गुरुवार, अप्रैल 30, 2020

फुदकती गौरैया:रजनीश ”रेन”



फुदकती गौरैया

गौरैया-रानी, गौरैया-रानी
जब आँगन पर बैठी
मानो फूल खिली हो जैसी
दाना चुन-चुनकर खाती जाती
फुदक - फुदक कर षोर मचाती
वह षोर नहीं मधु प्रतिध्वनि की छाया है
खुद खाती खुद जीती है
ठंडा पानी पीती है
गौरैया रानी के चोंच को देखो
कितना रंग सुनहरा है
गौरैया रानी फिरती जब आँगन में
अपने मधु गीतों से मधुरस कर देती सबको
इतने में जब मालिक आता
कटु बातों की बीन बजाता
भाग जा पूरा दाना चुग ली
तब गौरै
या रानी सोची मन में
गुस्से की आग लगी है तन में
गुस्सा वाले गुस्सा तोड़
परोपकार से जीवन जोड़
यह मानुश तन पाया है
मानुश हाने का लाभ उठा
तू सत्संग की बात चला
गौरैया तुझसे कहती है
तेरा जीवन सफल हो जायेगा
यदि तू ऐसा कर पायेगा
इतना कह कर गौरैया रानी
नभ देष को पंख पसारी
गौरैया रानी, गौरैया रानी
मेरे आँगन में फुदक रही गौरैया रानी।

-रजनीश ”रेन”
हिन्दी(प्रतिष्ठा)

मटरू है बड़ा शैतान(बाल कविता):रजनीश "रेन"



आओ मटरू बैठो ना
कान न मेरी ऐंठो ना
तू बंदर है बड़ा शैतान 
तेरे दुकान में क्या-क्या सामान
कभी लचकना, कभी कूदना
फिर पेडों में छिपकर बैठना
ठण्ड से तेरे दाँत हैं किटकिटाते 
फिर कम्बल तू मेरे हो माँगते हो 
मैं कम्बल ना दूँगा तुझको 
तुम मटरू हो बड़ा शैतान
अब बंद कर लो अपनी दुकान।
चल सोनू भाई मेले 
खूब खायेंगे केले 
केले होंगे सस्ते 
मेले पहुँचेगे हँसते
सोनू तुम धीरे चलना 
कहीं मैं न थक जाऊँ 
फुल्की, चाट, मटर और पापड़ के ठेले 
उसपे कूद लगाऊँ
तुमको दूगाँ एक रूपइया 
मैं लूगाँ दस 
तुम पोपों लेना 
मैं लूँगा बस 
बस की चाभी 
लगाओ तो भागी
पहुँची वो दिल्ली 
दिल्ली की बिल्ली 
उड़ाई मेरी खिल्ली
हाँ, उड़ाई मेरी खिल्ली।।
बाल कविता: रजनीश "रैन"

कोरोना का प्रभाव:रमेश प्रसाद पटेल



कोरोना का प्रभाव
(सकारात्मक प्रभाव)
कोरोना महामारी के आने से
विश्व में बहुत बड़ा सुधार हुआ
प्रकृति की सुरक्षा करना
सब जीवों से मानव का प्यार हुआ
अपने घरों में रहकर जीना
बिछड़े हुए इकट्ठा परिवार हुआ
साफ सफाई करना एवं मास्क
लगाना 1 मीटर दूरी रहना अनिवार्य हुआ
शिक्षा में सुधार करना
स्वास्थ्य केंद्रों का विस्तार हुआ
अच्छी शिक्षा को जागृत कर 
शोध करें वैज्ञानिक ही आधार हुआ
प्राणों की बलि वेदी में चढ़ने
स्वास्थ्य सेवकों व सैनिकों का इतिहास हुआ
सर्दी खासी और बुखार से
अपने तन को बचाएं मानो आपका उद्धार हुआ
कोरोना से बचाने में लगे
मानव समझे यह बहुत बड़ा उपकार हुआ
चापलूसों से सतर्क हुआ
सभी राष्ट्रों ने समझा भारी अनजान हुआ
विश्व धर्म एवं जाति पाति
इस जंग में सभी मानव एक साथ हुआ
सादगी जीवन अन्न जल वायु
कम खर्चों में ही मानव का श्रृंगार हुआ
परिवार में बच्चों की खुशियाँ 
मानों घर में आनंद का पारावार हुआ
इंसानियत के भाव रखना 
जग में मानव को पहली बार एहसास हुआ 
प्रकृति ही परमात्मा है
विश्व को प्रकृति से मिलकर चलना आगाज हुआ
योग करना मुसीबत से न डरना 
ऋषियों के पथ में चलना सभी को आसान हुआ
सूर्य की तपन लगने से
कोरोना वायरस जलकर निराधार हुआ
धन बचत से आपत्ति में 
सदा हमारा खर्च सुविधानुसार हुआ 
अनमोल जीवन को बचने में 
सावधानी में रहें कदम इजहार हुआ 

