सोमवार, अप्रैल 13, 2020

आजादी के दीवाने :सुरेन्द्र कुमार पटेल



बैसाखी का वह पावन दिन था,
पंजाब प्रान्त के अमृतसर में।
जलियावाला बाग़ नाम था उसका,
हत्याकांड किया जिसमें डायर ने।1

इसके पहले रोलेट एक्ट नाम से,
अंगेजों ने काला कानून बनाया था।
बिना मुकदमों के ही भारतीयों को,
जेल भेजने का उपाय सुझाया था।2

रोलेट एक्ट का हुआ विरोध,
महात्मा गाँधी ने आह्वान किया।
24 फरवरी 1919 को था ‘सत्याग्रह’
गाँधी संग भारतीयों ने प्रस्थान किया।3

‘सत्य’ और अहिंसा के अस्त्रों से
करना विरोध उन्होंने ठाना था।
दिल्ली जैसे स्थानों पर  हुआ जो कुछ,
जनता नहीं तैयार, गाँधी ने माना था।4

‘सत्य’ और ‘अहिंसा’ से भटके,
कुछ ने हिंसा का लिया सहारा।
इससे आहत हो गाँधी जी ने,
‘सत्याग्रह’ वापस लेने का किया इशारा।5

सैफुद्दीन किचलू और सत्यपाल,
अंग्रेजों के हाथों गिरफ्तार हुए।
जिसका करने विरोध बाग़ में,
लोग जमा हजारों-हजार हुए।6

अमृतसर में था त्यौहार और,
लगा था उस रोज वहां एक मेला।
इसीलिये सैकड़ों गांवों से आया,
लोगों का विशाल बड़ा एक रेला।7

वे सब ही अंग्रेजों से लोहा लेने,
जलियावाला बाग में हुए इकट्ठा।
महिला-पुरुष, बालक और वृद्ध सभी ही,
अंग्रेजों से करने गुत्थम-गुत्था।8

थी भनक अंग्रेजों को इसकी,
इसीलिये कर्फ्यू भी लगवाया।
पर जनता को आने से
अंग्रेजों ने रोक न पाया ।9

जैसे ही खड़े हो बाग़ में
नेताओं ने भाषण देना शुरू किया।
लगी खबर जनरल डायर को,
सैनिकों संग उसने कूच किया।10

भरी हुयी थीं रायफलें उनकी,
डायर ने सभा को घेर लिया।
बिना चेतावनी के दागी गोली,
पल भर की न उसने देर किया।11

था नहीं रास्ता कोई बाहर का,
सभा थी चारों ओर से घिरी हुयी।
जान बचाने कूद पड़े कूप में,
थीं लाशें ही लाशें वहां गिरी हुयी।12

की निर्मम हत्या अंग्रेजों ने,
निहत्थों पर गोलियां चलवाई थी।
कहते हैं सोलह सौ पचास चलीं,
अधमासुर ने ही गिनती करवाई थी।13

अंग्रेजों से लेने आजादी,
हजारों-हजार शहीद हुए।
और हुए इतने ही घायल,
जो घटना के चश्मदीक हुए।14

इतने में भी जनरल डायर को,
मानवता के नाते दया नहीं आई।
रहे विलखते घायल उसी बाग़ में
पानी तक उसने नहीं पिलाई।15

आजादी के मस्तक पर तिलक लगाने,
आजादी के वे दीवाने थे।
था देखना स्वर्णिम भारत उनको,
इसकी कीमत उन्हें चुकाने थे।16

इतनी-इतनी क़ुरबानी देकर,
जिस भारत ने है आजादी पाई।
बैठे हैं भूल वहाँ आजादी की कुर्बानी,
संसद तक में होती है हाथापाई।17

आती है इस घटना की याद हमें,
13 अप्रैल का दिन जब आता है।
खोए हैं न जाने कितनों को हमने,
श्रद्धा से मस्तक झुक जाता है।18

संकल्प करें कुछ उनके जैसा,
निः स्वार्थ भाव से कुछ कर जाएँ।
हाँसिये पर पड़े हुयें हैं जो, उनकी खातिर
वीरों का बलिदान अमर कर जाएँ।19



आजादी के रण में वे शहीद हुए,
आज रण है विकासपथ पर ले जाने का।
सत्ता की कुंजी दे वे कह गये अलविदा,
हमारी जिम्मेदारी है, आगे इसे  पहुंचाने का।20

रचना : सुरेन्द्र कुमार पटेल 
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3 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

बहुत सुंदर ऐतिहासिक कविता .

Unknown ने कहा…

बहुत सुंदर ऐतिहासिक कविता .

Unknown ने कहा…

बहुत सुंदर ऐतिहासिक कविता .

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