपनी सरकार बनी,

अपने हिसाब से विधान को बनाया है॥

शिक्षा प्रसार कर  दरिद्रता को दूर करें,

पंचवर्षीय योजना इक्यावन से चलाया है।

खाद्यान्न वृद्धि करें हरित  क्रांति लाकर,

मुत्युदर कमी हो औषधालय बनबाया है॥

आर्थिक प्रगति में न पीछे रहें किसी से,

सड़क, बंदरगाह, रेल निर्मित कराया है॥

भारत अखंड रहे सीमा सुरक्षित हो,

जल, थल, वायु न्यू तकनीकी अपनाया है।

आवागमन साधनों की कमी नहीं होने पाये,

रेलमार्ग सड़कों का जाल बिछवाया है॥

अंतरिक्ष मामले में हम किसी से कम नहीं,

चन्द्रमा, मंगल ग्रह में कब्ज़ा कराया है॥

महिला न पीछे हों काम और नाम करें,

भागीदारी उनका भी निश्चित कराया है।

स्वावलंबी हम बने किसी पर न आश्रित हों,

कारखाना उद्योग हमने लगाया है।

मोबाइल राज आया उसमें भी आगे रहें,

भारत को हमने डिजिटल कराया है।

राम सहोदर कहें शिक्षित, कर्मठ बनो,

जगतगुरु इण्डिया हो, अवसर फिर आया है॥

रचना: राम सहोदर पटेल, शिक्षक

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मेरा भारत देश : मनोज कुमार चंद्रवंशी

मेरा भारत देश

मेरे    प्यारा   भारत   के    स्वर्णिम    धरा   में,
जहाँ    ज्ञान    विज्ञान   का    अभ्युदय   हुआ।
ऋषि   मुनियों  का  अनुपम   दिव्य  तपस्थली,
जहाँ  गौरवशाली  संस्कृति  का  उद्भव  हुआ॥

ध्रुव,  प्रहलाद,  वीर   जवानों   की   धरती  है,
जहाँ गौतम बुद्ध,महावीर स्वामीअवतार लिए।
जिनके   कीर्तियाँ   जग   में   अतीव   अपार,
धरा में  महान विभूतियाँ अद्भुत सृजन किये॥

हिंद  भूमि    बहु    सभ्यताओं   की    पलना,
जहाँ  कला, ज्ञान, शिल्प  का अद्भुत संगम है।
गंगा, यमुना  की   कल - कल  धारा  बहती है,
जहाँ जन हिंद के गौरव को करते हृदयंगम हैं॥

भारत में अतुलित  खनिज  संपदा  का भंडार,
जहाँ की उर्वर भूमि में हीरा, सोना  उगलता है।
पवन  सी   गंगा   बहकर  खेतों  में  आती  है,
जहाँ की  वैभव दृष्टिपात कर  रिपु  जलता है॥

हिंद  के   मस्तक   में    हिमाद्रि   मुकुट  सोहे,
जहाँ   पर   सप्त   गिरि  श्रृंग  सहोदर   बहना।
अथाह  सिंधु  माँ  भारती   के  सदा  पग धुले,
वतन  के   अनुपम  सौंदर्य  को  क्या कहना॥

हिंदआदि काल से सनातन धर्म का परिपोषक,
जहाँ समरसता, सद्भाव  का  रसधार  बहा  हो।
"वसुधैव कुटुंबकम"का भाव हर भारतवासी में,
जहाँ भाईचारा,सह अस्तित्व का भाव रहा हो॥

हिंद के पुण्य भूमि में काले-गोरे का भेद नहीं,
जहाँ    पर   सभी   माँ   भारती   के   संतान।
जाती-पातीं,छुआछूत ऊँच-नीच का भेद नहीं,
जहाँ   पर  स्वतंत्रता,  समानता  एक समान॥

                ✍ रचना
          स्वरचित एवं मौलिक
         मनोज कुमार चंद्रवंशी
      जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश
    रचना दिनाँक-15/08/2020

आजादी के रंग -रजनीश(हिंदी प्रतिष्ठा)



 आजादी के रंग
               -रजनीश(हिंदी प्रतिष्ठा)
मातृभूमि नमन तुझको
जीवन का सर्वस्व समर्पण
पुष्पित रोली चंदन
 हृदय तुझे है अर्पण।

दिन माँ आज स्वतंत्रता का
नवगीत बुनाने आया
आजाद विश्व धरा में 
जैसे खग दल को चहकाने आया।

है यह आजादी उन परवानों का
है उनकी दिव्यता का पुण्य प्रताप
भारतवर्ष में हर्षोहर्ष
छायी मधुरस और हृदय प्रसाद।

उन वीरों का तिलक क्रांति
और उनका जीवन संघर्ष 
है परिणाम हमारे समक्ष
दे रहा है मान जैसे भारतवर्ष।

खून से लथपथ उनकी काया
आँखों में चित्र बनी है छाया
कितनी माओं ने बेटों से बिछड़े
और संगिनी के सुहाग हैं उजड़े।

जीवन त्याग समर्पण कर
उन वीरों ने दी आजादी के राग
अपनी माँ के हृत-पल्लव में
पलने वाले एक थे ही चिराग।

उनकी स्मृति सदा हमें
हम करते गौरव गुणगान
हृदय पटल पर अविस्मरणीय हैं वो
और हैं वो कितने दिव्य महान।

नतमस्तक विश्व उनके दिव्यता के समक्ष
उठ भाग खड़ा हो जाता भीरु, विपक्ष
उनकी प्रचण्डता के सम्मुख कोई टिक ना पाता
मौत को उन्हें जैसे गले मिलाने आता।

आज चतुर्दिक भारतवर्ष में
जयगूँज है आजादी के पर्व का
राष्ट्र पूजा में शरीक हम
विषय है गर्व का।

शहीदों के शहादत को नमन
भारत की दिव्यता और चमन
उन वीरों के प्रसाद हैं
नतमस्तक उन विभूतियों को आज हम आजाद हैं।।
            ।। जय हिन्दुस्तां
             वीरों का जहां ।।
।। जय हिंद
            जय भारत ।।


