मंगलवार, दिसंबर 31, 2019

नए वर्ष के शुभ बेला पर:राम सहोदर पटेल


नए वर्ष के शुभ बेला पर
स्वीकार मुबारक हो मेरा।
शुभकामनाओं का भाव सदा
आप सभी को हो मेरा।।

करबद्ध निवेदन मेरा सबसे
एकजुटता हो, संगठित बने।
उत्कर्ष समाज का करने को
संकल्पित और सत्य निष्ठ बने।।

अज्ञानता का करें सर्वनाश
पराधीनता से दूर रहें।
स्वार्थपरता भाव तुच्छ है
इस विचार से दूर रहें।।

जितने जयचंद समाज में हों,
उन्हें समाज रहस्य सिखलाना है।
वैमनस्य का भाव त्याग कर
समाज को सभ्य बनाना है।।

बीती पराजय से निराश न हों
सीख समझिए आगामी को।
सीख हार से ही मिलती है
जब मिलता धक्का खाने को।।

संगठित बनो, मत एक रखो
आन बान से जीने को।
समाज नीति मजबूत करो
अब समय नहीं है खोने को।।

समय दुहाई देता तुमको,
अधिकार करो समाज नीति पर।
रखो सहोदर भाव सभी से,
और जलवा खींचो कूटनीति पर।। 

साल 2019 की शुभ विदाई।
साल 2020 की करें अगुआई।

इस अवसर पर सहृदय,
सभी प्रिय स्वजनों को,
मंगलमय भविष्य के लिए,
मुबारकबाद एवं बारम्बार बधाई।
रचनाकार:राम सहोदर पटेल,एम.ए.(हिन्दी,इतिहास)
स.शिक्षक, शासकीय हाई स्कूल नगनौड़ी 
गृह निवास-सनौसी, थाना-ब्योहारी जिला शहडोल(मध्यप्रदेश)
[इस ब्लॉग में प्रकाशित रचनाएँ नियमित रूप से अपने व्हाट्सएप पर प्राप्त करने तथा ब्लॉग के संबंध में अपनी राय व्यक्त करने हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। कृपया  अपनी  रचनाएं हमें whatsapp नंबर 8982161035 या ईमेल आई डी akbs980@gmail.com पर भेजें,देखें नियमावली ]

नया साल: धर्मेंद्र कुमार पटेल


💐💐नया साल💐💐
आया आया देखो आया,
देखो कैसे रंग है लाया।
365 दिन और 12 महीने,
जीवन में हम ऐसे ही गिनें।।

पहला रंग जनवरी का महीना,
जिसमें धूम होगी संक्रांति का।
गणतंत्र दिवस का महापर्व
भारत दिखता  दुनिया का स्वर्ग।।

दूसरी रंग फरवरी का महीना,
छाई होगी चहुं बसंत बहार।
शिव की होगी आराधना ।
प्रकृति की अनुपम उपहार।।

तीसरा रंग मार्च का महीना,
होली की रंगों से सराबोर।
दुनिया दिखती रंग बिरंगी,
नाचें गाएं हो भाव विभोर।।

चौथे रंग में अप्रैल का महीना,
पहला दिन है फूल का।
जब आए महुआ और बैसाखी,
गर्मी के दिनों की हुई सुरुआती।।

पांचवां रंग म‌ई का  महीना,
गर्मी से बहने लगे पसीना।
लू चले धधक धधक कर,
आम के फल गिरें टपक टपक कर।।

छठवां रंग जून का महीना,
गर्मी ने कर दिया मुश्किल है जीना।
बादल छाने लगे चारों ओर से,
तूफान चलने लगे बड़े जोरों से।।

सातवां रंग जुलाई का महीना,
चलो बच्चों स्कूल है जाना।
किसान भाई करें किसानी,
खेतों में भर गया है पानी।।

आठवां रंग अगस्त का महीना,
सावन का मौसम बड़ा सुहाना।
स्वतंत्रता दिवस की होती है धूम,
राखी बिन भाई की कलाई रहे न सून।।

नवमां रंग सितंबर का महीना,
गणेश जी का होगा आना जाना।
खेतों की फसलें लहर लहलहाए,
किसान भाइयों का मन बहुत हर्षाए।।

दशवां रंग अक्टूबर का महीना,
दुर्गा पूजा और विजयादशमी मनाना।
जब आए खलिहानों में दाना,
किसान का मन फूले नहीं समाना।।

ग्यारहवां रंग है नवम्बर का महीना,
माता लक्ष्मी की पूजा आराधना।
ठंडी हवा से लगे जी घबराना,
फिर भी लगता बहुत सुहाना।।

बारहवां रंग दिसंबर का महीना,
ठंडी हवा हमें मारें ताना।
क्रिसमस की धूम धमाल,
सेहत का रखना ख्याल।।

🙏🙏हैप्पी न्यू ईयर 2020🙏🙏
आपका भाई -धर्मेंद्र कुमार पटेल✍✍ 

काल पढ़े सो आज पढ़: शिवम की दो कविताएं


1. काल पढ़े सो आज पढ़: शिवम

काल पढ़े सो आज पढ़, 
आज पढ़े सो अब।
फीस डबल हो जाएगी, 
फिर पढ़ेगा कब।

स्कूल में सुमिरन सब करें, 
घर में करे न कोय।
जो घर में सुमिरन करे, 
तो फेल काहे को होय।

पहली घंटी गई, 
आने में हो गई देर।
गेट आउट सुन चुप रहे, 
देख समय का फेर।

पोथी पढ़-पढ़ जग हुआ,
पास भया न कोय।
दिन में कुंजी पढ़े,
पास तुरन्तै होय।

एक भरोसा एक बल,
एक आस विश्वास ।
मन से करो पढ़ाई,
होंगे फर्स्ट डिवीजन पास ।।

2. जीतना है अगर तुझे

जीतना है अगर तुझे, 
विश्वास कायम रख।
हार कर भी जीत, 
प्रयास कायम रख।।


मजबूत कर तू सोच को, 
उससे तय होगा रास्ता।
जहाॅ जाना चाहता है तू, 
जहाॅ जाने का तेरा वास्ता ।।