(नकारात्मक प्रभाव)
जग में मानव जीवन को
इस घटना से बहुत भारी नुकसान हुआ
करोड़ों मानवों को चपेट में
ला सकता बचना और बचाना दुश्वार हुआ
अर्थव्यवस्था चरमरा गई 
जग में आर्थिक संकट से जीना लाचार हुआ
बेरोजगारी की समस्या से
जूझ रहा और भी अधिक आज बेरोजगार हुआ
इस भयावह दशा को देख 
वैज्ञानिकों की दवा का न आविष्कार हुआ
आपदा की ऐसी घड़ी में
कोरोनावायरस के  जलवे से जग लाचार हुआ
निर्धन बच्चे व बूढों का रोना,
दुखों को देख धनिकों को न शर्मसार हुआ
भूख से तड़पते मजदूरों का
प्राणों को बचाने का ना कोई मझधार हुआ
अदृश्य वायरस से कर रहा युद्ध
जग में इस भारी हलचल से गुहार हुआ
मिलना जुलना बंद करो
दानवों से भी बढ़कर बड़ा आकार हुआ
आज विश्व को डुबोने चला
गहरे सागर में भी तूफान से तेजधार हुआ
समीर भी वायरस से दूषित
पर्यावरण को बचना यह संकट अंगार हुआ
प्रकृति की अनुपम छवि में
स्वार्थी मानव का बहुत बड़ा प्रहार हुआ
बिछड़ गए जीवन के सफ़र
इस जंग से बहुत यह नरसंहार हुआ
जग ने भयावह हादसा
का सदा के लिए मुसीबतों में ऋण भार हुआ
इस अपार क्षति के साथ
विश्व में महंगाई का कदम इजहार हुआ 
अब न अस्त्र-शस्त्र से
यह वायरस जंग में बहुत बड़ा हथियार हुआ
दुश्मनों को मार गिराने का
यह तलवारों का भी तलवार हुआ

रचनाकार: रमेश प्रसाद पटेल  माध्य. शिक्षक, पी. एच. डी. (शोध  अध्ययनरत) नेट हिन्दी  पुरैना, ब्योहारी  जिला शहडोल (म. प्र.) 