रजनीश(हिंदी प्रतिष्ठा)
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बड़े मजे हैं मेरे मालिक.pdf


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हिंदुस्तान की मिट्टी : मनोज कुमार चंद्रवंशी

"हिंदुस्तान की मिट्टी"

              हिंद की मिट्टी में  अजब सुगंध,
              स्वर्णिम  मिट्टी  धरा  की चंदन।
              जिसमें  महावीर, गौतम जन्में,
             उस मिट्टी को शत - शत वंदन॥
हिंदुस्तान की सौंधी मिट्टी का, अजर,अमर कहानी है।
मातृभूमि की रक्षार्थ, जिसमें जन्में सच्चे हिंदुस्तानी हैं॥

            इस  मिट्टी   में  शौर्य, साहसी  जन्में,
            जिन्होंने मिट्टी को रक्त रंजित किया।
            वीरों  ने   प्राणों  की  आहुति  देकर,
            अपना   सर्वस्व   बलिदान    किया॥
हिंदुस्तान की सौंधी मिट्टी का, अजर,अमर कहानी है।
मातृभूमि की रक्षार्थ, जिसमें जन्में सच्चे हिंदुस्तानी हैं॥

            धरा की रज को तिलक लगाकर,
            रणधीर रणभूमि  में उतर जाते हैं।
            वीर  रिपु  दल  का  सर्वनाश कर,
            विजय  का   पताका  फहराते हैं॥

हिंदुस्तान की सौंधी मिट्टी का, अजर,अमर कहानी है।
मातृभूमि की रक्षार्थ, जिसमें जन्में सच्चे हिंदुस्तानी हैं॥

           हिंदी की मिट्टी  पतित पावन सी,
           जिसमें मीरा,तुलसी का भक्ति है।
           हिंद  का  मिट्टी  अजब   निराली,
           जिसमें वीर शिवाजी का शक्ति है॥
हिंदुस्तान की सौंधी मिट्टी का, अजर,अमर कहानी है।
मातृभूमि की रक्षार्थ, जिसमें जन्मे सच्चे हिंदुस्तानी हैं॥

          हिंद का मिट्टी वीरों का क्रीडा  स्थल,
          जिसमें  योद्धा लहू की होली खेले हैं।
          वतन  के  स्वाभिमान  की  रक्षा हेतु,
          रणबांकुरों  नाना   यातना  झेलें  हैं॥
हिंदुस्तान की सोंधी मिट्टी का, अजर,अमर कहानी है।
मातृभूमि की रक्षार्थ, जिसमें जन्में सच्चे हिंदुस्तानी हैं॥

         हिंदुस्तान   की    उर्वर    मिट्टी   में,
         धन-धान्य  की  बालियाँ खिलते हैं।
         धरती   माँ   हरित  चुनर  ओढ़ी है,
         जहाँ  नव नित कलियाँ खिलते हैं॥ 
हिंदुस्तान की सौंधी मिट्टी का, अजर,अमर कहानी है।
मातृभूमि के रक्षार्थ, जिसमें जन्में सच्चे हिंदुस्तानी हैं॥
   ------------------------------0--------------------------

                                 रचना
                      स्वरचित एवं मौलिक
                      मनोज कुमार चंद्रवंशी
                   जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश
                  रचना दिनांक-13/08/2020

21 वीं सदी का सुदृढ़ भारत : मनोज कुमार चंद्रवंशी

21वीं सदी का सुदृढ़ भारत

मुझे चंद पंक्तियाँ याद आ रही हैं -"हम बदलेंगे युग बदलेगा,हम बदलेंगे युग धारा यह संकल्प हमारा।"
हमें सर्वप्रथम विचार क्रांति लाना होगा। भारत का स्वरूप क्या है? भारत का स्वरूप क्या होना चाहिए?
आज हम भारत के जो वर्तमान स्वरूप को देख रहे हैं क्या यही स्वरूप कल भी होगा? जी नहीं  भारत नित दिन प्रगति पथ की ओर अग्रसर हो रहा है किन्तु भारत को अविकसित क्षेत्रों के विकास में अग्रणी भूमिका निभाने की आवश्यकता है। यदि उत्कृष्ट कार्य करेगा तो निश्चित रूप से भारत विश्व के विकसित देशों की पंक्ति में जल्द ही अपना पायदान जमा लेगा। भारत कृषि के क्षेत्र में, सुरक्षा के क्षेत्र में, आयुध के क्षेत्र में, चिकित्सा के क्षेत्र में  बेहतर काम करना होगा। तभी सुदृढ भारत की संकल्पना साकार होगा।

आज भारत रक्षा के क्षेत्र में विभिन्न मिसाइलें जैसे- नाग, त्रिशूल, पृथ्वी आदि का आविष्कार कर चुका है। किन्तु भारत रक्षा के कुछ मामलों आज भी आत्मनिर्भर नही है। क्योंकि भारत देश की इस पावन भूमि में महान वैज्ञानिक, अभियंता, चिकित्सक जन्म लेते हैं। जो अपने देश के प्रति समर्पण का भाव नहीं  रखते हैं। अधिक मुनाफा के लिए अन्य देशों में पलायन कर जाते हैं। यह बहुत बड़ी विडंबना है।
देश के प्रतिभावानों को कर्तव्यनिष्ठ होना चाहिए। देश प्रगति के पथ में लाने के लिए संकल्पित होना चाहिए। भारत प्रक्षेपाशास्त्र एवं अधिक मारक क्षमता वाले वैस्टविइक मिसाइलों के निर्माण करने की आवश्यकता है।