हो जा तू सावधान अब, 
छाया है घोर तम ।
अधीन न होना कभी, 
पथ है तेरा निर्मम ।।

अगर सोच तेरी जीत है, 
शुभ होगा तेरा परिणाम।
गिरेगा तू तुझे उठना है, 
यही है तेरा इम्तिहान ।।

आगे बढ़े जो मिटा के तम,
वही तो है महान ।
जीत पास मे खड़ी,
करने तेरा सम्मान ।।

रूकने न पाये ये बढ़ते कदम,
जब तक है तुझमे जान।

गिरेगा तू तुझे उठना है,
 यही है तेरा इम्तिहान ।।

रचनाकार:
नाम -शिवम् चर्मकार
वार्ड नंबर 19, ग्राम पोस्ट आखेटपुर तहसील ब्यौहारी जिला शहडोल मध्यप्रदेश 


शनिवार, दिसंबर 28, 2019

प्रकाशन सूचना (आग्रह)


प्रिय महानुभाव,
      साहित्य और शिक्षा का समाज से घनिष्ट सम्बन्ध रहा है. साहित्य समाज का दर्पण तो है ही. साहित्य व्यक्ति की अन्तर्निहित अभिव्यक्ति को मूर्त रूप देने का एक सहज माध्यम भी है. हमारे मध्य बहुत से  मूर्धन्य व्यक्ति हैं जिनमें साहित्यिक प्रतिभा है.ऐसी मूर्धन्य प्रतिभाओं की रचनाएं एक प्लेटफोर्म पर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से एक सूक्ष्म प्रयास किया जा रहा है, विगत कुछ महीनों से "आपस की बात सुनें" नाम से एक साहित्यिक ब्लॉग/ पोर्टल का संचालन किया जा रहा है. जिसमें क्षेत्र के नौनिहालों/ युवाओं और प्रबुद्धजनों की रचनाएं प्रकाशित की जा रही हैं. यह इसलिए भी आवश्यक है, क्योंकि आज हर व्यक्ति के हाथ में इन्टरनेट सुविधा युक्त मोबाइल हैंडसेट उपलब्ध है. ऐसे में इन्टरनेट पर अच्छी सामग्री उपलब्ध कराना और लोगों को रचनात्मकता की ओर उन्मुख करना हम सबकी जिम्मेदारी है. 
        आपसे अनुरोध है कि अपने भीतर के  साहित्यिक रुझान को बनाये रखें तथा आपकी मौलिक साहित्यिक  रचनाएँ व्हात्सप्प अथवा ईमेल के माध्यम से हमें भेजें. सम्पादन पश्चात हमारी टीम उसे प्रकाशित कर आपके द्वारा उपलब्ध कराये गये व्हाट्सअप अथवा ईमेल पर उपलब्ध कराएगी. 
       यह ब्लॉग परिपक्व रचनाकारों की ही रचनाओं को महत्व नहीं देता बल्कि उन रचनाओं को भी प्रकाशित करता है जो लिखना अभी सीख रहे हैं. अतः निःसंकोच हमें आपकी व आपके बच्चों की मौलिक कविताएँ, कहानियां, निबंध, नाटक, एकांकी आदि हमें अवश्य प्रेषित करें. ज्यादा जानकारी के लिए कृपया हमारे ब्लॉग पर विजिट करें. हमारे ब्लॉग को  गूगल पर "आपस की बात सुनें" टाइप करके भी सर्च किया जा सकता है.

विशेष अनुरोध- यदि किसी माध्यम से हमारे ब्लॉग में प्रकाशित रचनाएँ आप तक पहुंचे तो उसे अपने मित्रों एवं परिचितों को अग्रेषित कर रचनाकार का मनोबल बढाने का कष्ट करें.

कृपया अपनी रचनाएँ इस पते पर भेजें-
व्हाट्सअप नंबर- 8982161035, email: akbs980@gmail.com
हमारे ब्लॉग/पोर्टल पर पहुँचने के लिए गूगल पर टाइप करें-

https://apaskibaatsune.blogspot.com 

आग्रह:
ब्लॉगर  टीम: आपस की बात सुनें 


गुरुवार, दिसंबर 26, 2019

प्रतिभा खोज परीक्षा:आर्यन पटेल

झाॅंपर उत्कर्ष युवक मण्डल समिति द्वारा आयोजित प्रतिभा खोज परीक्षा पर प्रस्तुत है आर्यन की ये पंक्तियाँ-
प्रतिभा खोज परीक्षा
आर्यन पटेल 
झाॅंपर उत्कर्ष युवक मण्डल समिति,
इसमें नहीं है कोई सोची समझी राजनीति।

आइए दोेस्तो भर दीजिए इस परीक्षा के आवेदन को, 
तो कृपया मान लीजिए अपने स्वजातीय साथियों एवं वंदनीय महिलाओं सहित पधारने के निवेदन को ।

विनम्र भाषण, जवाबदेही,सत्यनिष्ठा, कार्यनीति, सहयोग 
समग्रता, प्रोत्साहन, समर्पण, पारदर्शिता अनुशासन है,
उत्कर्ष होने के लिए ये दस सिंहासन है।

झाॅंपर प्रतिभा खोज परीक्षा पाॅच स्तरों में विभाजित है,
समिति  पूरी कोशिश कर रहा है कि भेदभाव न हो क्योंकि अच्छाई अपराजित है।

हमें मिला यह एक उत्कर्ष पंचांग है,
यह सुनहरे भारत की ओर एक लंबी छलांग है।

साथ ही हमें मिला यह निमंत्रण पत्र है, 
आगे चलकर इस परीक्षा को देने वाला हर परीक्षार्थी चमकेगा जैसे कोई नक्षत्र है।

परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए हमें मिला यह पाठ्यक्रम,
27 दिसम्बर 2019 तारीख को होगा यह प्रतिभा खोज की परीक्षा का कार्यक्रम।

