सामाजिक
कार्य व्यक्तिगत क्षमता का सही उपयोगः
वीरेन्द्र कुमार पटेल
मनुष्य एक
सामाजिक प्राणी है। वह अपने व्यक्तित्व का विकास समाज में रहकर ही करता है। वह
समाज में रहकर जीवन की कठिन चुनौतियों को देखते समझते हुए अपनी जीवन यात्रा में
आगे बढ़ता है। फिर एक ऐसे चैराहे पर खड़ा हो जाता है जहां से उसे किसी एक रास्ते का
चयन करना होता है। इस चयन के पीछे की बाध्यताएं कई बार उसे ऐसे क्षेत्र में ले
जाती हैं जहां से उसे लगने लगता है कि उसे जो कुछ और करना चाहिए था, वह पीछे
छूट गया है। यह छूट जाना ही व्यक्ति को समाज में पीछे मुड़कर देखने के लिए बाध्य
करता है। एक दूसरी स्थिति यह होती है कि व्यक्ति जीवकोपार्जन के लिए जो कुछ करता
है उसमें पूर्णता प्राप्त करने के बाद भी उसे ऐसा लगता है कि उसकी भावनात्मक
संतुष्टि कहीं न कहीं अधूरी रह गई है। उस भावनात्मक संतुष्टि के लिए भी वह पीछे
मुड़कर देखने की कोशिश करता है। कुछ अपनी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने
के लिए भी सामाजिक कार्य की ओर प्रवृत्त होते हैं।
हमारे देश
के लोग भावप्रधान हैं। यह भाव प्रधानता सामाजिक रिश्तों में हमें देखने को मिलती
है। यदि हमारे वृहत समाज के लिए कोई कुछ करता है तो लोग उसे अत्यधिक सम्मान की
दृष्टि से देखते हैं और कई बार तो उसे भगवान का दर्जा भी दे देते हैं। लोगों का यह
भाव सामाजिक सेवा करने वाले व्यक्ति का ओहदा समाज में बहुत ऊंचा कर देता है। समाज में
उसकी एक अलग प्रतिष्ठा स्थापित हो जाती है। वह आदरणीय तो होता ही है, अनुकरणीय
भी हो जाता है। इसे लोग सामाजिक कार्य नहीं बल्कि सामाजिक सेवा कहते हैं। सामाजिक
कार्य की यह प्राचीन धारणा है। हमारा भारतीय समाज आज जिस अच्छी स्थिति में है, उसमें इस
प्रकार के सामाजिक सेवा का अहम योगदान
है। ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई फुले, आचार्य
विनोबा भावे आदि सैकड़ों मनीषियों के नाम इस श्रेणी में लिए जा सकते हैं। इसके
अतिरिक्त भारतीय समाज के जातिगत समूहों में भी अनेकानेक ऐसे नाम हैं जिन्होंने
अपने जातिगत समूहों की परम्परागत रूढ़ियों को तोड़ने के लिए अपनी सेवा दी है। जिसके
कारण ही हम आधुनिक समाज की ओर प्रवृत्त हुए हैं। सामाजिक सेवा के बजाय सामाजिक
कार्य की अधिक जरूरत महसूस करते हुए भी हम इनके सामाजिक सेवा के महत्व को विस्मृत
नहीं कर सकते।
हमारा
वर्तमान सामाजिक परिप्रेक्ष्य सामाजिक
सेवा को नये तरीके से परिभाषित करने की जरूरत महसूस करता है। जहां सामाजिक सेवा को
सामाजिक कार्य के रूप में देखे जाने की दृष्टि विकसित करने की मांग है। इस रूप में
सामाजिक सेवा के बजाय सामाजिक कार्य की अधिक उपादेयता सिद्ध होती है। सामाजिक कार्य, व्यक्ति
को केवल भावनात्मक संतुष्टि प्रदान नहीं करता बल्कि सामाजिक कार्य को व्यक्ति