आज भारत खगोल विज्ञान के क्षेत्र में 'चंद्रयान 1' 'चंद्रयान 2' का सफलतापूर्वक परीक्षण कर विश्व के देशों में कीर्तिमान स्थापित किया है। हम मानते हैं कि यह भारत के समर्पित, निष्ठावान, कर्मठ वैज्ञानिकों का देन है। अभी इस क्षेत्र में और उत्कृष्ट कार्य करने की आवश्यकता है। जिससे भारत एक समुन्नत राष्ट्र बन सके। संचार के क्षेत्र में संचार क्रांति लाने की आवश्यकता है। जिससे देश प्रगति के पथ पर अग्रसर हो। भारत के वैज्ञानिकों ने सिद्धार्थ, परम जैसी अत्यधिक गति से चलने वाली कंप्यूटरों का निर्माण कर  विश्व में कीर्तिमान स्थापित किया है। नेटवर्क का संजाल बिछ दिया है। लेकिन अभी भी इस क्षेत्र में  अत्यधिक  कार्य करने की आवश्यकता है। भारत में   पूर्ण रूप से डिजिटलीकरण बनाने की आवश्यकता है। हर गांव से  शहर तक बैंकिंग व्यवस्था, सड़क की व्यवस्था, पानी की व्यवस्था आवागमन के साधन की व्यवस्था, शिक्षा की व्यवस्था उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।

हम भारत की बेरोजगारी एवं निर्धनता की ओर ध्यान केंद्रित करते हैं तो हमें पता चलता है कि भारत में आज भी निर्धनता की समस्या बहुत ज्यादा है। लोग जीविकोपार्जन के साधन ढूंढने के लिए गांव से शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। भारत में निर्धनता का आंकड़ा 27•5% हैं।यदि बेरोजगारी का आकलन करें तो भारत में बेरोजगारों की संख्या ग्रामीण क्षेत्र में 5•3% हैं। तथा शहरी क्षेत्र में 7•8% है जो कि अन्य देशों की तुलना में बहुत ज्यादा है। भारत में गरीबी दूर करने के लिए भारत सरकार के द्वारा निर्धनता उन्मूलन कार्यक्रम चलाया जाये। बेरोजगारी को दूर करने के लिए योजनाओं का क्रियान्वयन किया जाये। भारत के बेरोजगार नवयुवकों को बेरोजगारी भत्ता देने का प्रावधान किया जाये। तब एक सुंदर एवं सशक्त भारत का निर्माण हो सकता है।

आज भारत में घरेलू हिंसा दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है भारतीय संविधान में घरेलू हिंसा अधिनियम ने बनाया  जाये तथा समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने के लिए भी अहम कदम उठाया जाये।आज देश में बलात्कार, अपहरण, तलाक जैसी घटित घटना  और रोजमर्रा की जिंदगी में देखने को मिलता है इन समस्याओं के निदान के लिए विभिन्न अपराध रोधी कानून बनाया जाय।जिससे महिलाएं यौन उत्पीड़न के शिकार न हो। भारतीय दंड संहिता में बने कानून  अक्षरशः लागू किया जाए। जिससे महिलाएं का संरक्षण हो सके एवं उनका स्वाभिमान जागृत हो सके।

यदि भारत के स्वर्णिम सपनों को साकार करना है।  सभी क्षेत्रों में अधिक से अधिक विकास के कार्य किया जाए तो निश्चित रूप भारत प्रगति के पथ पर और तीव्र गति से अग्रसर होगा। भारत को विभिन्न क्षेत्रों कीर्तिमान स्थापित करने की आवश्यकता है।ताकि भारत विकसित देशों की पहली पंक्ति में खड़ा हो सके।
भारत को समृद्ध एवं खुशहाल बनाने के लिए हमारा भी योगदान महत्वपूर्ण है। हमें भी तटस्थ रहकर भारत को विकसित राष्ट्र बनाने में अहम योगदान  देना चाहिए।
            सशक्त भारत समृद्ध भारत।
            सुदृढ़ भारत खुशहाल भारत।
                 जय हिंद जय भारत।

                       ✍आलेख
                  स्वरचित एवं मौलिक
                   मनोज कुमार चंद्रवंशी
                          (शिक्षक)
                जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश

सोमवार, अगस्त 03, 2020

रक्षाबंधन: अविनाश सिंह

रक्षाबंधन

*******
राखी के बंधन में बंध कर
भाई खूब है इठलाता
बहिन तेरी मैं रक्षा करूंगा
वचन यही है दोहराता।
भाई बहिन के सम्बंध में
आई है आज बहार
राखी के धागों में बंधु
होता बहिन का प्यार।
इन धागों पर न्योछावर 
खुशियां कई हजार
बाँध के धागा प्रेम का
मनाये हर वर्ष हर बार।

अविनाश सिंह
8010017450
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~राखी का मूल्य~ : मनोज कुमार चंद्रवंशी

~ राखी का मूल्य~

वतन का प्रहरी  बनकर अपना कर्तव्य निभाना  भैया।
स्वर्णिम स्वप्न सजायी हूँ राखी का मूल्य चुकाना भैया॥

       भाई-बहन का  प्यार न रहे  अधूरा,
       हृदय में  कुछ अरमान  सजायी हूँ।
       अडिग रहो विकट परिस्थितियों में,
       प्रेम का रक्षा कवच लेकर आयी हूँ॥

वतन का प्रहरी बनकर अपना कर्तव्य निभाना भैया।
कुछ अरमान  सजायी हूँ  राखी  में तुम  आना भैया॥

        सजल   नयन  टकटकी  लगाए,
        राह   निरखि  रही   हूँ   बारंबार।
        अनमोल पवन  रिश्तों का बंधन,
        भैया तुम हो मेरी जीवन पतवार॥

वतन का प्रहरी बनकर अपना कर्तव्य निभाना भैया।
स्वर्णिम स्वप्न सजायी  हूँ  राखी  में  तुम आना भैया॥

          कर्तव्य मार्ग  में  अविचल अटल,
          राखी के बंधन को निभाना भैया।
          दृढ़  संकल्प  का  गाँठ  बांधकर,
          स्नेह छाया  से दूर न जाना भैया॥

वतन का प्रहरी बनकर अपना कर्तव्य  निभाना भैया।
कुछ  अरमान  सजायी हूँ  राखी  में तुम  आना भैया॥

          सरहद  से  कब  आओगे  भैया,
          राखी का सुंदर थाल सजायी हूँ।
          पावन  रिश्तों   का  डोर  बांधने,
          तुम्हारे   आंगन   में   आयी   हूँ॥

वतन का प्रहरी बनकर अपना कर्तव्य निभाना भैया।
स्वर्णिम सपना सजायी हूँ  राखी  में तुम आना भैया॥