प्रत्येक स्तर के लिए परीक्षा 50 रुपए निर्धारित है, 

झाॅंपर उत्कर्ष के उद्देश्य सुविचारित है।

समिति   का उद्देश्य है बनवाना केन्द्रीय पुस्तकालय का,
समिति  बन चुकी है विषय कौतूहल का।

आज मैंने कुछ कहा है इन पंक्तियों से।
इस रचना को लिखा है मैने स्वयं की दिमागी शक्तियों से।
रचना: आर्यन पटेल,
कक्षा-9वीं

ख्रिश्ता ज्योति मिशन हायर सेकेंडरी स्कूल 
गोदावल रोड ब्यौहारी जिला-शहडोल (मध्यप्रदेश)
[इस ब्लॉग पर प्रकाशित रचनाएँ नियमित रूप से अपने व्हाट्सएप पर प्राप्त करने तथा ब्लॉग के संबंध में अपनी राय व्यक्त करने हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। अपनी  रचनाएं हमें whatsapp नंबर 8982161035 या ईमेल आई डी akbs980@gmail.com पर भेजें,देखें नियमावली ]



बुधवार, दिसंबर 25, 2019

गुरूर छोड़ दो कि हम पालतू हैं: सुरेन्द्र कुमार पटेल

गुरूर छोड़ दो कि हम पालतू हैं!
वह चाहता नहीं था, समंदर सुखाना
ये बात तुम्हें पता है, मुझे पता है।
गिरे तो ठहरे उसके ही अंक में पानी,
इसीलिए सैकड़ों फ़ीट ऊपर उछालता है।

उसे कहो, अंक में हो पानी तो बादल बनने की चाहत रखे,
सबमें बादल बनने का हुनर आता नहीं है,
गर्मी हो तो चढ़ना कोई मुश्किल काम नहीं,
सबको सलीके से उतरना  आता नहीं है।

गुनाह किसका कहें हम, जिसने आग बांटी,
या उसका जो जलती आग में घी डालता है।
उन दोनों को नहीं समझा वो आम आदमी,
जो अपना घर अपने ही हाथों उजाड़ता है।

ये कुचक्र मौसमी राजनीति की इसे समझो,
बारिश के पहले त्राहिमाम-त्राहिमाम करवा रहा है।
हो जाओगे खाक अपने ही घर में एक दिन
तुमसे आग लगवाके तुमको ही डरवा रहा है।

तरबूज के फलकों की तरह वो बांटता है,
किसी के हिस्से में ये आये, किसी के हिस्से में वो।
देखा नहीं तुमने सत्ता बांटते हुए क्या
अभी ये हैं, पूर्व में थे वो अभी किस्सों में हैं जो।

यह इनकी चालाकियां हैं इन्हें पढ़ना सीखो,
मंदिर बनवाते हैं यही, यही चादर चढाते हैं।
इंसान रहे नहीं हम लौकी के बेल हो गए हैं,
शाखाएं वो जालिम मुनगी काटकर बढ़ाते हैं।

वह पूछता है तुमसे हर सवाल का जवाब,
अंधेरा हटाने तुम्हें मशाल चाहिए कि नहीं चाहिए?
तुम कहते हो जब हाँ, वो यह भी पूछता है
लगे ठंड तो इसी मशाल से घर जलाना चाहिए कि नहीं जलाना चाहिए?

पहरेदारी की जिम्मेदारी उसे दी है तुमने,
चौकीदारी बड़ी जिम्मेवारी से निभा रहा है।
सूनसान रातें कटती नहीं है उसकी जाड़े में
जागते रहो! कहकहकर सारा देश सुलगा रहा है।

उसे दखलंदाजी पसंद नहीं है अपने काम में
अमन चाहिए उसे, चाहे बहें रक्त की सहस्त्र धाराएं।
वो कहता है चांद को सूरज, रात को दिन,
तो लोग हाँ में हाँ मिलाएं या सर कलम कराएं।

गुरूर में तो वो लाड़ले भी थे बड़े प्यार से दुलारे हुए
खाक छानते हैं आजकल, बैठे हैं विधेयक गुरूर से फाड़े हुए,
यह देश है, मवेशियों की तरह हांकना बन्द करो
गुरूर छोड़ दो कि हम पालतू हैं, तुम्हारे बाड़े हुए
-सुरेन्द्र कुमार पटेल 

सोमवार, दिसंबर 23, 2019

ठंडी गीत:धर्मेन्द्र कुमार पटेल

ठंडी गीत
रात या बैरी लागे ठंडी के महिनवा हो।
कैसे कटी कैसे कटी ठंडी वाले दिनवा हो।।
हां कैसी कटी कैसे कटी ठंडी वाले के महिनवा हो....2

 धूप या ऐसी लागे, जैसे जले अगेठिया हो।
कैसे कटी कैसे कटी ठंडी वाले महिनवा हो।।
हां कैसे कटी कैसे कटी.........

रजाई या ऐसा लागे, जैसे सगे हों मितवा हो।
कैसे कटी कैसे कटी ठंडी वाले महिनवा हो।।
हां कैसे कटी कैसे कटी.........

