पुट्टी
जमाना पुट्टी का है। आप कितना भी महंगा घर बनवा लीजिए, यदि आपने पुट्टी नहीं कराई तो सब बेकार है। इसी तरह मानव स्वभाव में जो पुट्टी लगी है, उसका आकर्षण दिव्य और चमत्कारिक है। पुट्टी लगाना कोई नई बात नहीं है, पहले भी लोग पुट्टीे लगाते थे। परन्तु तब लोग उसे लीपापोती कहा करते थे। आजकल लीपापोती शब्द का प्रयोग करना अठारहवीं शताब्दी में होने का बोध कराता है, अतः जहां-जहां लीपापोती शब्द का प्रयोग होता था वहाॅं-वहाॅं पुट्टी शब्द का प्रयोग करना चाहिए। वैसे, सरकार के हिन्दी विभाग को बकायदा इस बात की अधिसूचना जारी करनी चाहिए कि पूर्व में किए गए लीपापोती शब्द को पुट्टी शब्द से प्रतिस्थापित किया जाता है। वैसे भी आप देखेंगे तो पाएंगे कि पिछले कुछ वर्षों से पुट्टी शब्द का प्रयोग ही नहीं वरन पुट्टी का उपयोग भी बढ़ा है। वर्तमान की सरकारें चुनाव पूर्व कुछ न कुछ घोषणाएं तो करती ही हैं, उनमें से बहुत सी घोषणाएं ऐसी होती हैं जिन्हें सरकार बनते ही रातोंरात पूरी करनी होती है। अब भला, कोई सरकार रातोंरात ऐसा क्या करिश्मा करे जिससे उसकी घोषणाएं पूरी हो जाएं। ऐसे में पुट्टी लगाना ही काम आता है। पुरानी सरकार की पुरानी योजनाओं पर वर्तमान सरकार पुट्टी लगाकर रातोंरात करिश्मा करने मे सफल हो जाती है।
कार्यालयों में पुट्टी का जमकर प्रयोग होता है। नया अफसर आता नहीं कि पुट्टी के कारीगर उसे घेर लेते हैं। यहाॅं पर प्रथमतः पुट्टी के नमूनों की जाॅंच होती है। पुट्टी के सभी कुशल कारीगर अपनी-अपनी पुट्टी का प्रदर्शन करते हैं। अफसर को जिसकी पुट्टी भा जाती है, फिर वह कारीगर उस अफसर के सम्पूर्ण कार्यकाल में पुट्टी लगाता रहता है। पहले की संस्कृति में इन पुट्टी लगाने वालों को चम्मच कहा जाता था। यह शब्द लगभग पुराना हो चला है और लोग न जाने क्यों चम्मच शब्द से नाक-भौं भी सिकोड़नें लगे हैं। अतः अब आप पुट्टी शब्द का प्रयोग करके देखिए। लोगों को अवश्य भाएगा।
इस पुट्टी का प्रयोग सामाजिक सम्बन्धों को बनाए रखने में भी काफी मात्रा में किया जाने लगा है। आपके द्वार कोई अपना काम लेकर आया है, आप काम न कीजिए किन्तु उससे पुट्टी लगाकर बात कर लीजिए। आपको यकीन नहीं होगा वह व्यक्ति आपके बारे में आपसे सौ गुना अधिक पुट्टी लगाकर लोगों को बताएगा। वह अपना काम भूल जाएगा। वह सिर्फ आपकी पुट्टी याद रखेगा। बातों में पुट्टी लगाइए। कुछ नया करने की जरूरत नहीं है। आप किसी आफिस के अधिकारी हों या कर्मचारी, आपको पुट्टी लगाना आना चाहिए। यदि आप अधिकारी हैं तो आप पुट्टी लगाकर अपने अधीनस्थ कर्मचारियों का मन मोह लेंगे और यदि आप कर्मचारी हैं तो पुट्टी लगाकर अधिकारी का मन मोह सकते हैं। काम करने की जरूरत नहीं है सिर्फ पुट्टी लगाइए। जो कर्मचारी या अधिकारी पुट्टी लगाना नहीं जानता वह शीघ्र ही संक्षारण का शिकार हो जाता है। बिना पुट्टी का मकान आजकल टिकता कहां है?
