सावन के दोहे
सावन में बादल चढ़ा, बढ़ा प्रकृति का रंग।
चली झूलना झूलने,सखी सखी के संग।।1।।
साधे हल की मूठ को, चलता रहा किसान।
कजरी अरु कीच दोऊ, बंदन चंदन जान।।2।।
पिक दादुर अरु मोरनी, गीत नृत्य कर जाय।
ऐसा सावन माह है, मनभावन कर जाय।।3।।
बरसे बादल प्रेम का, गोरी करे श्र्ंगार।
मनमंदिर हो प्रेम का, पिय मूरत अनुहार।।4।।
आशा है नैहर चलू, लॉकडाउन ब शूल।
भइया इस त्यौहार में, करना मास्क कुबूल।।5।।
सूनी रहें कलाइयां, रखो न मन में द्वन्द।
सेनेटाइज हाथ हों,मुंह को रखना बंद।।6।।
त्योहारों में घर रहो, लोगों से भी दूर।
भइया मेरे हृदय के, तुम हो असली नूर।।7।।
आएंगे त्योहार बहू, जीवन में बहु बार।
आशा से आकाश है, जीवन एकै बार।।8।।
संकट से दूरी रखो, कहती ऐसा नीति।
संकट जब टल जाएगा, होगी सबसे प्रीति।।9।।
अपनी रक्षा आप करो, अपनो की भी आप।
अपनी अपनी सब करें, कहता बूढ़ा बाप।।10।।
सूनी डाली आम की, सूना आंगन द्वार।
सूनी सखी श्रृंगार से, ऐसी लगी बयार।।11।।
कोमल आपद काल में, रहिए सबसे दूर।
ना जाने किस रूप में, मिले करोना क्रूर।।12।।
(मौलिक एवं स्वरचित)
कोमल चंद कुशवाहा, शोधार्थी,
हिंदी अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा
म प्र मोबाइल 7610 1035 89
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