कपड़े तो ऐसे लागे, जैसे लगे प्रियतमा हो।
कैसे कटी कैसे कटी ठंडी वाले महिनवा हो।।
हां कैसे कटी कैसे कटी.......
रचनाकार:धर्मेन्द्र कुमार पटेल
नौगवां, मानपुर जिला-उमरिया(मध्यप्रदेश)
[डिस्क्लेमर:इस ब्लॉग पर रचनाकर द्वारा भेजी गयी रचना इस विश्वास और उम्मीद के साथ प्रकाशित की जाती है कि वह रचनाकार की मौलिक और अप्रकाशित रचना है.अन्यथा के लिए रचनाकार स्वयं उत्तरदायी होगा.]
ब्लॉग पर प्रकाशित रचनाएं नियमित रूप से अपने व्हाट्सएप पर प्राप्त करने तथा ब्लॉग के संबंध में अपनी राय व्यक्त करने हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। कृपया  अपनी  रचनाएं हमें whatsapp नंबर 8982161035 या ईमेल आई डी akbs980@gmail.com पर भेजें,देखें नियमावली ]

शनिवार, दिसंबर 21, 2019

साथ रही सब:कुलदीप पटेल की कविता

साथ रही सब
कुलदीप पटेल
साथ रही सब मिलजुल, आपस माहीं  न करी लड़ाई।
संविधान केर आत्मा, धर्मनिरपेक्ष केर समझी गहराई।
भाईचारा बाला भारत केर बुनियाद सदा बनी  रहै,
एकै  छत के नीचे रहैं, हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख ,ईसाई।

वैचारिक मतभेद होय विचारन से, हिंसा न भड़कै।
देशहित माहीं  होय फैसला सब, सियासत न चमकै।
अमन , शांति अउर अहिंसा कायम रहै वतन माहीं,
फेर दुबारा  भारत माँ के आँचल खून से न महकै।

भगत, सुभाष, आजाद केर सपना बाला देश बनाई।
गाँधी, नेहरू, पटेल, अम्बेडकर बाला सन्देश बताई।
या देश आय सबकेर, अउर है सबके बराबर के हक,
आपसी असमंजस भूल के आपन देश  बचाई।

कुछ करके इतिहास बनाई, इतिहास का न बदली।
काहे कि घर माहीं  जंग शुरू होइ ता, फेर न सम्भली।
कुछ अइसन करी कि आमैं  बाला कल बेहतर होय,
नही त रहि जईहै जुझतै सब, केहु केर न एक चली।

शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारिऊ माहीं  कुछ ध्यान बढ़ाई।
गरीब, मजदूर, किसान केर खातिर आसमान बनाई।
निजीकरण अउर उद्योग तक सब न सीमित करी,
अवाम तक पहुंचै अईसन योजना आसान बनाई।

हिंदुस्तान के मिट्टी से जनमै केर सब गर्व जताई।
दुनिया के सब धर्मन से सबसे बड़ा देशधर्म बताई।
सकल जगत के शीर्ष मा लामै केर सबके रहै योग,
अउर भाईचारा से मिलके खुशियन के पर्व मनाई।

देश मा रहिके देश विरोधी कबहु न नारा लगाई।
अपने हिरदय माहीं, देशभक्ति के सदैव प्रेम जगाई।
जननीं जन्मभूमिश्च गरीयसी सबका याद रहै,
गर्व से देश म रही देश के खाई अउर देश के गाई।

रचनाकार: कुलदीप पटेल (के डी) ब्यौहारी, शहडोल। 

मंगलवार, दिसंबर 17, 2019

माँ:सुरेन्द्र कुमार पटेल की कविता



माँ
सुरेन्द्र कुमार पटेल 
हर उस मां का वंदन है, अभिनंदन है।
जिसके तपने से बेटा बनता कुंदन है।

बेटे की किलकारी से, गूंजित होता जब घर-आंगन।
धवल-चांदनी सा खिल जाता है मां का मन।

बेटे की सेवा में माँ, न जाने कैसी दिव्य अनुभूति है तेरी।
छोड़ सकल संसार तुम बन जाती हो उसकी चेरी।

तुम्हारे संस्कारों से सुरभित होता जैसे वह चंदन है
हर उस मां का वंदन है, अभिनंदन है।
जिसके तपने से बेटा बनता कुंदन है।

न जाने कैसा दिव्य आकर्षण है माँ की लोरी में।
कैसा अद्भुत सुख है माँ से माखन की चोरी में।

हाय, अजब धौंस माँ का, उस भय में मेला भावों का।
हल्की खरोच लगे तो माँ ले लेती है हिसाब उन घावों का।

बेटे को वह करे सुसज्जित और चीथड़ों में उसका तन है...
हर उस मां का वंदन है, अभिनंदन है।
जिसके तपने से बेटा बनता कुंदन है।

बेटे की खातिर वह लड़ती, शेरनी बन जाती है।
बेटे का हो हित तो ले कलंक कैकेयी भी बन जाती है।

बेटा सोये निश्चिंत भाव से, रात-रातभर मां पहरा देती है।
बेटे का मन कुम्हला न सके, ऐसा छांव वो गहरा देती है।

बेटा घर से हो बाहर, हर आहट उसके कानों से टकराती है।
जब भी बिगड़ी है तबियत, हाल पूछने वो दौड़े आती है।

बेटे की चाहत होती जब भी पूरी, 
और दुआओं से भर जाता उसका मन है
हर उस मां का वंदन है, अभिनंदन है।
जिसके तपने से बेटा बनता कुंदन है।

माँ कभी नहीं कहती, उसको  भव्य मकान बनाकर दो।
मां कभी नहीं कहती, उसको नया-नया पकवान बनाकर दो।

जब वह बूढ़ी हो जाती है, लाठी टेक-टेककर चलती है।
बेटों की बन न जाये पथबाधा, यह देख-देखकर चलती है।

मिट्टी से लड़-लड़ वह मिट्टी बन जाती, बेटों का जीवन कंचन है
हर उस मां का वंदन है, अभिनंदन है।
जिसके तपने से बेटा बनता कुंदन है।.

