मंगलू का होशियार सिंह
बहुत पुरानी बात है किसी गाँव में एक गरीब परिवार रहता था। परिवार में स्वयं मंगलू, उसकी पत्नी समली और एक बेटा होशियार सिंह रहते थे। मंगलू अपना परिवार का भरण-पोषण बाजार में सूखी लकड़ियां बेचकर करता था, वह अपने गरीबी की परवाह न करते हुए पुत्र को बड़ी शान-शौकत से रखता था। मंगलू पढ़ा लिखा नहीं था जिसके कारण उसे कई परेशानियों का सामना करना पड़ा था। इसलिए मंगलू अपने पुत्र होशियार सिंह को अच्छी शिक्षा ग्रहण कराने का निश्चय किया। गाँव वालों ने उसके विचार को जानकर बेचारे गरीब का उपहास करते थे और उसके गरीबी का मजाक उड़ाते थे। रोज गाँव वाले ताना मारते थे कि- बेटे को लकड़ियां बेच कर कैसे पढ़ा लोगे? शिक्षा ग्रहण कराना तुम्हारे हैसियत से बाहर है। बेचारा मंगलू थोड़ा मुस्कुराकर कह देता था- "कोशिश कर रहा हूँ, शायद मेरे भाग्य में नहीं जो बेटे के भाग्य में शिक्षा ज्यादा है। आप सभी के पास तो धन-संपत्ति है परन्तु बेटे-बेटियों को क्यों नही पढ़ाते हैं।" यह सुनकर गांववालों का का मुँह उतर जाता था। मंगलू अपने कठिन परिश्रम से बेटे होशियार सिंह को स्कूल में दाखिल करा देता है। बेटा नित स्कूल जाता था और घर पर अभ्यास करता था। यथा नाम-तथा गुण के अनुसार होशियार सिंह सभी विद्यार्थियों से प्रखर बुद्धि का था, जिससे सभी शिक्षक और विद्यार्थी उसे चाहते थे। समय बीतता गया, जब होशियार सिंह ने कक्षा 12 वीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया तो मंगलू और उसकी पत्नी समली ने ख़ुशी से गांववालों को मिठाइयां बाँटी।
होशियार सिंह गाँव का पहला व्यक्ति था जो 12 वीं उत्तीर्ण किया था, उसकी इच्छा आगे भी पढ़ने की थी पर वह अपने मनोभाव को कह पाने में असमर्थ था। उच्च शिक्षा के लिए अब मंगलू की हिम्मत जवाब देने लगा पर होशियार सिंह के एक शिक्षक ने शासन की महत्वाकांक्षी योजनाओं की जानकारी दी। मंगलू अपने परिश्रम में भरोसा करते हुए बेटे होशियार सिंह के लगन को देखते हुए पास के कॉलेज में दाखिल करा दिया। होशियार सिंह बहुत ही मेहनती, आज्ञाकारी और ईमानदार विद्यार्थी था। कॉलेज में तरह-तरह के विद्यार्थियों को देखता रहता था, जो अपने माता-पिता के उन तमाम पैसो का आंनद लेते थे। उसके कुछ मित्रो ने उसे ऐशोआराम में व्यस्त करना चाहे पर वह किसी के बहकावे में नहीं आया और कॉलेज से M.sc. उत्तीर्ण कर लिया साथ ही Net भी उत्तीर्ण कर लिया।
मंगलू के गाँव के ही एक व्यक्ति बहुत योग्य और विद्वान् थे जो मंगलू को उसके बेटे की शिक्षा के लिए उचित सलाह देते रहते थे।होशियार सिंह एक बार अचानक गाँव आया और उसी समय शासन ने किसी विपदा या महामारी के कारण सभी व्यक्तियों को अपने ही घर पर रहने का आदेश दे देता है। मंगलू के घर में लकड़ी से ही खाना बनता था।कई दिनों के बाद मंगलू ने कहा " बेटा आज तुमको अपना कर्म भूमि दिखा देता हूँ जिससे तुम्हे अपने पिता के हैसियत का भी ज्ञान हो सके ।" यह बात तय हो गया कि जंगल जाना ही होगा तथा परम्परा का अनुसरण करना जरुरी होगा और दोनों पिता-पुत्र जंगल की ओर चल दिए। वह स्थान चहल-पहल, हरितमा से आच्छादित और वन्य जीवों से परिपूर्ण था।