बहुत दिनों से घर भीतर,
बच्चे रोते रहते हैं।
बहुत दिनों से गांव मोहल्ले,
पनघट सुने रहते हैं।
हे वादल!उनकी पुकार सुनना,
मेरे देश का हर गरीब भूखा है।
तुम इस बरस खुशी से बरसना,
उनकी पुकार सुनना।
मेरी इच्छा पूरी करना।
अन्न- धन की हो खुशहाली
सबके चेहरे हो प्रभात की लाली
जो तप कर झुलस गए सड़कों पर
अपनी बौछारें रखना तन पर।
सूने कंधे, सूनी गोद,
भरदो इनके जीवन में प्रमोद।
उन्हें पुराने दिन लौटा दो,
अच्छे दिन ठीक नहीं है।
इनसे कोई सुखी नहीं है।
हे वादल! उनकी पुकार सुनना,
ताल, तलैया और उपवन,
खेत, क्यारी हर अंगना,
मेरा भी उनको संदेशा कहना।
यह आपदा का समय,
वक्त का फैसला है।
कुछ गुनाहों की सजा है।
आपत्ती किसी एक पर नहीं,
देश-विदेश मानवता पर है।
ध्यान रखना आदमी ही,
आदमी के काम आता है।
बीत गई सदियां....
कोई दैवीय शक्ति नहीं आई,
बस मानव ने मानव की जान बचाई।
भूख! प्रथम सत्य है,
इससे बड़ा रोग नहीं है।
पता करो पड़ोस में,
कोई भूखा तो नहीं है।
मानव का यही धर्म है,
अन्यथा मनुष्य भी पशु है।
लोभ- लाभ को छोड़कर,
भावनाओं से जुड़ना।
तय करो मानव बन कर,
तुम द्रोपदी के पक्ष में हो,
कि दुशासन के पक्ष में।
कोई बेसहारा तो नहीं है,
आपत्ति का मारा तो नहीं है।
विज्ञान को भी बता देना,
जो शांत सोया हुआ है।
यहां सबने कुछ खोया हुआ है।
प्रकृति से हस्ताक्षेप,
महंगा पड़ेगा....
शराब ने अभी हाथ धुलवाया,
जागो जन जागो, जागो.....
अभी ना जागे तो,
शराब से नहाना पड़ेगा।
©️कोमल चंद कुशवाहा
शोधार्थी हिंदी
अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा
मोबाइल 7610103589
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