Beautiful poems on labour day
1.किसान है क्रोध
•••••••••••••••••
निंदा की नज़र
तेज है
इच्छा के विरुद्ध भिनभिना रही हैं
बाज़ार की मक्खियाँ
अभिमान की आवाज़ है
एक दिन स्पर्द्धा के साथ
चरित्र चखती है
इमली और इमरती का स्वाद
द्वेष के दुकान पर
और घृणा के घड़े से पीती है पानी
गर्व के गिलास में
ईर्ष्या अपने
इब्न के लिए लेकर खड़ी है
राजनीति का रस
प्रतिद्वन्द्विता के पथ पर
कुढ़न की खेती का
किसान है क्रोध !
2.
ईर्ष्या की खेती
••••••••••••••••
मिट्टी के मिठास को सोख
जिद के ज़मीन पर
उगी है
इच्छाओं के ईख
खेत में
चुपचाप चेफा छिल रही है
चरित्र
और चुह रही है
ईर्ष्या
छिलके पर
मक्खियाँ भिनभिना रही हैं
और द्वेष देख रहा है
मचान से दूर
बहुत दूर
चरती हुई निंदा की नीलगाय !
3.
मूर्तिकारिन
•••••••••••••
राजमंदिरों के महात्माओं
मौन मूर्तिकार की स्त्री हूँ
समय की छेनी-हथौड़ी से
स्वयं को गढ़ रही हूँ
चुप्पी तोड़ रही है चिंगारी!
सूरज को लगा है गरहन
लालटेनों के तेल खत्म हो गए हैं
चारो ओर अंधेरा है
कहर रहे हैं हर शहर
समुद्र की तूफानी हवा आ गई है गाँव
दीये बुझ रहे हैं तेजी से
मणि निगल रहे हैं साँप
और आम चीख चली -
दिल्ली!
4.
ऊख
…………..
(१)
प्रजा को
प्रजातंत्र की मशीन में पेरने से
रस नहीं रक्त निकलता है साहब
रस तो
हड्डियों को तोड़ने
नसों को निचोड़ने से
प्राप्त होता है
(२)
बार बार कई बार
बंजर को जोतने-कोड़ने से
ज़मीन हो जाती है उर्वर
मिट्टी में धँसी जड़ें
श्रम की गंध सोखती हैं
खेत में
उम्मीदें उपजाती हैं ऊख
(३)
कोल्हू के बैल होते हैं जब कर्षित किसान
तब खाँड़ खाती है दुनिया
और आपके दोनों हाथों में होता है गुड़!
5.
लकड़हारिन
(बचपन से बुढ़ापे तक बाँस)
••••••••••••••••••••••••••••••
तवा तटस्थ है चूल्हा उदास
पटरियों पर बिखर गया है भात
कूड़ादान में रोती है रोटी
भूख नोचती है आँत
पेट ताक रहा है गैर का पैर
खैर जनतंत्र के जंगल में
एक लड़की बिन रही है लकड़ी
जहाँ अक्सर भूखे होते हैं
हिंसक और खूँखार जानवर
यहाँ तक कि राष्ट्रीय पशु बाघ भी
हवा तेज चलती है
पत्तियाँ गिरती हैं नीचे
जिसमें छुपे होते हैं साँप बिच्छू गोजर
जरा सी खड़खड़ाहट से काँप जाती है रूह
हाथ से जब जब उठाती है वह लड़की लकड़ी
मैं डर जाता हूँ...!
6.
उम्मीद की उपज
•••••••••••••••••
उठो वत्स!
भोर से ही
जिंदगी का बोझ ढोना
किसान होने की पहली शर्त है
धान उगा
प्राण उगा
मुस्कान उगी
पहचान उगी
और उग रही
उम्मीद की किरण
सुबह सुबह
हमारे छोटे हो रहे
खेत से….!