                         रचना✍
                स्वरचित एवं मौलिक
               मनोज कुमार चंद्रवंशी
            जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश
           रचना दिनाँक-02|08|2020

रविवार, अगस्त 02, 2020

बाबूजी सच कहूं: कोमल चंद



बाबूजी सच कहूं
 
अन्न उगाते हम 
भूखे भी हम 
बांध बनाए हम 
प्यासे भी हम। 
स्कूल बनाए हम 
अनपढ़ भी हम 
कपास उगाते हम 
नंगे भी हम। 

मकान बनाए हम 
बेघर भी हम 
अस्पताल बनाए हम 
मरते भी हम। 
हमनें अपना दुख कह दिया 
तुम्हारे महलों में हमारे चिन्ह 
फिर भी हम तुमसे भिन्न ... 
हमारा हिस्सा ..... 
हमें लौटा जाओ, 
कहीं ऐसा ना हो, 
इस धरा में अकेले रह जाओ। 
सोचता हूं चला जाऊं बचपन में 
बनाकर टोलियां खूब खेलू खेल, 
जो हमारा हक छीनते हैं, 
उन्हें भेज दूं जेल। 
सोनू,मोनू, दीनू, दुखिया, 
सब होंगे अधिकारी 
बिजली-पानी राशन 
आवास योजना..... 
सबकी होगी इंक्वायरी 
नहीं बचेंगे शोषणकारी। 
ना रहेगी अंधेर नगरी, 
ना होगा चौपट राज, 
फांसी का फंदा नया बनेगा, 
अपराधी उसमें जरूर चढ़ेगा। 
फर्जी योजना बंद करेंगे, 
जनहित के काम करेंगे। 
भूखा,नंगा, घर बिन आटा, 
उसको कहां मिलेगा डाटा। 
यह योजना बेकार, 
इसको बंद करेंगे। 
बचपन है खुशहाल, 
वहीं हम राज करेंगे। 

10 
शोषण करने वालों को, 
कभी ना हम माफ करेंगे। 

(उक्त रचना मेरी मौलिक रचना है) 
कोमल चंद कुशवाहा 
शोधार्थी हिंदी 
अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा 

मोबाइल 7610 1035 89 [इस ब्लॉग में रचना प्रकाशन हेतु कृपया हमें 📳 akbs980@gmail.com पर इमेल करें अथवा ✆ 8982161035 नंबर पर व्हाट्सप करें, कृपया देखें-नियमावली

मैं पर्यावरण हूँ :कोमल चंद


मैं पर्यावरण हूँ 

1 

मैं पर्यावरण हूं 
मैं सृजन करता हूं 
मैं निर्माता और संहारक हूं 
मैं रोग और औषधि हूं 
मैं पर्यावरण हूं। 


मैं जल, जमीन, जंगल हूं 
मैं साकार भी हूं निराकार भी हूं 
मैं जन्म, जवानी, ज़र हूं 
मैं दसों दिशाएं हूं 
मैं पर्यावरण हूं। 


मैं चांद, तारा, सूरज हूं 
मैं जल,थल, नभ हूं 
मैं सृष्टि का कण-कण हूं 
मैं आचार,विचार,संस्कृति हूं 
मैं पर्यावरण हूं। 


मैं मित्र भी और शत्रु भी हूं 
मैं जीवन का रंग हूं 
मैं जागरण और निद्रा हूं 
मैं सृष्टि का नियंता हूं 
मैं पर्यावरण हूं। 


मैं एक चक्र हूं 
मैं अनवरत चलता हूं 
मैं क्षमाशील सरूप हूं 
मैं महाकाल कुरूप हूं 
मैं पर्यावरण हूं। 

6 

मेरा संतुलन बिगड़े तो 
मैं प्रलय विनाश हूं 
मैं अति का अंत हूं 
मैं सर्वशक्तिमान हूं 
मैं पर्यावरण हूं। 


मैं कर्ता और अकर्ता हूं 
मैं समाधिस्थ हूं 
मैं आशुतोष हूं 
प्राकृतिक संसाधन मेरे अंग है 
मैं पर्यावरण हूं। 

स्वार्थी बन निचोड़ो तो 
मैं महाकाल महाविनाश हूं 
मै बंधन मुक्त त्रिनेत्र हूं 
मैं ही शाश्वत सत्य हूं 
मैं पर्यावरण हूं। 
मुझे मत छेड़ो मैं मित्र हूं 
तुम्हारे लिए कवच कुण्डल हूं 
मेरी सुरक्षा में तुम्हारी सुरक्षा है 
मैं ही अंतिम सत्य हूं 
मैं पर्यावरण हूं।

10 
मैं प्रकृति रूप हूं 
मैं मां की गोद हूं 
मैं रिश्तो की डोर हूं 
मैं तुम्हारी श्ववास हूं 
मैं पर्यावरण हूं। 

11 
हे मनुज सब छोड़कर 
मेरी शरण में आजा 
मैं नहीं तो सब निर्जन है 
मैं ही आदि और अंत हूं 
मैं पर्यावरण हूं। 
(उक्त काव्य रचना मेरी मौलिक रचना है) 
कोमल चंद कुशवाहा 
शोधार्थी हिंदी 
अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा 
मोबाइल 7610 1035 89 

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सन्देश (कविता): कोमल चंद


संदेश

बहुत दिनों से घर भीतर,
बच्चे रोते रहते हैं।
बहुत दिनों से गांव मोहल्ले,
पनघट सूने रहते हैं।

हे! बादल, उनकी पुकार सुनना,
मेरे देश का हर गरीब भूखा है।
तुम इस बरस खुशी से बरसना,
उनकी पुकार सुनना।
मेरी इच्छा पूरी करना।

अन्न- धन की हो खुशहाली
सबके चेहरे हों प्रभात की लाली
जो तप कर झुलस गए सड़कों पर
अपनी बौछारें रखना तन पर।

सूने कंधे, सूनी गोद,
भर दो इनके जीवन में प्रमोद।
उन्हें पुराने दिन लौटा दो,
अच्छे दिन ठीक नहीं है।
इनसे कोई सुखी नहीं है।