मंगलू का होशियार सिंह(कहानी):डी ए प्रकाश खांडे

मंगलू का होशियार सिंह
बहुत पुरानी बात है किसी गाँव में एक गरीब परिवार रहता था। परिवार में स्वयं मंगलू, उसकी पत्नी समली और एक बेटा होशियार सिंह रहते थे। मंगलू अपना परिवार का भरण-पोषण बाजार में सूखी लकड़ियां बेचकर करता था, वह अपने गरीबी की परवाह न करते हुए पुत्र को बड़ी शान-शौकत से रखता था। मंगलू पढ़ा लिखा नहीं था जिसके कारण उसे कई परेशानियों का सामना करना पड़ा था। इसलिए मंगलू अपने पुत्र होशियार सिंह को अच्छी शिक्षा ग्रहण कराने का निश्चय किया। गाँव वालों ने उसके विचार को जानकर बेचारे गरीब का उपहास करते थे और उसके गरीबी का मजाक उड़ाते थे। रोज गाँव वाले ताना मारते थे कि- बेटे को लकड़ियां बेच कर कैसे पढ़ा लोगे? शिक्षा ग्रहण कराना तुम्हारे हैसियत से बाहर है। बेचारा मंगलू थोड़ा मुस्कुराकर कह देता था- "कोशिश कर रहा हूँ, शायद मेरे भाग्य में नहीं जो बेटे के भाग्य में शिक्षा ज्यादा है। आप सभी के पास तो धन-संपत्ति है परन्तु बेटे-बेटियों को क्यों नही पढ़ाते हैं।" यह सुनकर गांववालों का का मुँह उतर जाता था। मंगलू अपने कठिन परिश्रम से बेटे होशियार सिंह को स्कूल में दाखिल करा देता है। बेटा नित स्कूल जाता था और घर पर अभ्यास करता था। यथा नाम-तथा गुण के अनुसार होशियार सिंह सभी विद्यार्थियों से प्रखर बुद्धि का था, जिससे सभी शिक्षक और विद्यार्थी उसे चाहते थे। समय बीतता गया, जब होशियार सिंह ने कक्षा 12 वीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया तो मंगलू और उसकी पत्नी समली ने ख़ुशी से गांववालों को मिठाइयां बाँटी।

होशियार सिंह गाँव का पहला व्यक्ति था जो 12 वीं उत्तीर्ण किया था, उसकी इच्छा आगे भी पढ़ने की थी पर वह अपने मनोभाव को कह पाने में असमर्थ था। उच्च शिक्षा के लिए अब मंगलू की हिम्मत जवाब देने लगा पर होशियार सिंह के एक शिक्षक ने शासन की महत्वाकांक्षी योजनाओं की जानकारी दी। मंगलू अपने परिश्रम में भरोसा करते हुए बेटे होशियार सिंह के लगन को देखते हुए पास के कॉलेज में दाखिल करा दिया। होशियार सिंह बहुत ही मेहनती, आज्ञाकारी और ईमानदार विद्यार्थी था। कॉलेज में तरह-तरह के विद्यार्थियों को देखता रहता था, जो अपने माता-पिता के उन तमाम पैसो का आंनद लेते थे। उसके कुछ मित्रो ने उसे ऐशोआराम में व्यस्त करना चाहे पर वह किसी के बहकावे में नहीं आया और कॉलेज से M.sc. उत्तीर्ण कर लिया साथ ही Net भी उत्तीर्ण कर लिया। 

मंगलू के गाँव के ही एक व्यक्ति बहुत योग्य और विद्वान् थे जो मंगलू को उसके बेटे की शिक्षा के लिए उचित सलाह देते रहते थे।होशियार सिंह एक बार अचानक गाँव आया और उसी समय शासन ने किसी विपदा या महामारी के कारण सभी व्यक्तियों को अपने ही घर पर रहने का आदेश दे देता है। मंगलू के घर में लकड़ी से ही खाना बनता था।कई दिनों के बाद मंगलू ने कहा " बेटा आज तुमको अपना कर्म भूमि दिखा देता हूँ जिससे तुम्हे अपने पिता के हैसियत का भी ज्ञान हो सके ।" यह बात तय हो गया कि जंगल जाना ही होगा तथा परम्परा का अनुसरण करना जरुरी होगा और दोनों पिता-पुत्र जंगल की ओर चल दिए। वह स्थान चहल-पहल, हरितमा से आच्छादित और वन्य जीवों से परिपूर्ण था।प्रकृति की अनमोल धरोहर को देखकर होशियार सिंह बहुत प्रभावित हुआ और अपने पिता को कहा की प्रकृति ही हमें जीवन देती है, वनो में रहने वाले समस्त जीवो के हितार्थ हमें पर्यावरण का संरक्षण करना जरुरी है।जो प्रकृति से खिलवाड़ करता है उसके साथ प्रकृति भी बदला लेती है।जंगल में गाँव के बहुत से लोग भी गए थे जो पिता पुत्र की बातें सुने थे, उन सभी व्यक्तियों को पिता-पुत्र की बाते सुनकर आश्चर्य लगा।जंगल में मनुष्य एवं जंगली जीवो की आहटें भी सुनाई दे रही थी।तभी मंगलू ने पुत्र होशियार सिंह की शिक्षा और विवेक को परखना चाहा, होशियार सिंह की प्रतिभा और ख्याति का डंका उसके कॉलेज में बज रहा था ; वह वास्तविक है या नहीं।पिता ने जिज्ञासा से सारगर्भित प्रश्न किया-"बेटा इस जंगल में बहुत से वन्य प्राणी निवास करते हैं, यदि अचानक इस जंगल में आग लग जाए तो कौन-कौन से वन्य प्राणी सुरक्षित रहेंगे ।"

