समाज के गौरव
(1)
तुम समाज के गौरव हो अब,
खुद को ऐसा
जानो।
करके अब
कुछ काम भी ऐसा,
निज
प्रतिभा पहचानो॥
बड़े भाग्य
से मिलता है ये,
देखो मानव
तन।
कर दो आज
समर्पित सब कुछ,
अपना तन मन धन॥
इंसानियत को समझो अपना,
सबसे पहला धर्म।
मूल यहीं है सब धर्मों का,
समझ लो
इसका मर्म॥
हिंदू
मुस्लिम सिख्ख ईसाई,
सब हैं भाई
भाई।
एक सूत्र
में बांध के रखना,
असली यहीं
कमाई॥
मानवता
पूजीं मानव की,
इसको नहीं
गवांना।
सच्चाई की
राह में सबको,
चलना और चलाना॥
कविता का
बस सार यहीं है,
दे कुछ ना
कुछ शिक्षा।
ठीक लिखा
तो धन्यवाद दें,
कवि की
अंतिम इच्छा॥
पाप नहीं क्या पुण्य ये करते?
बाहर से लगते हैं अच्छे,
नहीं कभी होते ये सच्चे।।
इनको जांचो परखो को पहले,
शातिर ये नहले पे दहले।।
आम आदमी के खातिर,
होकर तटस्थ कब ये लड़ते।।
जो सच को कहने से डरते,
पाप नहीं क्या पुण्य ये करते।।
ये समाज में विष ही बोते,
कभी किसी के नही ये होते।।
इनसे चहिए रखना दूरी,
इन्हें समझना बहुत जरूरी।।
अपने हिस्से के दोषों को,
सदा दूसरे पर ये मढ़ते।।
जो सच को कहने से डरते,
पाप नहीं क्या पुण्य ये करते?
खुद को हर दम श्रेष्ठ बताते,
अपने से अपना गुण गाते।।
कूट-कूट कर भरी चलाकी,
निजी स्वार्थ जैसे गुण बाकी।।
अपनी कमी छुपाने में ये,
रोज पुलिंदा झूठ का गढ़ते।।
जो सच को कहने से डरते,
पाप नहीं क्या पुण्य ये करते?
©️शिवानंद पटेल
(2)
जो सच को कहने से डरते,पाप नहीं क्या पुण्य ये करते?
बाहर से लगते हैं अच्छे,
नहीं कभी होते ये सच्चे।।
इनको जांचो परखो को पहले,
शातिर ये नहले पे दहले।।
आम आदमी के खातिर,
होकर तटस्थ कब ये लड़ते।।
जो सच को कहने से डरते,
पाप नहीं क्या पुण्य ये करते।।
ये समाज में विष ही बोते,
कभी किसी के नही ये होते।।
इनसे चहिए रखना दूरी,
इन्हें समझना बहुत जरूरी।।
अपने हिस्से के दोषों को,
सदा दूसरे पर ये मढ़ते।।
जो सच को कहने से डरते,
पाप नहीं क्या पुण्य ये करते?
खुद को हर दम श्रेष्ठ बताते,
अपने से अपना गुण गाते।।
कूट-कूट कर भरी चलाकी,
निजी स्वार्थ जैसे गुण बाकी।।
अपनी कमी छुपाने में ये,
रोज पुलिंदा झूठ का गढ़ते।।
जो सच को कहने से डरते,
पाप नहीं क्या पुण्य ये करते?
जिला उमरिया मध्य प्रदेश
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