हे! बादल, उनकी पुकार सुनना,
ताल, तलैया और उपवन,
खेत, क्यारी हर अंगना,
मेरा भी उनको संदेशा कहना।

यह आपदा का समय,
वक्त का फैसला है।
कुछ गुनाहों की सजा है।
आपत्ति किसी एक पर नहीं,
देश-विदेश मानवता पर है।

ध्यान रखना आदमी ही,
आदमी के काम आता है।
बीत गई सदियां....
कोई दैवीय शक्ति नहीं आई,
बस मानव ने मानव की जान बचाई।

भूख! प्रथम सत्य है,
इससे बड़ा रोग नहीं है।
पता करो पड़ोस में,
कोई भूखा तो नहीं है।
मानव का यही धर्म है,
अन्यथा मनुष्य भी पशु है।

लोभ- लाभ को छोड़कर,
भावनाओं से जुड़ना।
तय करो मानव बन कर,
तुम द्रोपदी के पक्ष में हो,
कि दुशासन के पक्ष में।
कोई बेसहारा तो नहीं है,
आपत्ति का मारा तो नहीं है।

विज्ञान को भी बता देना,
जो शांत सोया हुआ है।
यहां सबने कुछ खोया हुआ है।
प्रकृति से हस्तक्षेप,
महंगा पड़ेगा....
शराब ने अभी हाथ धुलवाया,
जागो जन जागो, जागो.....
अभी ना जागे तो,
शराब से नहाना पड़ेगा।

(मौलिक एवं स्वरचित)
कोमल चंद कुशवाहा
शोधार्थी हिंदी
अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा
मोबाइल 7610 1035 89

सावन के दोहे: कोमल चंद

              

सावन के दोहे

सावन में बादल चढ़ा, बढ़ा प्रकृति का रंग।
चली झूलना झूलने,सखी सखी के संग।।1।।

साधे हल की मूठ को, चलता रहा किसान।
कजरी अरु कीच दोऊ, बंदन चंदन जान।।2।।

पिक दादुर अरु मोरनी, गीत नृत्य कर जाय।
ऐसा सावन माह है, मनभावन कर जाय।।3।।

बरसे बादल प्रेम का, गोरी करे श्र्ंगार।
मनमंदिर हो प्रेम का, पिय मूरत अनुहार।।4।।

आशा है नैहर चलू, लॉकडाउन ब शूल।
भइया इस त्यौहार में, करना मास्क कुबूल।।5।।

सूनी रहें कलाइयां, रखो न मन में  द्वन्द।
  सेनेटाइज हाथ हों,मुंह को रखना बंद।।6।।

त्योहारों में घर रहो, लोगों से भी दूर।
 भइया मेरे हृदय के, तुम हो असली नूर।।7।।

आएंगे त्योहार बहू, जीवन में बहु बार।
आशा से आकाश है, जीवन एकै बार।।8।।

संकट से दूरी रखो, कहती ऐसा नीति।
संकट जब टल जाएगा, होगी सबसे प्रीति।।9।।

अपनी रक्षा आप करो, अपनो की‌ भी  आप।
अपनी अपनी सब करें, कहता  बूढ़ा बाप।।10।।

सूनी डाली आम की, सूना आंगन द्वार।
सूनी सखी श्रृंगार से, ऐसी लगी बयार।।11।।

कोमल आपद काल में, रहिए सबसे दूर।
ना जाने किस रूप में, मिले करोना क्रूर।।12।।
(मौलिक एवं स्वरचित)
कोमल चंद कुशवाहा, शोधार्थी,
हिंदी अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा
 म प्र मोबाइल 7610 1035 89

हाइकु:-विषय-दोस्ती: अविनाश सिंह

हाइकु:-विषय-दोस्ती
*******
दोस्ती दिवस
आता साल में एक
लगे फरेब।

मित्र बनाओ
मन से अपनाओ
साथ निभाओ।

दोस्त हो ऐसा
बिन आंख वो देखे
तुम्हारे आँसू।

मित्र हो ऐसा
न करे भेदभाव
रहे समान।

दोस्ती हो ऐसी
कृष्ण सुदामा जैसी
देखें दुनिया।

सुख या दुःख
हो आंखों के सम्मुख
सच्चा वो मित्र।

सच के साथ
आजीवन चलता
दोस्ती का रिश्ता।

पिता का हाथ
दोस्त का दिया साथ
रहे हमेशा।

धूप में छाव
मुसीबत में साथ
रहते दोस्त।

दोस्त की बात
रहे हमेशा याद
होते है खास।

 जो हँसा देता
आँसू को सुखा देता
वही हैं मित्र।

लगाता गले
पढ़े दिल की बात
असली मित्र।

सच्ची मित्रता
दूर करता शूल
बिछाए फूल।

बाँट लो दुःख
खोल दो हर राज
दोस्तों के बीच।

मित्रता होती
सहारा जीवन का
भूल न यारा।

रखना तुम
पवित्रता से रिश्ता
चलेगी दोस्ती।

कैसे हो मित्र
जैसे भी रहे मित्र
मन पवित्र।

रहे जो साथ
पर्वत सा अडिग
वही है मित्र।

बीते जो पल
बचपन की याद
कैसे भुलाऊँ।

भूले न भूले
बचपन की बात
थे दोस्त साथ।

गिरने न दे
कभी झुकने न दे
वो यार दोस्त।

करो झगड़ा
हो जाना फिर साथ
यही है दोस्ती।

दोस्ती का धागा
मोतियों से पिरोना
दिखे सुंदर।

अविनाश सिंह
8010017450
मित्रता दिवस की ढेरों शुभकामनाएं
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"गीत मल्हार"-मनोज कुमार चंद्रवंशी

"गीत मल्हार"

पिया गए  परदेश  सुनसान  हृदय  आँगन।
स्निग्ध  स्मित  नीरस   बिन  प्रिय  साजन॥
              कैसे गाऊँ मैं गीत मल्हार।

निष्ठुर  काली   कोयलिया  कुहुक  रही  है।
हृदय में अंतर्द्वंद कंठ स्वांस  सूख  रही  है॥
             कैसे गाऊँ मैं  गीत मल्हार।