होशियार सिंह ने मृदु शब्दों में कहा-"अगर जंगल में आग लग जाए तो जो वन्य प्राणी समूह में रहकर स्वछंद और निर्भय होकर विचरण करते हैं, वे सब इस आपदा के शिकार हो सकते हैं और जो एकांतवास तथा अपने बिलों में रहने वाले जीव अर्थात घर में रहने वाले सुरक्षित रहेगें। जंगल की आग शांत होते ही सुखमय जीवन जी सकेंगे। मंगलू ने होशियार सिंह की सार्थक उत्तर सुनकर आशीर्वाद दिया और कहा-"पुत्र! तुम्हारे उत्तर से संतुष्ट हूँ; मेरी समस्त चिंताए दूर हुई। शाम होते ही जंगल से सभी लोग घर आ जाते हैं, रात में पूरे गाँव में होशियार सिंह के ज्ञान और शिक्षा की चर्चाएँ होने लगी। सुबह होते ही ग्रामीण जनों ने नम्रता तथा शालीनता से शुभकामनायें दी। होशियार सिंह ने प्रशंसा से अभिभूत होकर कहा-"आदरणीय! आत्मीयजन, आप सभी इच्छापूर्वक सपरिवार संयमित होकर घर में ही कुछ दिनों तक निवास करें और देश समाज की रक्षा कीजिये। जो भी व्यक्ति इस विपदा में सुरक्षा, संरक्षण और सहायता की याचना करता है, उसका निःस्वार्थ भाव से सहायता कीजिये। अपने घर पर रहकर लॉकडाउन का पालन करने से देश समाज को कोई क्षति नहीं पहुंचेगी।" वंश परम्परा एवं विद्वान् के प्रति आस्थावान जनसमूह ने विवेक और न्याय-निष्ठापूर्वक लॉकडाउन का पालन करने हेतु वचन दिया। कहा गया है की विद्वान् की पूजा सभी जगह होती है। वह गरीब का बेटा पूरे गांव वालो के लिए सराहनीय हो गया। होशियार सिंह बचपन से ही बहुत चंचल एवं आज्ञाकारी था जिसके कारण माता-पिता का अत्यंत प्यारा होता गया। मेहनत और लगनता एक दिन कामयाबी का शोर मचा ही देती है। "होनहार बिरवान के होत हैं चिकने पात" भी चरितार्थ हुआ। शिक्षा से गरीबी, बीमारी, अंधविश्वास, पाखंडवाद सब दूर हो जाते हैं। मजबूर और मजदूर की गरीबी का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए, विद्वानों की बात हमेशा मानना चाहिए। होशियार सिंह की बात पूरे गाँव वालों ने मानी जिससे भीषण आपदा को हराया गया और पूर्व की भाँति प्रसन्न होकर जीवनयापन करने लगे।
रचनाकार:डी.ए.प्रकाश खाण्डे शासकीय कन्या शिक्षा परिसर पुष्पराजगढ़जिला-अनूपपुर (मध्यप्रदेश)

