बन गए शिक्षक हम, जानो जन साथियो।
अब पढ़ालो बेटी को, मेरे…साथियो।
साक्षर बढ़ती गई, निरक्षर घटती गई
फिर भी बढ़ते शिक्षा को, न रुकने दिया।
छूट गए घर हमारे तो, कुछ कम नहीं।
शिक्षा का दर हमने, न घटने दिया।
पढ़ते-पढ़ते बढ़ा केरला साथियो।।
अब पढ़ालो बेटी को ........
मस्त रहने के समय, जिंदगी है मगर।
पढ़ने की रुत, निकली आती नहीं।
वह पिता क्या जो, सुता को पढ़ाते नहीं।
अब तो शाला बनी है, मेरे……साथियो।।
अब पढ़ालो बेटी को ..........
बचपना के समय को, न वीरान दो।
वो घर को बनायेगे, बहु मंजिलें।
अमीरी शिक्षा से, मिला रही है गले।
दे-दो बस्ता बेटी को, मेरे…साथियो।।
अब पढ़ालो बेटी को.........
उनके आँचल में हों न, अनपढ कोई।
दे-दो तुम उनको, सुख की ये जिंदगी।
ले न पाए गरीबी का, दामन कोई।
सीता वे ही,वे ही राधिका साथियो।।
अब पढ़ालो बेटी को .........
बन गए शिक्षक हम, जानो जन साथियो।
अब पढ़ालो बेटी को मेरे…भाइयो।।
रचनाकार: डी.ए. प्रकाश खाण्डे
अब पढ़ालो बेटी को, मेरे…साथियो।
साक्षर बढ़ती गई, निरक्षर घटती गई
फिर भी बढ़ते शिक्षा को, न रुकने दिया।
छूट गए घर हमारे तो, कुछ कम नहीं।
शिक्षा का दर हमने, न घटने दिया।
पढ़ते-पढ़ते बढ़ा केरला साथियो।।
अब पढ़ालो बेटी को ........
मस्त रहने के समय, जिंदगी है मगर।
पढ़ने की रुत, निकली आती नहीं।
वह पिता क्या जो, सुता को पढ़ाते नहीं।
अब तो शाला बनी है, मेरे……साथियो।।
अब पढ़ालो बेटी को ..........
बचपना के समय को, न वीरान दो।
वो घर को बनायेगे, बहु मंजिलें।
अमीरी शिक्षा से, मिला रही है गले।
दे-दो बस्ता बेटी को, मेरे…साथियो।।
अब पढ़ालो बेटी को.........
उनके आँचल में हों न, अनपढ कोई।
दे-दो तुम उनको, सुख की ये जिंदगी।
ले न पाए गरीबी का, दामन कोई।
सीता वे ही,वे ही राधिका साथियो।।
अब पढ़ालो बेटी को .........
बन गए शिक्षक हम, जानो जन साथियो।
अब पढ़ालो बेटी को मेरे…भाइयो।।
रचनाकार: डी.ए. प्रकाश खाण्डे
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