दर्द  भरा  है  बदन  में सदन में  हूँ  अकेली।
हिंडोला झूलते दृष्टिगोचर न कोई अलबेली॥
              कैसे गाऊँ  मैं गीत मल्हार।

आशा  की  असंख्य  रश्मियाँ  बुझ  चुकी  है।
अब  स्वांस  डोर  अधर   में   रुक  चुकी   है॥
            कैसे गाऊँ मैं  गीत मल्हार।
क्रोध अग्नि ज्वलित हिय  में  मन  है बेहाल।
नित  दिन खटक  रहा कोरोना का  जंजाल॥
            कैसे गाऊँ मैं  गीत मल्हार।

बंद पड़े  हैं  मंदिर,  मस्जिद,  चर्च,  गुरुद्वारे।
चारु  चंचल  चित्त  स्थिर   मन  के  हूँ  मारे॥
          कैसे गाऊँ मैं  गीत मल्हार।
सावन  कजरिया  की  सुन मधुर  सुर ताल।
मन विक्षिप्त  तन अग्नि  ज्वलंत विकराल॥
         कैसे गाऊँ मैं  गीत मल्हार।

असहनीय कसक  सकल बदन अकुलाए।
स्वर्णिम  स्वप्न  अधूरी  कुछ  न  मन भाये॥
          कैसे गाऊँ मैं  गीत मल्हार।
सजल नयन टकटकी  पिय पथ की ओर।
सुहागन उजड़ा मिटा  काजल  दृग  कोर॥
        कैसे गाऊँ  मैं  गीत मल्हार।

पग रंग  बिरंगी  महावर  फीकी  पड़ गई।
अब हाथों की सुवासित  मेहंदी मिट गई॥
         कैसे गाऊँ मैं  गीत मल्हार।

                  रचना✍
        स्वरचित एवं मौलिक
       मनोज कुमार चंद्रवंशी
     जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश
    रचना दिनाँक-25/07/2020
नोट- मैं घोषणा करता हूँ कि मेरा यह रचना अप्रकाशित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित है।
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*रिश्तों का बंधन राखी* : मनोज कुमार चंद्रवंशी

*रिश्तों का बंधन राखी*

अटूट  पावन   रिश्तों   का   पर्व  राखी,
अनुराग, समर्पण   का  अनुपम  बंधन।
रक्षा सूत्र से कलाइयाँ  पावन   होती  हैं,
मस्तक  शुभग  शुचि   कुमकुम  चंदन॥

दृढ़  प्रतिज्ञा  हो  निज  हृदय  पटल  में,
सहोदरा   विकट  काल में रक्षा  हो।
प्रेम समर्पण हो नित  प्रगाढ़ संबंधों में,
सुहागिन  बहन की  प्राणों  से  रक्षा हो॥

पुनीत  सनेह  सुमन  प्रस्फुटित   हुआ।
भगिनी  की  निर्मल  हृदय  आँगन  में,
नेह गंध से सुवासित  हृदय का  कोना,
तन,मन प्रमुदित स्नेह के अवलंबन में॥

भ्रातृत्व भाव सदा बना रहे  जीवन में,
सहोदरा दैव यही  कामना करती है।
भाई अडिग रहे  सदा विकट घड़ी  में,
भाई के दीर्घायु  का   विनय  करती है॥

अनुजा के लिए रक्षा अमूल्य उपहार,
सदा  स्वर्णिम  चिर स्वप्न  सजाती है।
खुशहाल   हो   मेरे   भाई   प्रतिपल,
भगिनी का नित यही भाव सुहाता  है॥

हे!  भगिनी  शपथ है  मातृभूमि   की,
मैं  तन्मयता  से  कर्तव्य  निभाऊँगा।
समरसता, सद्भाव सदा  रहे  हृदय में,
वतन  के  रक्षार्थ बलि-बलि जाऊँगा॥

त्याग,  समर्पण   संकट की   घड़ी  में,
प्रेम,करूणा,सौहार्द हृदय सेअर्पित है।
निजता  का  भाव मिटा कर हृदय  से,
तन, मन, वतन  के  लिए  समर्पित है॥

विपदाओं में  कर्तव्य  पथ  में  अटल,
पावन रिश्तों को दृढ़ता से निभाना है।
भगिनी,  माँ   भारती  के  सम्मान  में,
पावन रक्षा सूत्र का मूल्य  चुकाना है॥
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                   रचना✍
        स्वरचित एवं मौलिक
        मनोज कुमार चंद्रवंशी
     जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश
नोट- मैं घोषणा करता हूँ कि मेरा यह रचना अप्रकाशित एवं अप्रसारित सर्वाधिकार सुरक्षित है।

मुंशी प्रेम चंद - डी .ए.प्रकाश खाण्डे



उपन्यास एवं कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी - डी .ए.प्रकाश खाण्डे

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मुंशी प्रेमचन्द हिन्दी साहित्य के प्रख्यात कहानीकार व उपन्यासकार हैं। बचपन से ही उनको साहित्य पढ़ने-लिखने में रुचि थी और अपनी रुचि के अनुसार वे छोटे उपन्यास भी पढ़ा करते थे। प्रेमचन्द जी अपने कार्यों को लेकर बचपन से ही सक्रिय थे।बहुत मुश्किलों और संघर्षों के बाद भी वे निरन्तर अपनी लेखनी चलाते रहे। मुंशीप्रेमचन्द जी प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने अपनी लेखनी से हिन्दी साहित्य की काया ही पलट दी। प्रेमचन्द जी का मूल नाम धनपत राय श्रीवास्तव, प्रेमचंद को नवाब राय और मुंशी प्रेमचंद के नाम से भी जाना जाता है। उपन्यास के क्षेत्र में उनके योगदान को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया। आगामी एक पूरी पीढ़ी को गहराई तक प्रभावित कर प्रेमचंद ने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी। उनका लेखन हिन्दी साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बिना हिन्दी के विकास का अध्ययन अधूरा होगा। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी (विद्वान) संपादक थे। बीसवीं शती के पूर्वार्द्ध में, जब हिन्दी में तकनीकी सुविधाओं का अभाव था,उनका योगदान अतुलनीय है। प्रेमचंद के बाद जिन लोगों ने साहित्य को सामाजिक सरोकारों और प्रगतिशील मूल्यों के साथ आगे बढ़ाने का काम किया,उनमें यशपाल से लेकर मुक्तिबोध तक शामिल हैं। उनके पुत्र हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार अमृतराय हैं जिन्होंने इन्हें कलम का सिपाही नाम दिया था।