बुधवार, अप्रैल 29, 2020

कोरोना का वैश्विक कहर: मनोज कुमार


कोरोना का वैश्विक कहर


कोरोना की वैश्विक कहर से तन-मन है अधीर,
इस वेदना से कैसे ?बचें चिंता बड़ी गंभीर l
जीवन करण क्रंदन हो रहा दुख का साया छाया है,
हाहाकार मचा है जग में विपदा  का घड़ी आया है ll

अभावग्रस्त की जिंदगी मानव कभी नहीं झेला है,
नैसर्गिक प्रतिकार यही मानव प्रकृति से खेला है l
प्राकृतिक शक्ति  या मानव शक्ति कौन?इसे जाने,
इस प्रकोप से बचना है तो रक्षित उपायों को माने ll

मजदूरों की दुर्दशा बढ़ गई जिंदगी बन गई नर्क,
उद्योगपति मन चिंतित है अब तनिक पड़ा उन्हें फर्क l
महंगाई छू गई नभ को सामान सुलभ नहीं हो पाता,
आवागमन अवरुद्ध हो गए कोई बाहर नहीं जा पाता ll

सकल घरेलू बहु घट गई चरमरा गई अर्थव्यवस्था,
मानव काल कवलित हो रहा सर्वत्र है अव्यवस्था l
श्रम साधना व्यर्थ हो गई कोरोना के जंजालों से,                  
स्वदेश न लौट सके ना मिल सके नौनिहालों से ll

अब दम घुटने लगा है थम सी गई है  स्वास,
जगत के इस प्रलय में कब? आए तन में आस l
हम सब के सहयोग से सुख का दिन आएगा,
जब विजयी होगा भारत विश्व गुरु कहलायेगा ll

कोरोना से स्वच्छ हुआ अवनि और अंबर तल,
अब प्रदूषण से मुक्त हुआ तनिक जल और थल l
मुक्त गगन में स्वच्छंद उड़ रहे हैं तुच्छ कीट पतंगा,
निर्मल हुआ यमुना का जल स्वच्छ हुआ पावन सी गंगा ll

कार्बन उत्सर्जन कम हुआ घटा धरा का तापमान,
वायु प्रदूषण न्यूनतम उज्जवल हुआ आसमान l
कानन तरु निर्भय खड़े ना दुख ना ना संताप,
हरा भरा जग सारा प्रकृति का यही प्रताप ll

कीटनाशक, खरपतवार नाशी आंशिक हुआ प्रयोग,
मरूभूमि उर्वर हुआ शुद्ध जैविक  हो रहा उपयोग l
कुछ वक्त बिताने को मिला निज कुटुंब के साथ,
परिस्थिति हमें जीना सिखाया बढाअटल विश्वास ll

प्रभु को भूल चुके थे निज भौतिक वादी अरमान,
अब भोर काल में उठते ही हिय जपत हरि नाम l
पर्यावरण शुद्ध हुआ अनुपम मनोहरी दृश्य,
शुचि नीर शुद्ध समीर प्राकृतिक का यह परिदृश्य ll


स्वरचित कविता🖊️ मनोज कुमार चंद्रवंशी (प्राथमिक शिक्षक) संकुल खाटी विकासखंड पुष्पराजगढ़ जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश 

मेरा सपना: शिव एफ


यह कविता एक व्यंग्य के रूप में है जो आज के ताजा परिदृश्य में बिल्कुल सटीक बैठती है। अगर वर्तमान परिदृश्य को देखा जाए तो यथार्थ और धरातल में उतना ही अंतर है जितना सैद्धांतिक भाग और प्रायोगिक भाग में! उम्मीद करूंगा यह कविता आप सभी को पसंद आएगी | यह कविता एक वार्तालाप के रूप में है जिसके दो पात्र हैं एक मैं और दूसरा मेरी अंतरात्मा।

