शनिवार, अप्रैल 11, 2020

धैर्य की परीक्षा:सुरेन्द्र कुमार पटेल की कविता

प्रदर्शन  नहीं मात्र शौर्य का,
धैर्य की भी कठिन परीक्षा होती है।
अनिमेष अटल रहना होता है,
दृगकोरों में समाई निद्रा होती है॥

इन्द्रियलोभों से होंगे मुक्त तभी,
रोटी घास की खाई जाएगी।
ले चला उसे भी जब वनविलाव
तभी कथा प्रताप-सी गाई जाएगी

होता है मन व्यग्र बहुत ही,
चंदमशीनी सुख खो जाने में।
बहुत सहज है गाथा गाना,
अंतर है लक्ष्मीबाई हो जाने में

बंद रही आँखें, धड़कनें बंद रहीं
इस जग में आने से पहले।
साहस पैदा करना होता है,
मंचों पर अपनी बारी के पहले

है यह विराम नहीं साधारण,
अकल्पनीय पगबाधा, जग नीरव है।
दृश्य विवश करती है दुनिया की,
जहां पसरा मातम शव ही शव है

तन-मन में हो संकल्पना,
गेह बनें तप स्थल।
रहें  बंद कपाटों के  भीतर,
बाहर है बहुत  उथल-पुथल

समय शक्ति संधान का है,
सांसे थामें, मनबाण नहीं छोड़ें।
ऊर्जा भरना है प्राणों तक,
सांस एक-एक को जोड़ें

बल, वैभव का करें प्रदर्शन,
उचित नहीं यह अवसर है।
शब्दों को भी शांत  रखें,
रहें निकेत जो स्वर्ग से सुंदर है

तुच्छ अभावों से करें न मन-लाघव,
पल नहीं यह बहुत विरक्ति का।
यदि हैं संग अपने और नहीं भी,
प्रकट करें मन अनुरक्ति का

यह रण नहीं साधारण,
असीम धैर्य, संयम, साधना मांगे।
इतिहास लिखेंगे या बन जाएँ,
निर्भर है धैर्यबल  के आगे
 रचना: सुरेन्द्र कुमार पटेल 
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