के एक अनिवार्य उत्तरदायित्व के रूप में रेखांकित करता है।
यह तो
विदित ही है कि मानवीय सभ्यता सदैव मानव जीवन को सरल बनाने के उद्देश्य से लगातार
आगे बढ़ी है। आज तक जितने भी खोज हुए हैं वे सब मानव जीवन को सरल और अधिक सुविधाजनक
बनाए जाने के लिए है। इस सुविधा को प्राप्त करने में कई बार इंसान प्रकृति से
संघर्ष करता है और प्रकृति पर विजय पाने की होड़ में मनुष्य का कार्यक्षेत्र लगातार
बढ़ रहा है। मानव व्यवस्था बनी रहे इसके लिए हमने बहुत सारे उत्तरदायित्व सरकारों
को दिए हैं। फिर भी ऐसा लगता है कि हमारी एक उत्तम व्यवस्था बनाए रखना केवल सरकारी
प्रयास से संभव नहीं है। इसके लिए व्यक्तिगत स्तर पर भी छोटे-छोटे प्रयासों की
आवश्यकता है। इस रूप में सामाजिक कार्य केवल हमारी भावनात्मक संतुष्टि नहीं बल्कि
एक नागरिक होने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है।
अभी
सरकारों ने ऐसा कोई कानून नहीं बनाया है जिसमें व्यक्ति का सामाजिक कार्य में
प्रवृत्त होना बाध्यता हो। यह अलग बात है कि सामाजिक कार्य के नाम पर वह हमसे कुछ
कर संग्रहण करती है फिर उसका प्रयोग वह अपने तरीके से करती है। यह अच्छा है कि हम
अपने पसंद का सामाजिक कार्य चुनने के लिए स्वतंत्र हैं। इस प्रकार हम सामाजिक
कार्य के माध्यम से अपनी व्यक्तिगत रुचि के क्षेत्र को विकसित कर पाएंगे और अपने
व्यक्तित्व के उन हिस्सों का विकास कर पाएंगे जो हमारे जीविकोपार्जन के लिए चुने
गए व्यवसाय के कारण अधूरे रह गए हैं।
यह सही है
कि समाज में सामाजिक कार्य के प्रति आधुनिक दृष्टि का विकास नहीं हो पाया है। यही
कारण है कि समाज में जब कोई व्यक्ति सामाजिक कार्य के लिए प्रयास करता है तो
प्रारम्भ में उसे थोड़ी कठिनाई महसूस होती है क्योंकि सामाजिक कार्य व्यक्ति की
जिम्मेदारी है ऐसी अवधारणा हमारे समाज में कम लोगों के पास है। अतः ऐसे कार्य की
शुरुआत करने वाले व्यक्ति को समाज एक अलग नजरिए से देखता है। कुछ उसे चिढ़ाने के
मूड़ में होते हैं और उस पर फबतियां भी कसते हैं जैसे कहते सुना जा सकता है- ‘‘अच्छा! अब
ये चले हैं महात्मा गांधी बनने।’’ और दूसरे
वे लोग होते हैं जो सामाजिक कार्य करने वाले व्यक्ति को भगवान ही मान लेते हैं।
उनके सामने सामाजिक कार्यकर्ता को अपनी छवि को सदैव परफेक्ट बनाए रखने की चुनौती
होती है। और फिर जब ऐसा कोई प्लेटफाॅर्म तैयार हो जाता है तब असंख्य लोग
प्लेटफाॅर्म पाने की जद्दोजहद करते दिखाई देते हैं जहां से सामाजिक कार्यकर्ता का
अपना कुछ रह पाना संभव ही नहीं हो पाता।
सामाजिक
कार्य का जो बिल्कुल नया कलेवर है, वह और भी
भयावह है। लोग स्वयंसेवी संगठन के रूप में पंजीयन प्राप्त कर रहे हैं। और फिर
स्वयंसेवी संगठन के रूप में स्थापित करने के बाद सरकारी अधिकारियों से मिलीभगत कर