मेरा सपना

नींद नहीं आ रही, 
क्यों? 
परेशान हूँ, 
क्यों? 
पता नहीं,
गर्मी होगी, 
थोड़ी है, 
शायद बिजली नहीं होगी, 
है, 
कूलर नहीं चल रहा, 
चल रहा है, 
फिर? 
नींद नहीं आ रही 
क्यों? 
पता नहीं 
किसी की याद आ रही होगी? 
नहीं, 
किसी से नाराज हो? 
हाँ 
किससे? 
खुद से, 
क्यों?
जब देखता हूँ मैं, 
खुली निगाहो से सपना, 
देश, भारत देश सबका हो अपना, 
पर सबने 
अपने अपने नजरिए से बाट लिया है इसे, 
किसी ने धर्म के नाम पर, 
किसी ने कर्म के नाम पर, 
किसी ने क्षेत्र के नाम पर, 
तो किसी ने संस्कृति के नाम पर, 
तो कुंठित हो उठता हूँ 
मेरा सपना टूट रहा है, 
सोचने लगता हूँ 
क्या मै उस धरा का वासी हूँ 
जहाँ राम, रहीम हुआ करते थे 
जहाँ गंगा जमुना तहज़ीब हुआ करती थी 
जहाँ नानक अपना सन्देश दिया करते थे 
जहाँ नारी के सम्मान के लिए, 
शीश कट जाया करते थे, 
पर आज तो
नारी सरे आम लूट ली जाती है 
और हम भीष्म पितामह की तरह, 
धृतराष्ट्र की तरह, 
‌राजनीति में बट कर 
मौन व्रत धारण कर जाते हैं 
लुटती है तो लुट जाने दो द्रोपदी को,
कृष्णा ने एक बार बचा लिया द्रोपदी को, 
इस नारी को कौन बचा पायेगा।
उस विश्वास का क्या? 
भूखे मरते किसान का क्या?
कर्ज में डूबे खलिहान का क्या 
बस सपने हैं 
टूटने लगते हैं 
और नींद नहीं आती है
सोचने लगता हूँ 
क्या करुँ
किसी के सामने अपनी बात नहीं रख पाता 
क्यों की मैं ट्रोल हो जाता हूँ. 
फिर चुप हो कर सो जाता हूँ 
पर नींद नहीं आती है, 
नींद में फिर वही सपने दिखाई देते हैं
कभी तो पूरा होगा मेरा सपना 
जब भारत देश सबका होगा अपना 

रचना: शिव एफ.
शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय कटंगी

प्रकृति और मानव:कोमल चंद कुशवाहा


कौन कहता है नहीं बदले हैं हम।
सादगी छोड़कर विलासिता में डूबे हैं हम।
नए नए अविष्कार करके बहुत आगे हैं हम।
वह दौर और था जब,
पीपल बरगद नीम को पूजते थे हम।
आज उनमें आरा चला रहे हैं हम।
कौन कहता है नहीं बदले हम।
वह दौर और था जब राह चलते,
दादा, चाचा, भैया बुलाते थे हम।
अब कान में ईयर फोन लगाकर।
मौन धारण कर निकलते हैं हम।
कौन कहता है नहीं बदले हम।
वह संस्कार जो हमें,
जियो और जीना सिखाते थे।
आज उनको भूल गए हैं हम।
जियो और जीने की संस्कृति भूल कर
प्रकृति से खिलवाड़ कर रहे हैं हम।
कौन कहता है नहीं बदले हैं हम।
जो वन हमारी सुरक्षा करते थे।
उन्हें काटकर सूखा, बाढ़ 
और महामारी झेल रहे हैं हम।
आप और हम रोज बदलते हैं।
कभी रात को कभी दिन को बदलते हैं।
कौन कहता है नहीं बदले हैं हम।
अभी रिश्ता कभी रंग बदलते हैं
कभी चेहरा तो कभी मोहरा बदलते हैं।
इस बदलाव में इतना आगे निकल गये।
प्रकृति को नथिंग ओर
आदमी को समथिंग कहने लग गये।
फिर भी प्रकृति दयालु ही रही।
अपनी गोद में बैठा ही रही।
वह बदलाव को सहती रही।
फिर भी हम बदलते रहे।
प्रकृति को छोड़ ढोग से दुनिया को लूटा।
शायद इसी कारण प्रकृति का कहर टूटा।
आज विलासिता रो रही है।
जंगली बस्तियां सुख से सो रही हैं।
ना टूटते प्रकृति के नियम।
सभी अपनाते संयम।
बने रहते सभी जीव और जंगल।
ना होता विश्व में अमंगल।
कारखानों के धुंए ने।
छिद्र किया ओजोन पर।
मानव स्वार्थी निकला।
प्रकृति ने भरोसा किया स्वयं पर।
पशु पक्षी जलचर सब सुखी हैं।
बस मानव ही सबसे दुखी है।
जो वैज्ञानिक नहीं कर सके महीनों में।
प्रकृति ने कर दिया कुछ दिनों में।
अब एक स्वर में कहना पड़ेगा।
नेचर इज समथिंग मैन इज नथिंग।

