कपटी और
आडम्बरी जन
भिनसार कबहॅूं हो न पावहिं, जो मनुष कपटी भये।
सन्देह का व्यवहार पावहुं, जो अपनयों सब गये॥
दोस्त गाढ़े भी डरें सब, दूर से करते नमस्ते।
खाया जो धोखा बार एक भी,
फिर न फंसना चाह सकते॥
दूध में जलकर विलाई, छाछ भी डरकर पिये।
डरना रहा तो ठीक हद तक, दूर रिश्ता से किये॥
अपनी है उन्नति कर न पाये, अन्य की उन्नति खले।
कैसे घटायें शान इनकी, सोचकर मन में जलें॥
देखकर अपनों को आगे, दोष किस्मत पर न मढ़े॥
नीचा दिखाने कर इरादा, जयचन्द मारग पर चढ़े।
भावना ईर्ष्या की जागी, जलजला जिद पर पगे।
नींद इनकी साथ त्यागी, द्वेष से कुढ़ने लगे॥
अवसर तलाशें रात दिन, नीचा करें कैसे इसे।
हम तो खुद बरबाद हैं, बरबादी दें कैसे इसे॥
पग बढ़े आगे स्वजन के, पीछे खींचन में लगे।
अन्य गीदड़ भी जो देखी, दुम दबाकर भागन लगे॥
शेखी बघारे ज्ञान की पर शब्द बाचत न बने।
गर सीख इनको देन चाहो, तो उल्टी गिनती भी गिने॥
न बड़ों का ज्ञान इनको, न समझ सम्मान की।
लात घूंसा भूख इनकी, खेद न अपमान की॥
राज श्री गुटका, तम्बाकू शौक मदिरा पान की॥
घर किसी का लूट मारै, चाहत करें अरमान की॥
देखें परायी बहन बेटी, जात या परजात की।
अस्मत को लेते लूट जबरन, फिक्र न मरजाद की॥
हिन्दी का इनको ज्ञान ना हीं, बात अंग्रेजी की करें।
दस्तखत भी न कर सकें। पाकेट में पेन दो-दो धरें॥
देखा नहीं कस्बा निकट का, बात दिल्ली की करें।
जेब खाली नोट से पर, बात लाखन की करें॥
अरहर की टट्टी घर बनी, ताला लगे गुजरात की।
घटने न पाये शान तनिकौ, घर पानी घुसे बरसात की॥
सज-धज में कमती होत न, लालच लगी है ब्याह को।
लड़की जो देखी ठीक सी, आगे जा छेंकत राह को॥
भन्ना सिफारिश ब्याहें यदि, शान सतवें असमान पर।
मास दो एक चल न पाये, किश्ती रुकी मझधार पर॥
ब्याह घर आयी बहू जो, नइहर चली मुंह मोड़कर।
हेकड़ी गुम हो गयी, दारा चली सब छोंड़कर॥
पत्नी के सम्मुख हाथ जोड़े, जो न जुड़ते थे कभी।
जो कहोगे वह करेंगे, है कसम खाते अभी॥
मन मतंग जब लौ न जाहीं, तो लौ न धक्का खात हैं।
समझे सहोदर बात जब लौ, आबे समझ सब बात है॥
मन मतंग मानत नहीं, जब लौ धका न खाय।
समझ सहोदर शब्द को, नहिं जग होत हंसाय॥
रचना-
राम सहोदर
पटेल, शिक्षक
ग्राम-सनौसी, थाना-ब्योहारी, तहसील-जयसिंहनगर, जिला-शहडोल
(मध्यप्रदेश)
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