पुट्टी के भीतर क्या है? यह कोई असभ्य ही खरोंच मारकर देखेगा। वह कोई निर्लज्ज और दुस्साहसी ही होगा जो अपने नाखूनों से पुट्टी को रगड़ेगा। उस नालायक को बिल्डिंग की नहीं तो अपने नाखूनों की चिन्ता तो होगी है। वैसे भी आजकल नाखून भी तो पुट्टी चढ़ी ही होती हैं अधिकतर।
सैकड़ों करोड़ों की बिल्डिगें, पुट्टी के दम पर खड़ी रहती हैं। बिल्कुल भी हिलती-डुलती नहीं हैं। सरकार जो छड़, सीमेण्ट और ईंटो पर खर्च करती है वह सब बेकार ही जाता है। बिल्डिंग तो मात्र पुट्टी के दम पर खड़ी रहती है। डामरीकृत सड़कों में भी पुट्टी चढ़ाई जाती है। डामर की पुट्टी! उस सड़क में जिससे अधिकारियों से लेकर मंत्रियों तक की सैकड़ों गाड़ियाॅं रोज निकल जाती हैं, सिर्फ पुट्टी उसे संभाले रहती है!
पुट्टी का दखल केवल आम लोगों तक नहीं है। इस पुट्टी का दखल घर, सड़क और संसद हर जगह है। हाल ही में समाचार-पत्रों में एक मंत्री के बंगले में पुट्टी पर किए गए खर्चे को लेकर छापा गया। उस पत्रकार को संभवतः पुट्टी के आकर्षण, प्रयोग और प्रभाव का ज्ञान नहीं रहा होगा। नहीं तो वह मंत्री द्वारा पुट्टी पर किए गए खर्च पर सवाल खड़ा नहीं करता। पुट्टी लगाकर मंत्री भी हुआ जा सकता है। चुनाव परिणाम की घोषणा के साथ ही पार्टी के लोग अपने-अपने आकाओं के घर पुट्टी लगाने पहुॅंच जाते हैं। जिसकी पुट्टी आका को भा जाती है वही अपनी पार्टी की ओर से सरकार बनाने की हरी झंडी पा जाता है। बाद में मंत्री बनने के लिए लोग पुट्टी लगाते-फिरते हैं। माना कि संविधान निर्माताओं ने चुनाव लड़ने के लिए कोई योग्यता निर्धारित नहीं की परन्तु क्या आज के जमाने में जब हम चन्द्रयान जैसे मिशन को कामयाब कर रहे हैं तब क्या सिर्फ पुट्टी लगाना ही अंतिम योग्यता होनी चाहिए परन्तु पुट्टी का कमाल देखिए! यही योग्यता मंत्री बनने के काम आ जाती है।
पुट्टी के जमाने में पुट्टी ही दिखती है। उसी के आधार पर भवन की भव्यता का आकलन किया जाता है। हृदय में अथाह प्रेम हो, वह प्रदर्शित नहीं हुआ तो सब बेकार है। इसके उलट प्रेम न हो किन्तु उसका प्रदर्शन हो जाए तो व्यक्ति उस प्रेम का कायल हो जाता है। गहराई में झांककर देखने का चलन खतम सा हो गया है। जो हो, वह दिखना चाहिए और वह शीघ्रता से बिना किसी यत्न के दिखना चाहिए। जो भाव, हृदय के घाव भर दे, ऐसे भावों की अपेक्षा नहीं है। ऐसे भाव सागर में डूबे मोती-सा होते हैं। असल मोती तो गोता लगाकर निकालना होता है। लेकिन कीमत मोती की नहीं है, मोती की चमक की है। किसी तुच्छ-सी चीज पर मोती की चमक प्रदान करना अधिक सरल है बजाय उसे सच में मोती बनाने के। यह सरल भी है और सस्ता भी। यह दोनों के लिए फायदेमंद है। मोती की चमक मिल जाए और सागर में गोता भी न लगाना पड़े, इससे बढ़िया क्या हो सकता है। अस्तु पुट्टी मोती जैसी कीमती चीजों में भी अपना दखल रखती है। बाजार में आपको पुट्टी वाली मोती मिल जाएगी!