रचना: कोमल चंद कुशवाहा
शोधार्थी हिंदी
अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा
मोबाइल 7610 1035 89

मंगलवार, अप्रैल 28, 2020

कोरोना (कविता)आल्हा तर्ज:धर्मेन्द्र कुमार


कोरोना (कविता)आल्हा तर्ज

चीन देश से निकला कोरोना,
मचा दिया है हाहाकार।
सूक्ष्म कणों से इतनी भयानक,
सूक्ष्म कणों से इतनी भयानक
हो रही जग में नरसंघार॥

चीन देश..........

इतनी घातक मारक क्षमता,
मिसाइल भी बौने पड़ जाएं।
ब्रिटेन,अमेरिका,इटली,जर्मनी,
ब्रिटेन ,अमेरिका, इटली, जर्मनी,
इस प्रकोप से बच नहिं पाएं॥

चीन देश से............

विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालत,
नाजुक , सहमें और लाचार।
बडे़ बडे़ डाक्टर, और वैज्ञानिक,
बडे़ बडे़ डाक्टर और वैज्ञानिक,
शोध कार्य में दिन - रात गुजार॥

चीन देश से..........

सर्दी खांसी बुखार के लक्षण,
कोरोना अपनी पहचान बताय।
आम नागरिक थर थर कांपें,
आम नागरिक थर थर कांपें
कोरोना हम तक पहुंच न जाय॥

चीन देश से............

भारत में जब पहुंचा कोरोना,
जनता कर्फ्यू दियो लगवाय।
जब इतनें में भी  बात बनी न,
जब इतनें में भी बात बनी न
लाकडाउन की घोषणा हो जाय॥

चीन देश से .........

स्कूल कालेज,उद्योग धंधे,
बंद हो गया है यातायात।
बाजार की रौनक फीकी पड़ गयी,
बाजार की रौनक फीकी पड़ गयी
अर्थव्यवस्था में पहुंचा आघात॥

चीन देश से...........

सोशल डिस्टेंसिंग साफ-सफाई,
चेहरे में मास्क लगाय।
सैनटाइजर उपयोग अधिकतम,
सैनटाइजर उपयोग अधिकतम
कोरोना से यही बचाय॥

चीन देश से............

बाहर न घूमना घर में रहना ,
देश भक्त की यही पहचान।
एक दिन हारेगा कोरोना,
एक दिन हारेगा कोरोना
जीतेगा मेरा हिन्दुस्तान॥

चीन देश से ........

स्वास्थ्य कर्मी,पुलिस प्रशासन,
जय जय हो भारत सरकार।
नमन् है कोरोना योद्धायों को,
नमन् है कोरोना योद्धायों को
जिसने किया है कडा़ प्रहार॥

चीन देश से............

आपका भाई-✍✍ धर्मेंन्द कुमार पटेल


तनावमुक्त जीवन कैसे जियें?

तनावमुक्त जीवन कैसेजियें? तनावमुक्त जीवन आज हर किसी का सपना बनकर रह गया है. आज हर कोई अपने जीवन का ऐसा विकास चाहता है जिसमें उसे कम से कम ...