माँ का यह सदय भाव लेकिन जग में बेटी बनकर ही आता है,
कैसा है यह दुर्भाग्य मगर कि अब माँ को बेटी जनना नहीं सुहाता है।

अंबर की ऊंचाई के नहीं मायने, यदि न कोई अवनी होगी।
उस भाई के मन में कैसे कलरव गूंजेगा, जिसकी न कोई भगिनी होगी।

इसलिये माँ इतनी ममता और लुटाना, 
हर भाई देखे कि उसके आंगन में एक बहन है
हर उस मां का वंदन है, अभिनंदन है।
जिसके तपने से बेटा बनता कुंदन है।

पर कुछ पिशाच-भेड़िये बन जाते,
माँ का दूध लजा जाते हैं
जिस बेटी में है इतनी ममता
उसकी आत्मा को चीर, नराधम बन जाते हैं।

उसकी माँ को यदि यह मालूम होता,
उसने क्षीर नहीं बहाया  होता।
वह मां है,  बेटी की अस्मत खातिर 
अपना दूध आँचल में ही सुखाया होता।

बेटों ने लजाया है माँ का आँचल, 
माँ का मन आज भी पावन है...
हर मां का वंदन है अभिनंदन है।
[इस ब्लॉग पर प्रकाशित रचनाएँ नियमित रूप से अपने व्हाट्सएप पर प्राप्त करने तथा ब्लॉग के संबंध में अपनी राय व्यक्त करने हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। कृपया  अपनी  रचनाएं हमें whatsapp नंबर 8982161035 या ईमेल आई डी akbs980@gmail.com पर भेजें,देखें नियमावली ]

सोमवार, दिसंबर 16, 2019

एक बेरोजगार का प्यार:अखिलेश पटेल की कविता

एक बेरोजगार का प्यार
अखिलेश पटेल

एक-दूजे से प्यार था भारी,
और प्यार पर भारी बेरोजगारी!

हे! प्राणाधार, हे! प्रियवर,
बतलाओ कब बसेगा हमारा घर?

प्रेमी युवक ने कहा, हे प्रियतमा, हे सखी!
शादी-शादी की रट तू क्यों लगा रखी?

देखती हो प्रियतमा, कितनी मंहगाई है,
चारो तरफ मंदी छाई है।

ऐसे में घर में होगा उजाला कैसे,
तुम मेरी याद में बसी रहो बस ऐसे।

जैसे नदी के हों हम दो किनारे,
जैसे चांद को चकोर निहारे!

बहुत दिन हुए शहर में रहते!
बहुत हो गया पढ़ाई करते-करते।

अब लोग पूछते हैं बताओ क्या करते,
उन्हें बताएं क्या पाया हमने शहर में रहके!

हे प्रियतम! ये क्रम कब खत्म करोगे,
सूनी है मांग, उस पर सिंदूर कब भरोगे?

देखो, हे प्रियतमा, हे सखी सुकुमारी।
कुछ समझो हम बेरोजगारों की लाचारी।

फॉर्म जो चार साल पहले हमने भरा था,
जिसकी आस में मन कुछ हरा था।

कोई लेकर बहाना कोर्ट चला गया,
क्या करूं मैं इसी तरह छला गया।

कुछ और परीक्षाएं थी दी हमने,
एक साल हो गए, लोग भी लगे कहने।

कि परिणाम क्यों अभी तक नहीं आया,
सरकार ने इस बीच दो झंडा फहराया।

कोई कह रहा अगले चुनाव की प्रतीक्षा है।
विज्ञापनों के असर की जारी समीक्षा है।

परीक्षाएं अब कुछ इस तरह हो रही हैं।
एक परीक्षा न जाने कितनी सरकारों को ढो रही हैं।

चुनाव से पहले विज्ञापन आता है,
और अगले चुनाव से पहले पेपर हो जाता है।

उसके अगले चुनाव के पहले रिज़ल्ट आ जाता है।
और अगले चुनाव के ठीक पहले भर्ती का आश्वासन मिल जाता है।

इधर चुनाव होते हैं, कोई सरकार नया बनाता है।
उधर सरकार बनते ही भर्ती पर कोर्ट का स्टे लग जाता है।

कोर्ट भी इसी तरह पंचवर्षीय योजनाओं की तरह।
एक पेशी, दो पेशी, तीन पेशी, पेशी पर पेशी बुलाता है।
अंत मे जब निर्णय आता है, जाने किसके हक़ में जाता है।

कभी-कभी तो यह भी होता है।
वर्षों पुराना विज्ञापन रद्द हो जाता है।

और अगर रदद् हो गया इस बार,
तुम्हीं बताओ भला कैसे करेंगे प्यार?

इसीलिए कहता हूँ, इस वक़्त को यूं ही टालो।
शादी का विचार, मन से अब तो हटा लो।

अब हम शादी नहीं, पंचवर्षीय प्यार किया करेंगे।

नौकरी मिल गयी तो ठीक, नहीं तो इसका रिन्यू कर लिया करेंगे।
रचना:अखिलेश  कुमार पटेल 
[इस ब्लॉग पर प्रकाशित रचनाएँ नियमित रूप से अपने व्हाट्सएप पर प्राप्त करने तथा ब्लॉग के संबंध में अपनी राय व्यक्त करने हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। अपनी  रचनाएं हमें whatsapp नंबर 8982161035 या ईमेल आईडी akbs980@gmail.com पर भेजें,देखें नियमावली ]

सामाजिक कार्य व्यक्तिगत क्षमता का सही उपयोगः वीरेन्द्र कुमार पटेल



सामाजिक कार्य व्यक्तिगत क्षमता का सही उपयोगः 
वीरेन्द्र कुमार पटेल 
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अपने व्यक्तित्व का विकास समाज में रहकर ही करता है। वह समाज में रहकर जीवन की कठिन चुनौतियों को देखते समझते हुए अपनी जीवन यात्रा में आगे बढ़ता है। फिर एक ऐसे चैराहे पर खड़ा हो जाता है जहां से उसे किसी एक रास्ते का चयन करना होता है। इस चयन के पीछे की बाध्यताएं कई बार उसे ऐसे क्षेत्र में ले जाती हैं जहां से उसे लगने लगता है कि उसे जो कुछ और करना चाहिए थावह पीछे छूट गया है। यह छूट जाना ही व्यक्ति को समाज में पीछे मुड़कर देखने के लिए बाध्य करता है। एक दूसरी स्थिति यह होती है कि व्यक्ति जीवकोपार्जन के लिए जो कुछ करता है उसमें पूर्णता प्राप्त करने के बाद भी उसे ऐसा लगता है कि उसकी भावनात्मक संतुष्टि कहीं न कहीं अधूरी रह गई है। उस भावनात्मक संतुष्टि के लिए भी वह पीछे मुड़कर देखने की कोशिश करता है। कुछ अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए भी सामाजिक कार्य की ओर प्रवृत्त होते हैं।

