मिले कभी जो भगवान पूछना माँ क्या होती है!
कहीं जरा सी भी चोट लगने पर माँ क्यूं रोती है!
है माँ अपरिभाषित इस जग में जवाब आयेगा,
इतना जान लो बहुत है की माँ बस माँ होती है!
होंगे किये हजार कर्म सही तब यह जीवन पाया!
सौभाग्य है तेरा माँ की कोख से मानुस तन पाया!
इस जग का सबसे किस्मत बाला प्राणी है रे तू,
की सबसे बड़ी दौलत माँ की ममता का धन पाया!
तरसता है भगवान भी माँ की गोद मे पलने को!
पगड़ उंगलियां माँ की गिर - गिर कर चलने को!
पूरे संसार मे फैला है जिसका व्यापक साम्राज्य,
लिया जन्म बार -बार वह भी माँ के संग रहने को!
देख भगवान नजर आएगा माँ की सूरत में!
फिर क्यूं है सर पटक रहा पत्थर की मूरत में!
माँ तो हर पल सब के साथ हमेशा रहती है,
मगर भगवान नजर आता है सिर्फ जरूरत में!
मन्दिर , मस्जिद, गुरुद्वारा चर्च क्यूं भटक रहा है!
क्या कमी रह गयी माँ का फर्ज क्यूं लटक रहा है!
फरियाद, अरदास, दुआ तेरी बिन मांगे पूरी होगी!
झुका शीश माँ के चरणों मे रब की मजबूरी होगी!
माँ की आंख में आँसू है क्यूं करता है रे तू मनमानी!
मझधार में छोड़ दिया माँ को कैसी है रे तेरी नादानी!
छोड़ कर घर पे अपने ही यहाँ तू भगवान को भूखा,
पत्थर को दूध पिलाता फिरता है कैसा है रे तू प्राणी!
चारधाम है माँ के चरणों में मन्दि मस्जिद जाना दे तू छोड़!
कब तक रहेगा भ्रम में अब तो सच्चाई का चादर तू ओढ़!
भगवान की खातिर ये कदम न जाने हैं कितने मील चले,
घर मे ही है मन्दिर और मूरत बड़े कदम अब तो है तू मोड़!
रचनाकार:कुलदीप पटेल (के•डी•)
कल्लेह, तहसील-जयसिंहनगर,जिला शहडोल (मध्यप्रदेश)
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