जीवन परिचय

  मुंशी प्रेमचंद जी का जन्म वाराणसी के निकट लमही गाँव में  31 जुलाई 1j880 को हुआ था। उनकी माता का नाम आनन्दी देवी तथा पिता का नाम  अजायबराय था | इनके पिताजी लमही में डाकमुंशी थे। सात वर्ष की आयु में माता जी का देहांत हो गया एवं चौदह वर्ष की आयु में पिता का देहांत हो गया |

शिक्षा :-

प्रेमचंद जी के प्रारम्भिक शिक्षा का आरंभ उर्दू, फारसी से हुआ और पढ़ने की रूचि उन्‍हें बचपन से ही था।तेरह साल की उम्र में ही उन्‍होंने तिलिस्म-ए-होशरुबा पढ़ लिया था | 1898   में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक नियुक्त हो गए। नौकरी के साथ ही उन्होंने पढ़ाई जारी रखी।  1910  में उन्‍होंने अंग्रेजी, दmर्शन, फारसी और इतिहास लेकर इंटर पास किया और 1919  में बी.ए. पास करने के बाद शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर पद पर नियुक्त हुए।

विवाह :-

प्रेमचंदजी का पहला विवाह परंपरा के अनुसार पंद्रह साल की उम्र में सन 1895 में हुआ था और 1906 में दूसरा विवाह बाल-विधवा शिवरानी देवी से किया। उनकी तीन संताने हुईं- श्रीपत राय, अमृत राय और कमला देवी श्रीवास्तव।

साहित्य एवं लेखन में रूचि :-

साहित्य के क्षेत्र में इनकी रूचि बचपन से ही था, 1910  में उनकी रचना 'सोज़े-वतन'प्रकाशित हुआ | ब्रिट्रिश काल में हमीरपुर के जिला कलेक्टर ने प्रेमचंद को बुलाया और उन पर जनता को उकसाने  का आरोप लगाया। सोजे-वतन की सभी प्रतियाँ जब्त कर नष्ट कर दी गईं। कलेक्टर ने नवाबराय को हिदायत दी कि अब वे कुछ भी नहीं लिखेंगे, यदि लिखा तो जेल भेज दिया जाएगा। इस समय तक प्रेमचंद, धनपत राय नाम से लिखते थे। उर्दू में प्रकाशित होने वाली ज़माना पत्रिका के सम्पादक और उनके अजीज दोस्‍त मुंशी दयानारायण निगम ने उन्हें प्रेमचंद नाम से लिखने की सलाह दी। इसके बाद वे प्रेमचन्द के नाम से लिखने लगे। उन्‍होंने आरंभिक लेखन ज़माना पत्रिका में ही किया।

मृत्यु :-

जीवन के अंतिम दिनों में वे गंभीर रूप से बीमार पड़े। उनका उपन्यास मंगलसूत्र पूरा नहीं हो सका,उनके पुत्र अमृत राय ने इस उपन्यास को पूरा किया |  08  अक्टूबर सन 1936  को उनका निधन हो गया।

लेखन :-

प्रेमचन्द की रचना-दृष्टि विभिन्न साहित्य रूपों में प्रवृत्त हुई। बहुमुखी प्रतिभा संपन्न प्रेमचंद ने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, सम्पादकीय, संस्मरण आदि अनेक विधाओं में साहित्य की सृष्टि की। प्रमुखतया उनकी ख्याति कथाकार के तौर पर हुई और अपने जीवन काल में ही वे 'उपन्यास सम्राट' की उपाधि से सम्मानित हुए। उन्होंने कुल 15 उपन्यास, 300 से कुछ अधिक कहानियाँ, 3 नाटक, 10अनुवाद, 7 बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की लेकिन जो यश और प्रतिष्ठा उन्हें उपन्यास और कहानियों से प्राप्त हुई, वह अन्य विधाओं से प्राप्त न हो सकी। यह स्थिति हिन्दी और उर्दू भाषा दोनों में समान रूप से दिखायी देती है।

