गुरुवार, जून 11, 2020

कवि : अमलेश कुमार


कवि-१
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कवि 
अपनी पैनी नज़र से
देख सकता है
हर अदृश्य वस्तु
सुन सकता है 
सन्नाटों में छिपी हर आवाज़

वह 
गिन सकता है उन्हें भी
जो हैं अगणित

समेट कर अनुभव की मोतियाँ
सहेज लेता है
जीवन के हर एक पहलू को

महसूसता है उन्हें भी
जो होकर भी 
नहीं होते उसके इर्दगिर्द

अपने सामर्थ्य से
अतीत और भविष्य को
वर्तमान में कर लेता है बरामद

शब्द सेतुओं से हो
तय करता है एक लंबी यात्रा

वह पीता है
पन्नों पर बहती नदियों को
बना लेता है समंदर अंतस में

अंधेरों का सीना चीर
निकाल लेता है 
अपने हिस्से की रौशनी

वह समझ सकता है
परिंदों , पशुओं और दरख़्तों की भाषा 

कवि
महज़ कल्पनाओं में ही नहीं डूबा रहता
बल्कि वह खोज लेता है यथार्थ....कल्पनाओं में भी ।

©अमलेश कुमार
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1 टिप्पणी:

कोमल चंद कुशवाहा ने कहा…

जहां न जाए रवि वहां जाए कवि
कल्पना और विचारों का संयोजन ही कविता है आपने अपनी कलम के माध्यम से यह साकार कर दिया कि कवि त्रिकालदर्शी भी होता है जो सामान्य लोगों को दिखाई नहीं देता कवि उसे भी देख लेता है जो नहीं है कवि उसका भी आभास करता है इस तरह कवि अदृश्य को देखकर अक्सर सावधान करता रहता है।
यदि समाज के ऋण को चुकाने का श्रेय किसी को प्राप्त है तो वह रचनाकार ही है।

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