कार्यालयीन त्रुटियों के सुधार हेतु पुट्टियाॅं बाजार में कब की आ चुकी हैं। हम-आप उसे सफेदा के नाम से जानते हैं। जब से इस सफेदा नाम की पुट्टी आ गई है, सरकारी कर्मचारियों का कागजी कार्यवाही करने में होने वाली गलतियों का डर खत्म हो गया है। इनसे कुछ गलतियाॅं हो जाय तो बाकायदा खीस निपोरते हुए उस पर पुट्टी चढ़ा देते हैं। मजाल क्या कि उनका साहब भी उनका बाल बांका कर सके। कुछ-कुछ मुलाजिम तो बकायदा झोले में ऐसी पुट्टी लेकर चलते हैं। कभी-कभी समझ नहीं आता यह पुट्टी है या असीमित शक्ति का प्रभाव रखने वाली कोई जादूगरनी!
जिनके प्रेम संबंध खतम हो गए, चाहे उस प्रेम का स्वरूप कुछ भी रहा हो। उसमें एक ही कमी थी। उन्हें पुट्टी चढ़ाना नहीं आता था। वे पुट्टी के कुशल कारीगर नहीं थे। प्रेम के संसार में पुट्टी का योगदान है। जिनका दाम्पत्य जीवन सफल है, वे पुट्टी चढ़ाने के विशिष्ट कारीगर हैं। वह कोई बात असमय नहीं कह सकते। पुट्टी लगाकर और समयानुकूल कही गई बात का प्रभाव ही एक-दूसरे को लम्बे समय तक आकर्षण में बांधे रखता है।
पुट्टी लगाना जितना आसान है, उसके उघर जाने का खतरा भी उतना ही अधिक है। यदि भ्रष्टाचार की फाइलों से पुट्टियाॅं हट जाएं न जाने कितनों को जेल की हवा खानी पड़े। सरकारी इमारतें जो पुट्टियों के बल पर खड़ी हैं, पुट्टियों के हटाते ही भरभराकर गिर पड़ेंगी। सड़कों पर से पुट्टियाॅं हटेंगी तो सड़कें गायब मिलेंगी। ऐसे ही इंसानी संबंधों की पुट्टियाॅं धुल जाएं तो कितने ही रिश्ते बेकार हो जाएंगे। जो लोग आपसी प्रेम की डींगें हांकते फिरते हैं, पुट्टी हटते ही उनकी असलियत संसार के सामने आ जाएगी। लेकिन लोग समझदार हैं। जो समझदार नहीं हैं, वह समझदारी की पुट्टी तो जरूर चढ़ाए रहते हैं। वह पुट्टियों का लगातार ध्यान रखते हैं। वह पुट्टी की चमक फीकी नहीं होने देते। वह पुरानी पुट्टियों पर नई पुट्टियां चढ़ाते रहते हैं।
सरकारी कर्मचारियों और अफसरों द्वारा दीमक पालने की कहानी अब पुरानी हो गई है। अब जबसे पुट्टी का आविष्कार हुआ है, बेचारे दीमक बदनाम होने से बच रहे हैं और पुट्टी तो कभी बदनाम हो ही नहीं सकती। लोग इतने कृतध्न नहीं हैं कि जो ढकने का काम करे, वे उसे बदनाम करेंगे। पुट्टी तो शान-शौकत, दिव्यता और भव्यता का प्रतीक है। लोग उसकी तारीफ ही करेंगे। जिन सत्ताधारियों ने जनता से पुट्टी मिला-मिलाकर बात की, जनता ने उन्हें सराहा है और पुट्टी न लगाने वाली सरकार को पानी पी-पीकर कोसा है। ये बात अलग है कि अन्य चीजों की तरह ही पुट्टी को भी अमरता का वरदान प्राप्त नहीं है। जो बिल्डिंगें केवल पुट्टियों के सहारे खड़ी हैं वह एक दिन धराशायी होंगी ही और उनको बनाने वाली सरकारें भी!
रचना:सुरेन्द्र कुमार पटेल
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8 टिप्पणियां:
बहुत ही सराहनीय लेख
Shandar
बहुत सही कहा आपने
बहुत सही कहा आपने
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति सर जी। 💐💐👏👏
बहुत-बहुत आभार आप सभी का. कृपया रचना के सम्बन्ध में अपना अमूल्य सुझाव देते रहें.
बहुत सुंदर वर्तमान परिवेश में हम सब को आइना देखना चाहिए कि हमारा रूप कितना सुंदर है।
बहुत सुंदर वर्तमान परिवेश में हम सब को आइना देखना चाहिए कि हमारा रूप कितना सुंदर है।
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