उपन्‍यास:-

प्रेमचंद के उपन्‍यास न केवल हिन्‍दी उपन्‍यास साहित्‍य में बल्कि संपूर्ण भारतीय साहित्‍य में मील के पत्‍थर हैं। प्रेमचन्द कथा-साहित्य में उनके उपन्यासकार का आरम्भ पहले होता है। उनका पहला उर्दू उपन्यास (अपूर्ण) 'असरारे मआबिद उर्फ़ देवस्थान रहस्य' उर्दू साप्ताहिक ''आवाज-ए-खल्क़'' में 8 अक्टूबर, 1903 से 01 फरवरी, 1905 तक धारावाहिक रूप में प्रकाशित हुआ। उनका दूसरा उपन्‍यास 'हमखुर्मा व हमसवाब' जिसका हिंदी रूपांतरण 'प्रेमा' नाम से 1907 में प्रकाशित हुआ। चूंकि प्रेमचंद मूल रूप से उर्दू के लेखक थे और उर्दू से हिंदी में आए थे, इसलिए उनके सभी आरंभिक उपन्‍यास मूल रूप से उर्दू में लिखे गए और बाद में उनका हिन्‍दी तर्जुमा किया गया। उन्‍होंने 'सेवासदन' (1918) उपन्‍यास से हिंदी उपन्‍यास की दुनिया में प्रवेश किया। यह मूल रूप से उन्‍होंने 'बाजारे-हुस्‍न' नाम से पहले उर्दू में लिखा लेकिन इसका हिंदी रूप 'सेवासदन' पहले प्रकाशित कराया। 'सेवासदन' एक नारी के वेश्‍या बनने की कहानी है। डॉ रामविलास शर्मा के अनुसार 'सेवासदन' में व्‍यक्‍त मुख्‍य समस्‍या भारतीय नारी की पराधीनता है। इसके बाद किसान जीवन पर उनका पहला उपन्‍यास 'प्रेमाश्रम' (1921) आया। इसका मसौदा भी पहले उर्दू में 'गोशाए-आफियत' नाम से तैयार हुआ था लेकिन 'सेवासदन' की भांति इसे पहले हिंदी में प्रकाशित कराया। 'प्रेमाश्रम' किसान जीवन पर लिखा हिंदी का संभवतः पहला उपन्‍यास है। यह अवध के किसान आंदोलनों के दौर में लिखा गया। इसके बाद 'रंगभूमि' (1925), 'कायाकल्‍प' (1926), 'निर्मला' (1927), 'गबन' (1931), 'कर्मभूमि' (1932) से होता हुआ यह सफर 'गोदान' (1936) तक पूर्णता को प्राप्‍त हुआ। रंगभूमि में प्रेमचंद एक अंधे भिखारी सूरदास को कथा का नायक बनाकर हिंदी कथा साहित्‍य में क्रांतिकारी बदलाव का सूत्रपात कर चुके थे। गोदान का हिंदी साहित्‍य ही नहीं, विश्‍व साहित्‍य में महत्‍वपूर्ण स्‍थान है। इसमें प्रेमचंद की साहित्‍य संबंधी विचारधारा 'आदर्शोन्‍मुख यथार्थवाद' से 'आलोचनात्‍मक यथार्थवाद' तक की पूर्णता प्राप्‍त करती है। एक सामान्‍य किसान को पूरे उपन्‍यास का नायक बनाना भारतीय उपन्‍यास परंपरा की दिशा बदल देने जैसा था। सामंतवाद और पूंजीवाद के चक्र में फंसकर हुई कथानायक होरी की मृत्‍यु पाठकों के जहन को झकझोर कर रख जाती है। किसान जीवन पर अपने पिछले उपन्‍यासों 'प्रेमाश्रम' और 'कर्मभूमि' में प्रेमंचद यथार्थ की प्रस्‍तुति करते-करते उपन्‍यास के अंत तक आदर्श का दामन थाम लेते हैं। लेकिन गोदान का कारुणिक अंत इस बात का गवाह है कि तब तक प्रेमचंद का आदर्शवाद से मोहभंग हो चुका था। यह उनकी आखिरी दौर की कहानियों में भी देखा जा सकता है। 'मंगलसूत्र' प्रेमचंद का अधूरा उपन्‍यास है। प्रेमचंद के उपन्‍यासों का मूल कथ्‍य भारतीय ग्रामीण जीवन था। प्रेमचंद ने हिंदी उपन्‍यास को जो ऊँचाई प्रदान की, वह परवर्ती उपन्‍यासकारों के लिए एक चुनौती बनी रही। प्रेमचंद के उपन्‍यास भारत और दुनिया की कई भाषाओं में अनुदित हुए, खासकर उनका सर्वाधिक चर्चित उपन्‍यास गोदान। सेवासदन , प्रेमाश्रम, रंगभूमि , निर्मला , कायाकल्प , गबन , कर्मभूमि , गोदान, मंगलसूत्र (अपूर्ण), प्रतिज्ञा, प्रेमा, रंगभूमि, मनोरमा, वरदान

उनके जीवन काल में कुल नौ कहानी संग्रह प्रकाशित हुए- सोज़े वतन, 'सप्‍त सरोज', 'नवनिधि', 'प्रेमपूर्णिमा', 'प्रेम-पचीसी', 'प्रेम-प्रतिमा', 'प्रेम-द्वादशी', 'समरयात्रा', 'मानसरोवर' : भाग एक व दो और 'कफन'। उनकी मृत्‍यु के बाद उनकी कहानियाँ 'मानसरोवर' शीर्षक से 8 भागों में प्रकाशित हुई। प्रेमचंद साहित्‍य के मु्दराधिकार से मुक्‍त होते ही विभिन्न संपादकों और प्रकाशकों ने प्रेमचंद की कहानियों के संकलन तैयार कर प्रकाशित कराए। उन्होंने मनुष्य के सभी वर्गों से लेकर पशु-पक्षियों तक को अपनी कहानियों में मुख्य पात्र बनाया है। उनकी कहानियों में किसानों, मजदूरों, स्त्रियों, दलितों, आदि की समस्याएं गंभीरता से चित्रित हुई हैं। उन्होंने समाजसुधार, देशप्रेम, स्वाधीनता संग्राम आदि से संबंधित कहानियाँ लिखी हैं। उनकी ऐतिहासिक कहानियाँ तथा प्रेम संबंधी कहानियाँ भी काफी लोकप्रिय साबित हुईं। पूस की रात, ईदगाह आदि |

अन्य :-

बाल साहित्य : रामकथा, कुत्ते की कहानी, जंगल की कहानियाँ, दुर्गादास
विचार : प्रेमचंद : विविध प्रसंग, प्रेमचंद के विचार (तीन खंडों में)
संपादन : मर्यादा, माधुरी, हंस, जागरन | 

साहित्यिक मूल्यांकन :-
 
प्रेमचंद ने प्रगति शील मूल्यों को आगे बढा़ने का काम किया। इनके बाद जिन लोगों ने इन कामों को आगे बढ़ाने का काम किया उसमें सिर्फ यशपाल  से मुक्ति बोध तक का नाम लिया जा सकता है। ये बेहतरीन कहानी कार भी थे इनकी तीन कहानियों में नारी की व्यथा व दुर्दशा को भी दर्शाया गया है। वह बहुत ही नेक व आदर्शवादी इन्सान थे। उनका लेखन हिंदी  साहित्य की एक ऐसी विरासत है जिसके बगैर  हिंदी के विकास का अध्ययन अधूरा रह जाएगा।  हम उन्हें व साहित्य में उनके  योगदान को कभी नहीं भुला पाएँगे।।

   डी.ए.प्रकाश खाण्डे (शिक्षक)
शासकीय कन्या शिक्षा परिसर पुष्पराजगढ़,अनूपपुर (म.प्र.)

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