चिहुँकती चिट्ठी
•••••••••••••••••
बर्फ़ का कोहरिया साड़ी
ठंड का देह ढंक
लहरा रही है लहरों-सी
स्मृतियों के डार पर
हिमालय की हवा
नदी में चलती नाव का घाव
सहलाती हुई
होंठ चूमती है चुपचाप
क्षितिज
वासना के वैश्विक वृक्ष पर
वसंत का वस्त्र
हटाता हुआ देखता है
बात बात में
चेतन से निकलती है
चेतना की भाप
पत्तियाँ गिरती हैं नीचे
रूह काँपने लगती है
खड़खड़ाहट खत रचती है
सूर्योदयी सरसराहट के नाम
समुद्री तट पर
एक सफेद चिड़िया उड़ान भरी है
संसद की ओर
गिद्ध-चील ऊपर ही
छिनना चाहते हैं
खून का खत
मंत्री बाज का कहना है
गरुड़ का आदेश आकाश में
विष्णु का आदेश है
आकाशीय प्रजा सह रही है
शिकारी पक्षियों का अत्याचार
चिड़िया का गला काट दिया राजा
रक्त के छींटे गिर रहे हैं
रेगिस्तानी धरा पर
अन्य खुश हैं
विष्णु के आदेश सुन कर
मौसम कोई भी हो
कमजोर....
सदैव कराहते हैं
कर्ज के चोट से
इससे मुक्ति का एक ही उपाय है
अपने एक वोट से
बदल दो लोकतंत्र का राजा
शिक्षित शिक्षा से
शर्मनाक व्यवस्था
पर वास्तव में
आकाशीय सत्ता तानाशाही सत्ता है
इसमें वोट और नोट का संबंध धरती-सा नहीं है
चिट्ठी चिहुँक रही है
चहचहाहट के स्वर में सुबह सुबह
मैं क्या करूँ?
8.
मेरे मुल्क की मीडिया
•••••••••••••••••••••
बिच्छू के बिल में
नेवला और सर्प की सलाह पर
चूहों के केस की सुनवाई कर रहे हैं-
गोहटा!
गिरगिट और गोजर सभा के सम्मानित सदस्य हैं
काने कुत्ते अंगरक्षक हैं
बहरी बिल्लियाँ बिल के बाहर बंदूक लेकर खड़ी हैं
टिड्डे पिला रहे हैं चाय-पानी
गुप्तचर कौएं कुछ कह रहे हैं
साँड़ समर्थन में सिर हिला रहे हैं
नीलगाय नृत्य कर रही हैं
छिपकलियाँ सुन रही हैं संवाद-
सेनापति सर्प की
मंत्री नेवला की
राजा गोहटा की....
अंत में केंचुआ किसान को देता है श्रधांजलि
खेत में
और मुर्गा मौन हो जाता है
जिसे प्रजातंत्र कहता है मेरा प्यारा पुत्र
मेरे मुल्क की मीडिया!
9.
मुसहरिन माँ
•••••••••••••••
धूप में सूप से
धूल फटकारती मुसहरिन माँ को देखते
महसूस किया है भूख की भयानक पीड़ा
और सूँघा मूसकइल मिट्टी में गेहूँ की गंध
जिसमें जिंदगी का स्वाद है
चूहा बड़ी मशक्कत से चुराया है
(जिसे चुराने के चक्कर में अनेक चूहों को खाना पड़ा जहर)
अपने और अपनों के लिए
आह! न उसका गेह रहा न गेहूँ
अब उसके भूख का क्या होगा?
उस माँ का आँसू पूछ रहा है स्वात्मा से
यह मैंने क्या किया?
मैं कितना निष्ठुर हूँ
दूसरे के भूखे बच्चों का अन्न खा रही हूँ
और खिला रही हूँ अपने चारों बच्चियों को
सर पर सूर्य खड़ा है
सामने कंकाल पड़ा है
उन चूहों का
जो विष युक्त स्वाद चखे हैं
बिल के बाहर
अपने बच्चों से पहले
आज मेरी बारी है साहब!
10.
️आँख️
••••••••••••••
1.
सिर्फ और सिर्फ देखने के लिए नहीं होती है आँख
फिर भी देखो तो ऐसे जैसे देखता है कोई रचनाकार
2.
दृष्टि होती है तो उसकी अपनी दुनिया भी होती है
जब भी दिखते हैं तारे दिन में, वह गुनगुनाती है आशा-गीत
3.
दोपहरी में रेगिस्तानी राहों पर दौड़ती हैं प्यासी नजरें
पुरवाई पछुआ से पूछती है, ऐसा क्यों?
