"भूली बिसरी यादें" (संस्मरण)
उन दिनों की बात है। जब मैं कक्षा पांचवी में पढ़ता था। मेरे साथ मेरे सहपाठी रामशरण, मुनेश, जग्गू, जी पढ़ते थे। मेरा विद्यालय मेरे गाँव से लगभग 1 किलोमीटर दूर था। जो चारों तरफ से प्रकृति के स्वच्छंद वातावरण जंगलों से गिरा हुआ था। जहाँ की प्राकृतिक सुंदरता आज भी देखने लायक है। मैं जब भी विद्यालय का 'मनोहरी सुंदरता' की यादों को तरोताजा करता हूँ तो मेरा ह्रदय आनंदित हो उठता है। मेरी माँ मुझे हमेशा पढ़ने के लिए प्रातः 4:00 बजे उठाया करती थी। मैं नित्य क्रिया करके अध्ययन में लग जाया करता था। मेरी माँ मुझे लगभग 10:00 बजे तैयार कर टिफिन देकर विद्यालय को रवाना कर थी। माँ की अद्भुत करुणा एवं प्रेम को मैं जब भी याद करता हूँ। मेरा ह्रदय प्रफुल्लित हो जाता है।
मैं विद्यालय पहुँचकर सभी सहपाठियों से आलिंगन करता था। फिर सभी गुरुजनों का प्रणाम करता था। इसके पश्चात प्रार्थना हुआ करता था। विद्या की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती की प्रार्थना करने के पश्चात मेरा पठन काल शुरू होता था। मेरे विद्यालय में एक ही "गुरुजी" थे जो बहुत ही 'कर्तव्यनिष्ठ' समय के पाबंद एवं बहुत ही उच्च कोटि के विचारधारा वाले थे। जिनका "छवि एवं व्यक्तित्व" आज भी मुझे झलकता हुआ दिखाई देता है। मेरे विद्यार्थी काल में गुरुजी ने मेरे सभी सहपाठियों को विद्यालय प्रांगण में क्यारी बनाने का कार्य सौंपे। हम सभी क्यारी बनाकर विभिन्न प्रकार के पुष्पीय पौधे कुछ पेड़ रोपित किए वे पेड़ पौधे आज भी अपने मनोहरी दृश्य को प्रस्तुत करते हैं।
बचपन का समय मेरे जीवन का "अनोखा काल था।" मेरे गुरुजी मुझे जब भी गृह कार्य दिया करते। मैं सबसे पहले ग्रह कार्य पूरा करके गुरुजी के टेबल में रख दिया करता था। मेरे इस कार्य को देखकर तालियों की गुंजायमान हुआ करता था। मुझे गुरुजी बहुत शाबाशी दिया करते थे। गुरूजी बहुत प्रशंसा किया करते थे। "बेटा तुम बहुत आज्ञाकारी, शिष्टाचारी एवं अनुशासन प्रिय हो।" तुम बहुत ऊंचाइयों को स्पर्श करोगे। गुरुजी का आशीर्वाद मेरे जीवन के लिए स्मरणीय है।
मेरे विद्यार्थी जीवन में मेरे गुरु मेरे लिए आदर्श थे। मैं और मेरे सहपाठी गुरु के 'उदात्त चरित्र एवं विराट व्यक्तित्व' को देखकर आपस में वार्तालाप किया करते थे। हमारे गुरु जी हमारे लिए इस दुनियाँ में "अद्वितीय" हैं। उस समय विद्यालय शिक्षा के केंद्र के साथ-साथ संस्कार का केंद्र भी हुआ करता था। जहाँ पर नैतिक, अध्यात्मिक एवं सदाचार का पाठ पढ़ाया जाता था। वो पल मेरे लिए अविस्मरणीय है।
जब मैं सायं विद्यालय से घर आता था।मेरी माँ हृदय की आगोश में बहुत पुचकारा करती थी।माँ की करुणा एवं वत्सल मेरे जीवन के अनमोल था। मैं जब भी "भूली बिसरी यादें" को तरोताजा करता हूँ। मेरा मन मयूर नृत्य करने लगता है।"अतीत मेरे जीवन का स्वर्णिम काल था।"
✍रचना
स्वरचित एवं मौलिक
मनोज कुमार चंद्रवंशी
जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश
उन दिनों की बात है। जब मैं कक्षा पांचवी में पढ़ता था। मेरे साथ मेरे सहपाठी रामशरण, मुनेश, जग्गू, जी पढ़ते थे। मेरा विद्यालय मेरे गाँव से लगभग 1 किलोमीटर दूर था। जो चारों तरफ से प्रकृति के स्वच्छंद वातावरण जंगलों से गिरा हुआ था। जहाँ की प्राकृतिक सुंदरता आज भी देखने लायक है। मैं जब भी विद्यालय का 'मनोहरी सुंदरता' की यादों को तरोताजा करता हूँ तो मेरा ह्रदय आनंदित हो उठता है। मेरी माँ मुझे हमेशा पढ़ने के लिए प्रातः 4:00 बजे उठाया करती थी। मैं नित्य क्रिया करके अध्ययन में लग जाया करता था। मेरी माँ मुझे लगभग 10:00 बजे तैयार कर टिफिन देकर विद्यालय को रवाना कर थी। माँ की अद्भुत करुणा एवं प्रेम को मैं जब भी याद करता हूँ। मेरा ह्रदय प्रफुल्लित हो जाता है।
मैं विद्यालय पहुँचकर सभी सहपाठियों से आलिंगन करता था। फिर सभी गुरुजनों का प्रणाम करता था। इसके पश्चात प्रार्थना हुआ करता था। विद्या की अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वती की प्रार्थना करने के पश्चात मेरा पठन काल शुरू होता था। मेरे विद्यालय में एक ही "गुरुजी" थे जो बहुत ही 'कर्तव्यनिष्ठ' समय के पाबंद एवं बहुत ही उच्च कोटि के विचारधारा वाले थे। जिनका "छवि एवं व्यक्तित्व" आज भी मुझे झलकता हुआ दिखाई देता है। मेरे विद्यार्थी काल में गुरुजी ने मेरे सभी सहपाठियों को विद्यालय प्रांगण में क्यारी बनाने का कार्य सौंपे। हम सभी क्यारी बनाकर विभिन्न प्रकार के पुष्पीय पौधे कुछ पेड़ रोपित किए वे पेड़ पौधे आज भी अपने मनोहरी दृश्य को प्रस्तुत करते हैं।
बचपन का समय मेरे जीवन का "अनोखा काल था।" मेरे गुरुजी मुझे जब भी गृह कार्य दिया करते। मैं सबसे पहले ग्रह कार्य पूरा करके गुरुजी के टेबल में रख दिया करता था। मेरे इस कार्य को देखकर तालियों की गुंजायमान हुआ करता था। मुझे गुरुजी बहुत शाबाशी दिया करते थे। गुरूजी बहुत प्रशंसा किया करते थे। "बेटा तुम बहुत आज्ञाकारी, शिष्टाचारी एवं अनुशासन प्रिय हो।" तुम बहुत ऊंचाइयों को स्पर्श करोगे। गुरुजी का आशीर्वाद मेरे जीवन के लिए स्मरणीय है।
मेरे विद्यार्थी जीवन में मेरे गुरु मेरे लिए आदर्श थे। मैं और मेरे सहपाठी गुरु के 'उदात्त चरित्र एवं विराट व्यक्तित्व' को देखकर आपस में वार्तालाप किया करते थे। हमारे गुरु जी हमारे लिए इस दुनियाँ में "अद्वितीय" हैं। उस समय विद्यालय शिक्षा के केंद्र के साथ-साथ संस्कार का केंद्र भी हुआ करता था। जहाँ पर नैतिक, अध्यात्मिक एवं सदाचार का पाठ पढ़ाया जाता था। वो पल मेरे लिए अविस्मरणीय है।
जब मैं सायं विद्यालय से घर आता था।मेरी माँ हृदय की आगोश में बहुत पुचकारा करती थी।माँ की करुणा एवं वत्सल मेरे जीवन के अनमोल था। मैं जब भी "भूली बिसरी यादें" को तरोताजा करता हूँ। मेरा मन मयूर नृत्य करने लगता है।"अतीत मेरे जीवन का स्वर्णिम काल था।"
✍रचना
स्वरचित एवं मौलिक
मनोज कुमार चंद्रवंशी
जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश
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