सोमवार, अगस्त 31, 2020

जरा याद करो कुर्वानी (कविता)- डी.ए.प्रकाश खाण्डे



ज़रा याद करो कुर्वानी
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जो पाल पोषकर समृद्ध किया,
जीवन का सब दांव लगाकर |
दुःख--दर्दों को पीया है जिसने,
प्रेम- प्यार की नदी बहाकर |
सारी खुशियां अर्पित कर दी,
धरा धरोहर और जवानी |
उनकी गाथा क्यों भूल गए,
इनकी जरा याद करो कुर्वानी ||

वतन प्रेम पर हुए फ़िदा,
बचपन का सब खेल भूलकर |
देश प्रेम का कर्ज उतारे वीर,
फांसी फंदे में हँसते झूलकर |
राजगुरु- सुखदेव-भगत सिंह,
अब किसका लिखूं कहानी |
माँ का बेटा अजर अमर हो,
इनकी ज़रा याद करो कुर्वानी ||

जल जंगल के खातिर बिरसा,
अपनी जान गवाया था |
अपने जन और वतन के खातिर,
अंग्रेजों से युद्ध रचाया था |
गोरों को जो चना चबायी,
वो झांसी की मर्दानी |
झलकारी भी हुई शहीद,
इनकी जरा याद करो कुर्वानी ||

द्रासा और गलवान घाटी पर,
लात मारे रिपु के छाती पर |
जो मात्रभूमि पर हुए न्योछावर,
पुलवामा और सुकमा घाटी पर |
सरहद में जाकर सीना ताने हैं,
धन्य है उनकी जवानी |
सुहागिन की सुहाग अमर है,
उनकी ज़रा याद करो कुर्वानी ||

राणा की रणभूमि अमर है,
साहस शौर्य सुहावन होकर |
कवियों की काव्य अमर है,
वतन प्रेम में सुपावन होकर |
आजादी के शूर वीरों की गाथा,
उनके अंतिम साँसों की बानी |
भीमराव के उपकारित माथा,
उनकी ज़रा याद करो कुर्वानी ||

  -डी.ए.प्रकाश खाण्डे(शिक्षक)
शासकीय कन्या शिक्षा परिसर पुष्पराजगढ़,जिला-अनूपपुर मध्यप्रदेश
ईमेल- d.a.prakashkhande@gmail.com
मोबाइल नंबर -9111819182,8839212828

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