हमारे देश के लोग भावप्रधान हैं। यह भाव प्रधानता सामाजिक रिश्तों में हमें देखने को मिलती है। यदि हमारे वृहत समाज के लिए कोई कुछ करता है तो लोग उसे अत्यधिक सम्मान की दृष्टि से देखते हैं और कई बार तो उसे भगवान का दर्जा भी दे देते हैं। लोगों का यह भाव सामाजिक सेवा करने वाले व्यक्ति का ओहदा समाज में बहुत ऊंचा कर देता है। समाज में उसकी एक अलग प्रतिष्ठा स्थापित हो जाती है। वह आदरणीय तो होता ही हैअनुकरणीय भी हो जाता है। इसे लोग सामाजिक कार्य नहीं बल्कि सामाजिक सेवा कहते हैं। सामाजिक कार्य की यह प्राचीन धारणा है। हमारा भारतीय समाज आज जिस अच्छी स्थिति में हैउसमें इस प्रकार के  सामाजिक सेवा का अहम योगदान है। ज्योतिबा फुलेसावित्री बाई फुलेआचार्य विनोबा भावे आदि सैकड़ों मनीषियों के नाम इस श्रेणी में लिए जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त भारतीय समाज के जातिगत समूहों में भी अनेकानेक ऐसे नाम हैं जिन्होंने अपने जातिगत समूहों की परम्परागत रूढ़ियों को तोड़ने के लिए अपनी सेवा दी है। जिसके कारण ही हम आधुनिक समाज की ओर प्रवृत्त हुए हैं। सामाजिक सेवा के बजाय सामाजिक कार्य की अधिक जरूरत महसूस करते हुए भी हम इनके सामाजिक सेवा के महत्व को विस्मृत नहीं कर सकते।

हमारा वर्तमान  सामाजिक परिप्रेक्ष्य सामाजिक सेवा को नये तरीके से परिभाषित करने की जरूरत महसूस करता है। जहां सामाजिक सेवा को सामाजिक कार्य के रूप में देखे जाने की दृष्टि विकसित करने की मांग है। इस रूप में सामाजिक सेवा के बजाय सामाजिक कार्य की अधिक उपादेयता सिद्ध होती है। सामाजिक कार्यव्यक्ति को केवल भावनात्मक संतुष्टि प्रदान नहीं करता बल्कि सामाजिक कार्य को  व्यक्ति के एक अनिवार्य उत्तरदायित्व के रूप में रेखांकित करता है।

यह तो विदित ही है कि मानवीय सभ्यता सदैव मानव जीवन को सरल बनाने के उद्देश्य से लगातार आगे बढ़ी है। आज तक जितने भी खोज हुए हैं वे सब मानव जीवन को सरल और अधिक सुविधाजनक बनाए जाने के लिए है। इस सुविधा को प्राप्त करने में कई बार इंसान प्रकृति से संघर्ष करता है और प्रकृति पर विजय पाने की होड़ में मनुष्य का कार्यक्षेत्र लगातार बढ़ रहा है। मानव व्यवस्था बनी रहे इसके लिए हमने बहुत सारे उत्तरदायित्व सरकारों को दिए हैं। फिर भी ऐसा लगता है कि हमारी एक उत्तम व्यवस्था बनाए रखना केवल सरकारी प्रयास से संभव नहीं है। इसके लिए व्यक्तिगत स्तर पर भी छोटे-छोटे प्रयासों की आवश्यकता है। इस रूप में सामाजिक कार्य केवल हमारी भावनात्मक संतुष्टि नहीं बल्कि एक नागरिक होने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है।

अभी सरकारों ने ऐसा कोई कानून नहीं बनाया है जिसमें व्यक्ति का सामाजिक कार्य में प्रवृत्त होना बाध्यता हो। यह अलग बात है कि सामाजिक कार्य के नाम पर वह हमसे कुछ कर संग्रहण करती है फिर उसका प्रयोग वह अपने तरीके से करती है। यह अच्छा है कि हम अपने पसंद का सामाजिक कार्य चुनने के लिए स्वतंत्र हैं। इस प्रकार हम सामाजिक कार्य के माध्यम से अपनी व्यक्तिगत रुचि के क्षेत्र को विकसित कर पाएंगे और अपने व्यक्तित्व के उन हिस्सों का विकास कर पाएंगे जो हमारे जीविकोपार्जन के लिए चुने गए व्यवसाय के कारण अधूरे रह गए हैं।

यह सही है कि समाज में सामाजिक कार्य के प्रति आधुनिक दृष्टि का विकास नहीं हो पाया है। यही कारण है कि समाज में जब कोई व्यक्ति सामाजिक कार्य के लिए प्रयास करता है तो प्रारम्भ में उसे थोड़ी कठिनाई महसूस होती है क्योंकि सामाजिक कार्य व्यक्ति की जिम्मेदारी है ऐसी अवधारणा हमारे समाज में कम लोगों के पास है। अतः ऐसे कार्य की शुरुआत करने वाले व्यक्ति को समाज एक अलग नजरिए से देखता है। कुछ उसे चिढ़ाने के मूड़ में होते हैं और उस पर फबतियां भी कसते हैं जैसे कहते सुना जा सकता है- ‘‘अच्छा! अब ये चले हैं महात्मा गांधी बनने।’’ और दूसरे वे लोग होते हैं जो सामाजिक कार्य करने वाले व्यक्ति को भगवान ही मान लेते हैं। उनके सामने सामाजिक कार्यकर्ता को अपनी छवि को सदैव परफेक्ट बनाए रखने की चुनौती होती है। और फिर जब ऐसा कोई प्लेटफाॅर्म तैयार हो जाता है तब असंख्य लोग प्लेटफाॅर्म पाने की जद्दोजहद करते दिखाई देते हैं जहां से सामाजिक कार्यकर्ता का अपना कुछ रह पाना संभव ही नहीं हो पाता।

