अनमोल जीवन जीयें, असली वह हकदार॥
प्रकृति को बचाएं सदा, सब रहें सावधान।
प्राणी को इस जग में, अब न हो व्यवधान॥
अपने स्वार्थ कारणे, जग को करता नष्ट।
प्राणी जीवे या मरे, ऐसे नर मतिभ्रष्ट॥
चींटी आँख न होते हैं, चले सही वह राह।
मनु की आँख होत हैं, चले न अपनी राह॥
पर्वत जैसे चाल सा, हृदय में अहंकार।
हम हम करता वह चले, जीवन को धिक्कार॥
ऐसे पहचान कीजिये, जैसे मीठे बेर।
मीत न ऐसा कीजिये, संकट में लगे गैर॥
फूल-फूल कहता फिरे, कभी न करिए भूल।
असली नकली पहचानें, स्वार्थ भरा समूल॥
औरन को सीख देत हैं, चलें न सत की चाल।
मौका मिलते वह झपटे, रखो पराई माल॥
देख पराई चीज को, न रखिये बुरा सोच।
आत्म मन जैसे डुले, नर में पडा खरोच॥
कबहू विपत्ति न हंसिये, सदा मौन हो जाय।
दास रमेश हँसत कहैं, संकट में फस जाय॥
रचना: रमेश प्रसाद पटेल, माध्यमिक शिक्षक
प्रकृति को बचाएं सदा, सब रहें सावधान।
प्राणी को इस जग में, अब न हो व्यवधान॥
अपने स्वार्थ कारणे, जग को करता नष्ट।
प्राणी जीवे या मरे, ऐसे नर मतिभ्रष्ट॥
चींटी आँख न होते हैं, चले सही वह राह।
मनु की आँख होत हैं, चले न अपनी राह॥
पर्वत जैसे चाल सा, हृदय में अहंकार।
हम हम करता वह चले, जीवन को धिक्कार॥
ऐसे पहचान कीजिये, जैसे मीठे बेर।
मीत न ऐसा कीजिये, संकट में लगे गैर॥
फूल-फूल कहता फिरे, कभी न करिए भूल।
असली नकली पहचानें, स्वार्थ भरा समूल॥
औरन को सीख देत हैं, चलें न सत की चाल।
मौका मिलते वह झपटे, रखो पराई माल॥
देख पराई चीज को, न रखिये बुरा सोच।
आत्म मन जैसे डुले, नर में पडा खरोच॥
कबहू विपत्ति न हंसिये, सदा मौन हो जाय।
दास रमेश हँसत कहैं, संकट में फस जाय॥
रचना: रमेश प्रसाद पटेल, माध्यमिक शिक्षक
पुरैना, ब्योहारी जिला शहडोल (मध्यप्रदेश)
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1 टिप्पणी:
very nice Sir
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