प्रकृति की अनमोल धरोहर को देखकर होशियार सिंह बहुत प्रभावित हुआ और अपने पिता को कहा की प्रकृति ही हमें जीवन देती है, वनो में रहने वाले समस्त जीवो के हितार्थ हमें पर्यावरण का संरक्षण करना जरुरी है।जो प्रकृति से खिलवाड़ करता है उसके साथ प्रकृति भी बदला लेती है।जंगल में गाँव के बहुत से लोग भी गए थे जो पिता पुत्र की बातें सुने थे, उन सभी व्यक्तियों को पिता-पुत्र की बाते सुनकर आश्चर्य लगा।जंगल में मनुष्य एवं जंगली जीवो की आहटें भी सुनाई दे रही थी।तभी मंगलू ने पुत्र होशियार सिंह की शिक्षा और विवेक को परखना चाहा, होशियार सिंह की प्रतिभा और ख्याति का डंका उसके कॉलेज में बज रहा था ; वह वास्तविक है या नहीं।पिता ने जिज्ञासा से सारगर्भित प्रश्न किया-"बेटा इस जंगल में बहुत से वन्य प्राणी निवास करते हैं, यदि अचानक इस जंगल में आग लग जाए तो कौन-कौन से वन्य प्राणी सुरक्षित रहेंगे ।"
होशियार सिंह ने मृदु शब्दों में कहा-"अगर जंगल में आग लग जाए तो जो वन्य प्राणी समूह में रहकर स्वछंद और निर्भय होकर विचरण करते हैं, वे सब इस आपदा के शिकार हो सकते हैं और जो एकांतवास तथा अपने बिलों में रहने वाले जीव अर्थात घर में रहने वाले सुरक्षित रहेगें। जंगल की आग शांत होते ही सुखमय जीवन जी सकेंगे। मंगलू ने होशियार सिंह की सार्थक उत्तर सुनकर आशीर्वाद दिया और कहा-"पुत्र! तुम्हारे उत्तर से संतुष्ट हूँ; मेरी समस्त चिंताए दूर हुई। शाम होते ही जंगल से सभी लोग घर आ जाते हैं, रात में पूरे गाँव में होशियार सिंह के ज्ञान और शिक्षा की चर्चाएँ होने लगी। सुबह होते ही ग्रामीण जनों ने नम्रता तथा शालीनता से शुभकामनायें दी। होशियार सिंह ने प्रशंसा से अभिभूत होकर कहा-"आदरणीय! आत्मीयजन, आप सभी इच्छापूर्वक सपरिवार संयमित होकर घर में ही कुछ दिनों तक निवास करें और देश समाज की रक्षा कीजिये। जो भी व्यक्ति इस विपदा में सुरक्षा, संरक्षण और सहायता की याचना करता है, उसका निःस्वार्थ भाव से सहायता कीजिये। अपने घर पर रहकर लॉकडाउन का पालन करने से देश समाज को कोई क्षति नहीं पहुंचेगी।" वंश परम्परा एवं विद्वान् के प्रति आस्थावान जनसमूह ने विवेक और न्याय-निष्ठापूर्वक लॉकडाउन का पालन करने हेतु वचन दिया। कहा गया है की विद्वान् की पूजा सभी जगह होती है। वह गरीब का बेटा पूरे गांव वालो के लिए सराहनीय हो गया। होशियार सिंह बचपन से ही बहुत चंचल एवं आज्ञाकारी था जिसके कारण माता-पिता का अत्यंत प्यारा होता गया। मेहनत और लगनता एक दिन कामयाबी का शोर मचा ही देती है। "होनहार बिरवान के होत हैं चिकने पात" भी चरितार्थ हुआ। शिक्षा से गरीबी, बीमारी, अंधविश्वास, पाखंडवाद सब दूर हो जाते हैं। मजबूर और मजदूर की गरीबी का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए, विद्वानों की बात हमेशा मानना चाहिए। होशियार सिंह की बात पूरे गाँव वालों ने मानी जिससे भीषण आपदा को हराया गया और पूर्व की भाँति प्रसन्न होकर जीवनयापन करने लगे।
रचनाकार:डी.ए.प्रकाश खाण्डे शासकीय कन्या शिक्षा परिसर पुष्पराजगढ़, जिला-अनूपपुर (मध्यप्रदेश)
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