सामाजिक कार्य का जो बिल्कुल नया कलेवर हैवह और भी भयावह है। लोग स्वयंसेवी संगठन के रूप में पंजीयन प्राप्त कर रहे हैं। और फिर स्वयंसेवी संगठन के रूप में स्थापित करने के बाद सरकारी अधिकारियों से मिलीभगत कर सरकारी सहायता प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। सामाजिक कार्य का यह विकृत स्वरूप समाज में उचित व्यवस्था बनाए रखने के स्थान पर और अधिक अव्यवस्था पैदा कर रहा है। भ्रष्टाचार के नये स्वरूप की स्थापना कर रहा है। विडम्बना यह है कि कुछ ऐसे स्वयंसेवी संगठन बन गए हैं जिन्हें राजनैतिक पार्टियों का संरक्षण प्राप्त है। उनकी सरकार बनने पर बहुत सी योजनाएं केवल उन्हीं के स्वयंसेवी संगठनों द्वारा संचालित की जा रही हैं।

खैर, सिक्के के दो पहलू सदैव विद्यमान रहेंगे। हम उस पक्ष को देखने की कोशिश करें जिससे हमारा भला हो सकता है। इस रूप में हम स्वयं को समाज का एक जिम्मेदार इकाई मानेंसमाज में अच्छे और प्रजातांत्रिक मूल्यों को स्थापित करनेसमाज की साझी जिम्मेदारी स्थापित करने में अपने योगदान को निभाने की जुगत करें। हम सामाजिक कार्यों को करने से प्राप्त होने वाले महानताबोध को भूल जाएं। हम उसे पूर्ण निरपेक्ष भाव से एक जिम्मेदारी के रूप में स्वीकार करें। यदि इस दृष्टि से हम सामाजिक कार्य को स्वीकार करेंगे तो पूर्ण विश्वास है कि सामाजिक कार्य में कभी बाधा नहीं आएगी किन्तु आपके सामाजिक कार्य की वजह से परिवर्तन आएगा। यह कोरा दावा इसलिए नहीं है क्योंकि कई देशों में ऐसे सामाजिक कार्यों की शुरुआत हो चुकी है और वे सफल हैं।

आइएअब देखें कि इसे कैसे शुरू करें। यदि हम एक बड़े संस्थान की स्थापना करना चाहें तो हमें एक बड़े प्रबंधन की आवश्यकता होगी। एक बड़ी तैयारी की आवश्यकता होगी। हो सकता है हमारा पूरा जीवन केवल सोचने में ही चला जाय। मान लीजिए हम शिक्षा के क्षेत्र में कुछ करना चाहते हैं। मान लीजिए आप चाहते हैं कि आपका योगदान ऐसा हो कि आपके योगदान से लोग पढ़ लिख जाएं। इसके लिए यह आवश्यक नहीं है कि हम कोई बड़ी संस्था खोलें। आप खुद किसी ऐसी बस्ती में जाकर जहां जरूरतमंद हैं उन्हें दिन में एक घण्टा पढ़ा सकते हैं। हो सकता है आपके पास इसके लिए समय न हो। तब आप तय करें कि आप अपनी आय में से कितनी धनराशि इस क्षेत्र में लगा सकते हैं। हो सकता है आप केवल हजार या पांच सौ रुपए प्रतिमाह लगाना चाहें। आप इतने से ही शुरुआत कर सकते हैं। आप किसी ऐसे जरूरतमंद व्यक्ति को तलाशें जिसे पैसों की अत्यंत आवश्यकता हो और वह पढ़ाना जानता हो। आप हजार-पांच सौ रुपए देकर दो-चार कमजोर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का काम उसे दे सकते हैं। आप यह सवाल कर सकते हैं कि इतने से समाज में परिवर्तन कैसे आएगाइसके लिए जवाब यही है कि आप करके देखिए। जब आप ऐसा करेंगे तो सामाजिक कार्य के क्षेत्र में ऐसा करना आम हो जाएगा और लोग बिना संकोच के ऐसा करने लगेंगे। कोशिश करके देखिए।

हो सकता है आप पर्यावरण प्रेमी हों। आप खुद वृक्षारोपण कर सकते हैं। या फिर आप किसी व्यक्ति को वर्ष में 100-50 पौधे लगाने और उसकी देख-रेख करने की जिम्मेदारी दे सकते हैं। उसके एवज में आप उस व्यक्ति को उसका मेहनताना देंगे। इस प्रकार के कार्य आप स्वयं अथवा समान विचारधारा वाले दो-चार-छः लोगों का समूह बनाकर कर सकते हैं। इसी प्रकार स्वास्थ्य के बारे में उचित सलाह देकर भी सामाजिक कार्य किया जा सकता है। यह निर्भर करता है कि आपकी रुचि किस क्षेत्र में है और सबसे बड़ी बात यह है कि क्या आप सामाजिक कार्य को एक जिम्मेदारी के रूप में स्वीकार करते हैं। कई विश्वविद्यालयों द्वारा सामाजिक कार्य का पाठ्यक्रम प्रारंभ किया गया है। सामाजिक कार्य में अत्यधिक रुचि रखने वालों को सामाजिक कार्य का पाठ्यक्रम कर लेना चाहिए। इसके माध्यम से वह समाज में नेतृत्व करने के गुण सीख सकेंगे और सामाजिक कार्य के अन्य आयामों को सीख सकेंगे।यहां पर संक्षेप में उन क्षेत्रों या विषयों का उल्लेख किया जा रहा है जिन क्षेत्रों में सामाजिक कार्य की संभावनाएं विद्यमान हैं-