सरकारी सहायता प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। सामाजिक कार्य का यह विकृत स्वरूप
समाज में उचित व्यवस्था बनाए रखने के स्थान पर और अधिक अव्यवस्था पैदा कर रहा है।
भ्रष्टाचार के नये स्वरूप की स्थापना कर रहा है। विडम्बना यह है कि कुछ ऐसे
स्वयंसेवी संगठन बन गए हैं जिन्हें राजनैतिक पार्टियों का संरक्षण प्राप्त है।
उनकी सरकार बनने पर बहुत सी योजनाएं केवल उन्हीं के स्वयंसेवी संगठनों द्वारा
संचालित की जा रही हैं।
खैर, सिक्के के
दो पहलू सदैव विद्यमान रहेंगे। हम उस पक्ष को देखने की कोशिश करें जिससे हमारा भला
हो सकता है। इस रूप में हम स्वयं को समाज का एक जिम्मेदार इकाई मानें, समाज में
अच्छे और प्रजातांत्रिक मूल्यों को स्थापित करने, समाज की
साझी जिम्मेदारी स्थापित करने में अपने योगदान को निभाने की जुगत करें। हम सामाजिक
कार्यों को करने से प्राप्त होने वाले महानताबोध को भूल जाएं। हम उसे पूर्ण
निरपेक्ष भाव से एक जिम्मेदारी के रूप में स्वीकार करें। यदि इस दृष्टि से हम
सामाजिक कार्य को स्वीकार करेंगे तो पूर्ण विश्वास है कि सामाजिक कार्य में कभी बाधा
नहीं आएगी किन्तु आपके सामाजिक कार्य की वजह से परिवर्तन आएगा। यह कोरा दावा इसलिए
नहीं है क्योंकि कई देशों में ऐसे सामाजिक कार्यों की शुरुआत हो चुकी है और वे सफल
हैं।
आइए, अब देखें
कि इसे कैसे शुरू करें। यदि हम एक बड़े संस्थान की स्थापना करना चाहें तो हमें एक
बड़े प्रबंधन की आवश्यकता होगी। एक बड़ी तैयारी की आवश्यकता होगी। हो सकता है हमारा
पूरा जीवन केवल सोचने में ही चला जाय। मान लीजिए हम शिक्षा के क्षेत्र में कुछ
करना चाहते हैं। मान लीजिए आप चाहते हैं कि आपका योगदान ऐसा हो कि आपके योगदान से
लोग पढ़ लिख जाएं। इसके लिए यह आवश्यक नहीं है कि हम कोई बड़ी संस्था खोलें। आप खुद
किसी ऐसी बस्ती में जाकर जहां जरूरतमंद हैं उन्हें दिन में एक घण्टा पढ़ा सकते हैं।
हो सकता है आपके पास इसके लिए समय न हो। तब आप तय करें कि आप अपनी आय में से कितनी
धनराशि इस क्षेत्र में लगा सकते हैं। हो सकता है आप केवल हजार या पांच सौ रुपए
प्रतिमाह लगाना चाहें। आप इतने से ही शुरुआत कर सकते हैं। आप किसी ऐसे जरूरतमंद
व्यक्ति को तलाशें जिसे पैसों की अत्यंत आवश्यकता हो और वह पढ़ाना जानता हो। आप
हजार-पांच सौ रुपए देकर दो-चार कमजोर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने का काम उसे दे सकते
हैं। आप यह सवाल कर सकते हैं कि इतने से समाज में परिवर्तन कैसे आएगा? इसके लिए
जवाब यही है कि आप करके देखिए। जब आप ऐसा करेंगे तो सामाजिक कार्य के क्षेत्र में
ऐसा करना आम हो जाएगा और लोग बिना संकोच के ऐसा करने लगेंगे। कोशिश करके देखिए।
हो सकता
है आप पर्यावरण प्रेमी हों। आप खुद वृक्षारोपण कर सकते हैं। या फिर आप किसी