4.
धूल-धक्कड़ के बवंडर में बचानी है आँख
वक्त पर धूपिया चश्मा लेना अच्छा होगा
यही कहेगी हर अनुभव भरी, पकी उम्र
5.
आम आँखों की तरह नहीं होती है दिल्ली की आँख
वह बिल्ली की तरह होती है हर आँख का रास्ता काटती
6.
अलग-अलग आँखों के लिए अलग-अलग
परिभाषाएँ हैं देखने की क्रिया की
कभी आँखें नीचे होती हैं, कभी ऊपर
कभी सफेद
होती हैं तो कभी लाल !
11.
श्रम का स्वाद
••••••••••••••
गाँव से शहर के गोदाम में गेहूँ?
गरीबों के
पक्ष में बोलने वाला गेहूँ
एक दिन गोदाम से कहा
ऐसा क्यों होता है
कि अक्सर अकेले में अनाज
सम्पन्न से पूछता है
जो तुम खा रहे हो
क्या तुम्हें पता है
कि वह किस जमीन का उपज है
उसमें किसके श्रम की स्वाद है
इतनी ख़ुशबू कहाँ से आई?
तुम हो कि
ठूँसे जा रहे हो रोटी
निःशब्द!
12.
"जोंक"
-----------
रोपनी जब करते हैं कर्षित किसान ;
तब रक्त
चूसते हैं जोंक!
चूहे फसल नहीं चरते
फसल चरते हैं
साँड और नीलगाय.....
चूहे तो बस संग्रह करते हैं
गहरे गोदामीय बिल में!
टिड्डे पत्तियों के साथ
पुरुषार्थ को चाट जाते हैं
आपस में युद्ध कर
काले कौए मक्का बाजरा बांट खाते हैं!
प्यासी धूप
पसीना पीती है खेत में
जोंक की भाँति!
अंत में अक्सर ही
कर्ज के कच्चे खट्टे कायफल दिख जाते हैं
सिवान के हरे पेड़ पर लटके हुए!
इसे ही कभी कभी ढोता है एक किसान
सड़क से संसद तक की अपनी उड़ान में!
रचना :-
©गोलेन्द्र पटेल (सर्वाधिकार रचनाकार)
मुसहरिन माँ
•••••••••••••••
धूप में सूप से
धूल फटकारती मुसहरिन माँ को देखते
महसूस किया है भूख की भयानक पीड़ा
और सूँघा मूसकइल मिट्टी में गेहूँ की गंध
जिसमें जिंदगी का स्वाद है
चूहा बड़ी मशक्कत से चुराया है
(जिसे चुराने के चक्कर में अनेक चूहों को खाना पड़ा जहर)
अपने और अपनों के लिए
आह! न उसका गेह रहा न गेहूँ
अब उसके भूख का क्या होगा?
उस माँ का आँसू पूछ रहा है स्वात्मा से
यह मैंने क्या किया?
मैं कितना निष्ठुर हूँ
दूसरे के भूखे बच्चों का अन्न खा रही हूँ
और खिला रही हूँ अपने चारों बच्चियों को
सर पर सूर्य खड़ा है
सामने कंकाल पड़ा है
उन चूहों का
जो विष युक्त स्वाद चखे हैं
बिल के बाहर
अपने बच्चों से पहले
आज मेरी बारी है साहब!
10.
️आँख️
••••••••••••••
1.
सिर्फ और सिर्फ देखने के लिए नहीं होती है आँख
फिर भी देखो तो ऐसे जैसे देखता है कोई रचनाकार
2.
दृष्टि होती है तो उसकी अपनी दुनिया भी होती है
जब भी दिखते हैं तारे दिन में, वह गुनगुनाती है आशा-गीत
दोपहरी में रेगिस्तानी राहों पर दौड़ती हैं प्यासी नजरें
पुरवाई पछुआ से पूछती है, ऐसा क्यों?
धूल-धक्कड़ के बवंडर में बचानी है आँख
वक्त पर धूपिया चश्मा लेना अच्छा होगा
यही कहेगी हर अनुभव भरी, पकी उम्र
आम आँखों की तरह नहीं होती है दिल्ली की आँख
वह बिल्ली की तरह होती है हर आँख का रास्ता काटती
6.