0 बाल संरक्षण सेवाएं
0 सलाह एवं रोगोपचार
0 परामर्श एवं सेवाएं
0 सामुदायिक विकास
0 प्रौढ़ सुरक्षा
0 पर्यावरण
0 परिवार कल्याण एवं नियोजन
0 मानव संसाधन प्रबंधन
0 चिकित्सा सामाजिक कार्य
0 मानसिक स्वास्थ्य
0 समाज सेवा प्रबंधन
0 मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य
0 गरीबी उन्मूलन
0 व्यक्ति एवं विशेष आवश्यकताएं
0 ग्रामीण एवं शहरी विकास
0 विद्यालय सामाजिक कार्य
0 सामाजिक कार्य प्रशासन एवं नीति
0 सामाजिक कार्य शिक्षा एवं अनुसंधान
0 सामाजिक विकास
0 अक्षम व्यक्तियों के साथ कार्य करना
0 युवा कार्य
0 बाल.कल्याण आदि


सामाजिक कार्य आपके भीतर की कल्याणकारी भावना पर आधारित है। यह उतना ही अधिक पुष्पित और पल्लवित होगा जितना अधिक आपकी भावना लोककल्याणकारी होगी। इंसान जीवन में बहुत कुछ खोता और पाता हैकिन्तु जीवन के अंतिम क्षण में उसे केवल वही पल सुख देते हैं जिनमें वह निःस्वार्थ भाव से किसी और के लिए कुछ अच्छा करता है। आपकी अपनी संतान पढ़-लिखकर योग्य बन जाए उससे आपको प्रतिष्ठा प्राप्त होगी। आपके असहाय होने की स्थिति में आपकी संतान आपकी सहायता करेगी। इससे आपको दैहिक और भावनात्मक सुख मिलेगा। किन्तु इस सुख की कल्पना से कहीं अधिक सुख एक ऐसे अनाथ को पढ़ा-लिखाकर मिलेगा जो सिवाय आपकी सहायता के नहीं पढ़-लिख सकता था। अतः हम सामाजिक कार्य को अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारी और लोककल्याणस्वयं की आत्मसंतुष्टि के लिए करें जिसमें हमारे व्यक्तित्व के विकास की संभावनाएं भी हैं। इससे ही हमारा और हमारे समाज का तीव्र विकास संभव हो सकेगा।


आलेख:वीरेन्द्र कुमार पटेल 
[इस ब्लॉग पर प्रकाशित रचनाएँ नियमित रूप से अपने व्हाट्सएप पर प्राप्त करने तथा ब्लॉग के संबंध में अपनी राय व्यक्त करने हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। कृपया  अपनी  रचनाएं हमें whatsapp नंबर 8982161035 या ईमेल आई डी akbs980@gmail.com पर भेजें,देखें नियमावली ]





x

रविवार, दिसंबर 08, 2019

कितनी और कथाएं:कविता, सुरेन्द्र कुमार पटेल

कितनी और कथाएं
० सुरेन्द्र कुमार पटेल० 

कितनी और कथाएं
कितने लेख लिखे जाएं।
मैं तो कहता हूँ  कि
जब जल ही गई
सचमुच की कविता
तब इस कविता को क्या पढ़ना?
चलो इसे भी आग लगाएं।

जिस बाप की जली बेटी,
उसकी वह ही कविता थी, गीता थी।
जनक रह गया खड़ा स्वयंवर के उत्सव में
जो छली गई वह ही उसकी सीता थी।
इस समाज के रावण को
चलो अपने ही हाथों फंदे पर लटकाएं।
 ...कितनी और कथाएं

निर्भया के साथ हुआ जो,
ऐसा लगा यह अंतिम, लोगों में अब भय होगा।
क्या मालूम था सत्ता के आश्रय में
बलात्कारी का ऐसा आचरण निर्भय होगा।
लकवा मार गया कण्ठों को
किस मुंह से, ऐसे गीतों को गाएं।
 ....कितनी और कथाएं

किससे उसने की नहीं मनुहार,
तमाशाई बने रहे सब दरबारी।
राज्य बचा नहीं सका अपनी मर्यादा
प्रकट हुई उसकी कलयुगी लाचारी।
कर्तव्यविमुख रहे जो-जो अधिकारी,
वे पिशाच, नराधाम भी फन्दे पर लटकाएं जाएं। 
....कितनी और कथाए

वह कितना तड़पी होगी, कितना छटपटाई होगी।
फिर कितना करके साहस आप बीती बताई होगी।
जग रहा सुनता, वह सुनाती रही।
जग भी हुआ लाचार, वह देह नुचाती रही।
ऐसे क्रूर दानवों का जेल करे क्यों पोषण?
ऐसे क्रूर दानवों पर तत्काल सजा सुनाएं। 
....कितनी और कथाएं

चर्चा हुई पुरजोर, और आंकड़ा दिखाया
नहीं है आंकड़ा बहुत ऐसा दरबारियों ने बताया।
मैं पूछता हूं जिसकी अस्मत गई, जान गई जिसकी।
वो पूरी ही गई, या परसन्टों में अस्मत लुटी उसकी?
कुछ हो शेष लज्जा इंसानियत के नाते तो
आंकड़ों से दरिंदगी को न भुलाएं।

कितनी और कथाएं...
कितने लेख लिखे जाएं।
मैं तो कहता हूँ  कि
जब जल ही गई
सचमुच की कविता
तब इस कविता को क्या पढ़ना?
चलो इसे भी आग लगाएं।
[इस ब्लॉग पर प्रकाशित रचनाएँ नियमित रूप से अपने व्हाट्सएप पर प्राप्त करने तथा ब्लॉग के संबंध में अपनी राय व्यक्त करने हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। कृपया  अपनी  रचनाएं हमें whatsapp नंबर 8982161035 या ईमेल आई डी akbs980@gmail.com पर भेजें,देखें नियमावली ]



तनावमुक्त जीवन कैसे जियें?

तनावमुक्त जीवन कैसेजियें? तनावमुक्त जीवन आज हर किसी का सपना बनकर रह गया है. आज हर कोई अपने जीवन का ऐसा विकास चाहता है जिसमें उसे कम से कम ...