व्यक्ति को वर्ष में 100-50 पौधे लगाने और उसकी देख-रेख करने की जिम्मेदारी दे
सकते हैं। उसके एवज में आप उस व्यक्ति को उसका मेहनताना देंगे। इस प्रकार के कार्य
आप स्वयं अथवा समान विचारधारा वाले दो-चार-छः लोगों का समूह बनाकर कर सकते हैं।
इसी प्रकार स्वास्थ्य के बारे में उचित सलाह देकर भी सामाजिक कार्य किया जा सकता
है। यह निर्भर करता है कि आपकी रुचि किस क्षेत्र में है और सबसे बड़ी बात यह है कि
क्या आप सामाजिक कार्य को एक जिम्मेदारी के रूप में स्वीकार करते हैं। कई
विश्वविद्यालयों द्वारा सामाजिक कार्य का पाठ्यक्रम प्रारंभ किया गया है। सामाजिक
कार्य में अत्यधिक रुचि रखने वालों को सामाजिक कार्य का पाठ्यक्रम कर लेना चाहिए।
इसके माध्यम से वह समाज में नेतृत्व करने के गुण सीख सकेंगे और सामाजिक कार्य के
अन्य आयामों को सीख सकेंगे।यहां पर संक्षेप में उन क्षेत्रों या विषयों का उल्लेख
किया जा रहा है जिन क्षेत्रों में सामाजिक कार्य की संभावनाएं विद्यमान हैं-
0 बाल
संरक्षण सेवाएं
0 सलाह
एवं रोगोपचार
0 परामर्श
एवं सेवाएं
0
सामुदायिक विकास
0 प्रौढ़
सुरक्षा
0 पर्यावरण
0 परिवार
कल्याण एवं नियोजन
0 मानव
संसाधन प्रबंधन
0
चिकित्सा सामाजिक कार्य
0 मानसिक
स्वास्थ्य
0 समाज
सेवा प्रबंधन
0 मातृ
एवं शिशु स्वास्थ्य
0 गरीबी
उन्मूलन
0 व्यक्ति
एवं विशेष आवश्यकताएं
0 ग्रामीण
एवं शहरी विकास
0
विद्यालय सामाजिक कार्य
0 सामाजिक
कार्य प्रशासन एवं नीति
0 सामाजिक
कार्य शिक्षा एवं अनुसंधान
0 सामाजिक
विकास
0 अक्षम
व्यक्तियों के साथ कार्य करना
0 युवा
कार्य
0
बाल.कल्याण आदि
सामाजिक
कार्य आपके भीतर की कल्याणकारी भावना पर आधारित है। यह उतना ही अधिक पुष्पित और
पल्लवित होगा जितना अधिक आपकी भावना लोककल्याणकारी होगी। इंसान जीवन में बहुत कुछ
खोता और पाता है, किन्तु जीवन के अंतिम क्षण में उसे केवल वही पल सुख
देते हैं जिनमें वह निःस्वार्थ भाव से किसी और के लिए कुछ अच्छा करता है। आपकी
अपनी संतान पढ़-लिखकर योग्य बन जाए उससे आपको प्रतिष्ठा प्राप्त होगी। आपके असहाय
होने की स्थिति में आपकी संतान आपकी सहायता करेगी। इससे आपको दैहिक और भावनात्मक
सुख मिलेगा। किन्तु इस सुख की कल्पना से कहीं अधिक सुख एक ऐसे अनाथ को पढ़ा-लिखाकर
मिलेगा जो सिवाय आपकी सहायता के नहीं पढ़-लिख सकता था। अतः हम सामाजिक कार्य को
अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारी और लोककल्याण, स्वयं की
आत्मसंतुष्टि के लिए करें जिसमें हमारे व्यक्तित्व के विकास की संभावनाएं भी हैं।
इससे ही हमारा और हमारे समाज का तीव्र विकास संभव हो सकेगा।
आलेख:वीरेन्द्र कुमार पटेल
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3 टिप्पणियां:
बहुत बहुत धन्यवाद.........
बहुत बहुत धन्यवाद.........
धन्यवाद सर
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