अलग-अलग आँखों के लिए अलग-अलग
परिभाषाएँ हैं देखने की क्रिया की
कभी आँखें नीचे होती हैं, कभी ऊपर
11.
श्रम का स्वाद
••••••••••••••
गाँव से शहर के गोदाम में गेहूँ?
एक दिन गोदाम से कहा
ऐसा क्यों होता है
कि अक्सर अकेले में अनाज
सम्पन्न से पूछता है
जो तुम खा रहे हो
क्या तुम्हें पता है
कि वह किस जमीन का उपज है
उसमें किसके श्रम की स्वाद है
इतनी ख़ुशबू कहाँ से आई?
ठूँसे जा रहे हो रोटी
निःशब्द!
12.
"जोंक"
-----------
रोपनी जब करते हैं कर्षित किसान ;
चूहे फसल नहीं चरते
फसल चरते हैं
साँड और नीलगाय.....
चूहे तो बस संग्रह करते हैं
गहरे गोदामीय बिल में!
टिड्डे पत्तियों के साथ
पुरुषार्थ को चाट जाते हैं
आपस में युद्ध कर
काले कौए मक्का बाजरा बांट खाते हैं!
प्यासी धूप
पसीना पीती है खेत में
जोंक की भाँति!
अंत में अक्सर ही
कर्ज के कच्चे खट्टे कायफल दिख जाते हैं
सिवान के हरे पेड़ पर लटके हुए!
इसे ही कभी कभी ढोता है एक किसान
सड़क से संसद तक की अपनी उड़ान में!
रचना :-
©गोलेन्द्र पटेल (सर्वाधिकार रचनाकार)
:कवि परिचय:
जन्म स्थान : ग्राम-खजूरगाँव , पोस्ट-साहुपुरी , जिला-चंदौली , उत्तर प्रदेश , भारत , 221009,शिक्षा : काशी हिंदू विश्वविद्यालय का छात्र(हिंदी आनर्स),माता-उत्तम देवी ,पिता-नंदलाल , मो.नं. : 8429249326,ईमेल : corojivi@gmail.com
कवि : गोलेन्द्र पटेल
(काशी हिंदू विश्वविद्यालय का छात्र)
माता : उत्तम देवी
पिता : नन्दलाल
भाषा : हिंदी
विधा : कविता व कहानी
पता :-
ग्राम - खजूरगाँव
पोस्ट - साहुपुरी
जिला - चंदौली
राज्य - उत्तर प्रदेश , भारत 221009
संपर्क सूत्र :-
मो.नं. : 8429249326
ईमेल : corojivi@gmail.com
BHU , Varanasi , Uttar Pradesh , India
[इस ब्लॉग में रचना प्रकाशन हेतु कृपया हमें 📳 akbs980@gmail.com पर इमेल करें अथवा ✆ 8982161035 नंबर पर व्हाट्सप करें, कृपया देखें-नियमावली]
जन्म स्थान : ग्राम-खजूरगाँव , पोस्ट-साहुपुरी , जिला-चंदौली , उत्तर प्रदेश , भारत , 221009,शिक्षा : काशी हिंदू विश्वविद्यालय का छात्र(हिंदी आनर्स),माता-उत्तम देवी ,पिता-नंदलाल , मो.नं. : 8429249326,ईमेल : corojivi@gmail.com
कवि : गोलेन्द्र पटेल
(काशी हिंदू विश्वविद्यालय का छात्र)
माता : उत्तम देवी
पिता : नन्दलाल
भाषा : हिंदी
विधा : कविता व कहानी
पता :-
ग्राम - खजूरगाँव
पोस्ट - साहुपुरी
जिला - चंदौली
राज्य - उत्तर प्रदेश , भारत 221009
संपर्क सूत्र :-
मो.नं. : 8429249326
ईमेल : corojivi@gmail.com
BHU , Varanasi , Uttar Pradesh , India
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2 टिप्पणियां:
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धन्यवाद् गोलेन्द्र जी
आपकी कविताओं में व्यंजना की मधुरिमा सर्वत्र व्याप्त है....कविताएं समाज के सत्यापन में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही हैं....
सच आपके कला-निपुणता को सलाम है ....
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