गुरूर छोड़ दो कि हम पालतू हैं!
वह चाहता नहीं था, समंदर सुखानाये बात तुम्हें पता है, मुझे पता है।
गिरे तो ठहरे उसके ही अंक में पानी,
इसीलिए सैकड़ों फ़ीट ऊपर उछालता है।
उसे कहो, अंक में हो पानी तो बादल बनने की चाहत रखे,
सबमें बादल बनने का हुनर आता नहीं है,
गर्मी हो तो चढ़ना कोई मुश्किल काम नहीं,
सबको सलीके से उतरना आता नहीं है।
गुनाह किसका कहें हम, जिसने आग बांटी,
या उसका जो जलती आग में घी डालता है।
उन दोनों को नहीं समझा वो आम आदमी,
जो अपना घर अपने ही हाथों उजाड़ता है।
ये कुचक्र मौसमी राजनीति की इसे समझो,
बारिश के पहले त्राहिमाम-त्राहिमाम करवा रहा है।
हो जाओगे खाक अपने ही घर में एक दिन
तुमसे आग लगवाके तुमको ही डरवा रहा है।
तरबूज के फलकों की तरह वो बांटता है,
किसी के हिस्से में ये आये, किसी के हिस्से में वो।
देखा नहीं तुमने सत्ता बांटते हुए क्या
अभी ये हैं, पूर्व में थे वो अभी किस्सों में हैं जो।
यह इनकी चालाकियां हैं इन्हें पढ़ना सीखो,
मंदिर बनवाते हैं यही, यही चादर चढाते हैं।
इंसान रहे नहीं हम लौकी के बेल हो गए हैं,
शाखाएं वो जालिम मुनगी काटकर बढ़ाते हैं।
वह पूछता है तुमसे हर सवाल का जवाब,
अंधेरा हटाने तुम्हें मशाल चाहिए कि नहीं चाहिए?
तुम कहते हो जब हाँ, वो यह भी पूछता है
लगे ठंड तो इसी मशाल से घर जलाना चाहिए कि नहीं जलाना चाहिए?
पहरेदारी की जिम्मेदारी उसे दी है तुमने,
चौकीदारी बड़ी जिम्मेवारी से निभा रहा है।
सूनसान रातें कटती नहीं है उसकी जाड़े में
जागते रहो! कहकहकर सारा देश सुलगा रहा है।
उसे दखलंदाजी पसंद नहीं है अपने काम में
अमन चाहिए उसे, चाहे बहें रक्त की सहस्त्र धाराएं।
वो कहता है चांद को सूरज, रात को दिन,
तो लोग हाँ में हाँ मिलाएं या सर कलम कराएं।
गुरूर में तो वो लाड़ले भी थे बड़े प्यार से दुलारे हुए
खाक छानते हैं आजकल, बैठे हैं विधेयक गुरूर से फाड़े हुए,
यह देश है, मवेशियों की तरह हांकना बन्द करो
गुरूर छोड़ दो कि हम पालतू हैं, तुम्हारे बाड़े हुए।
-सुरेन्द्र कुमार पटेल
1 टिप्पणी:
great sir.
plzz read twice and think deep to know what's it says.
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