गुरुवार, जून 11, 2020

पावस पर्व (कविता)--डी.ए.प्रकाश खाण्डे


पावस पर्व
पावन पावस पर्व प्रकृति का,
बूंदो का बौछार जहां।
वन-उपवन आलिंगन करते ,
नदियों की सौ धार जहां।
मृदा मृदुल; हो जाती है,
पर्ण प्रसून अम्बार जहाँ।
पशु-पक्षी प्यास बुझाते ,
हरियाली श्रृंगार जहाँ।
धरती की आभा से सब,
नित उड़ते पर्जन्य जहाँ।
मोर नाचता पंख पसारे ,
पावस ऋतू है धन्य जहाँ।
आषाढ़ सावन और भादों में,
सुन्दर सुखमय हों किसान।
वर्षा जल संरक्षित करके ,
जग में अपनी हो पहचान।
हरियाली और कजलियाँ ,
मिल-जुल पावस पर्व मनाएं।
जल-वन और अन्न का हम ,
पावन प्रकृति पर्व मनाएं।
पावन पावस पर्व सुहावन,
पादप सभी लगाते हैं।
नदी प्रगति;मुदित सरोवर,
जल-थलचर हर्षाते हैं।
ऊषा से रजनी तक वर्षा,
नियम प्रकृति बतलातें हैं।
जल- समीर सुवासित हो,
हम सुपावस पर्व मनाते हैं।
Ⓒडी.ए.प्रकाश खाण्डे
शासकीय कन्या शिक्षा परिसर पुष्पराजगढ़,जिला--अनूपपुर(मध्यप्रदेश)

कोई टिप्पणी नहीं:

तनावमुक्त जीवन कैसे जियें?

तनावमुक्त जीवन कैसेजियें? तनावमुक्त जीवन आज हर किसी का सपना बनकर रह गया है. आज हर कोई अपने जीवन का ऐसा विकास चाहता है जिसमें उसे कम से कम ...