समता नाम का एक गाँव था, जो बहुत सम्पन्न
और सुन्दर वातावरण से परिपूर्ण था। वहाँ अमीर और गरीब नाम के दो व्यक्ति
निवास करते थे-यथा नाम तथा गुण भी था पर घनिष्ट मित्रता थी जहां अमीर को गरीब का जरुरत हर समय पड़ता रहता था, गरीब का भी सहायता अमीर करता था। गाँव में कई समाज के लोग निवास करते थे,जिससे उनकी सामाजिक प्रतिपूर्ति भी आसानी से हो जाती थी। सभी एक-दूसरे का भरपूर सहयोग करते थे, धीरे-धीरे गरीब अपने मेहनत से आगे बढ़ते जा रहा था। गाँव का जीवन बहुत ही सुखमय चल रहा था।
बहुत पुरानी बात है जब लोग शहर में जाने से डरते थे तथा शहर
के व्यक्तियों के सामने जाने से भी डरते थे।सब आपस में एक जगह भाईचारे के साथ
ग्रामीण जीवन बिताते थे,अपने जीवकोपार्जन के लिए कृषि मजदूरी
करते थे। गरीब में भी थोड़ी शिक्षा का प्रभाव आने
से विकास हो रहा था पर गरीब का विकास अमीर के आँखों में देखा नहीं गया। षडयंत्र पूर्वक अमीर ने गरीब को गाँव से
भगा दिया। गाँव के सभी लोग पास के एक नदी से ही
पानी पीते थे,पशु पक्षी भी इसी नदी से पानी पीते थे। नदी गहरी थी जिसके कारण अथाह जल प्रवाह
होती थी, नदी में जलीय जीवों की संख्या भी ज्यादा
थी, नदी के दोनों तटों पर खेती होती थी।
ग्रीष्मकाल में नदी में पानी कम हो जाने
से कुछ थलीय जीव भी रहने लगे। धीरे-धीरे जलीय एवं थलीय जीवों में प्रगाढ़ता आने लगी, पर स्वभाव का त्याग नहीं हुआ। बरसात आने के पहले ही झमाझम बारिस हो जाती है और नदी में बाढ़
जाता है। दोनों तट जलमग्न हो गया, वेचारे थलीय जीवो के लिए संकट आगया। कहते हैं संकट के समय जो साथ देता है वह
भगवान होता है, संकट के समय थलीय जीवों ने जलीय जीवों से
गुहार लगाये की हमें पानी से बाहर निकालें नहीं तो मर जाएंगे। एक तट पर खरगोश भी बिल बनाकर रहता था,जो स्वभाव से सीधा साधा और शांत था वह इस मुसीबत की घडी में
जल की रानी मछली से जान बचाने हेतु याचना करता है। दोनों स्वभाव से सरल और शांत होने से मित्रता करने हेतु
राजी हो गए। मित्रता विश्वास से ही सुदृढ़ होता है,साथ ही मित्रता अच्छे स्वभाव वालों से करना चाहिए। जैसे ही खरगोश ने मछली के पीठ पर बैठकर
चलने को तैयार हुआ,अचानक एक काला सर्प भी अपने जान को बचाने
के लिए मछली से कहता है; मुझे भी बैठा लो, मछली तो दयालु थी।खरगोश डरकर बोला की ये
जहरीला सर्फ़ है;इसे मत ले जाना, ये मेरे को रास्ते में ही खा जाएगा। कहते हैं की जो पुराना मित्र है उसकी
सलाह मानना चाहिए।मछली खरगोश की बात मान लेती है ,कुछ ही दूर में एक खतरनाक जीव मिलता है और बड़ी विनम्रता
पूर्वक मछली से निवेदन करता है की मेरी भी जान खतरे में है।अगर मुझे भी साथ में ले
चलो तो जीवन भर शुक्र गुजार रहूंगा ,विश्वास दिलाता है की कुछ भी धोखा नहीं होगा।फिर खरगोश ने मछली को समझाया की
ये बिच्छु है, दिखता छोटा है पर स्वभाव बिषैला है लेकिन
अबकी बार मछली ने खरगोश की बात मानने से इंकार कर देती है। मछली बड़ी दयालुता से बिच्छू को बैठा ली, अब खरगोश कहीं भाग भी नहीं सकता था।
बिच्छू;खरगोश को गुमराह करता रहा और अन्तः डंक मार देता है। खरगोश अपनी पीड़ा को मछली से कराह-कराह कर बता रहा है की अब
बचना मुश्किल है,तुम अपनी जान बचाना।खरगोश मछली को कई
इशारा किया की तुम पानी के निचली सतह में चली जाओ,मेरे जान की परवाह न करो। खरगोश अब मछली की जान बचाने में मित्र धर्म का पालन कर रहा था लेकिन मछली अपनी
चाल से चल रही थी । मछली विश्वास पर
चल रही थी की मेरे को तो कुछ हुआ ही नहीं है। खरगोश को इतना जहर लग चुका था की वह किनारा पहुंचने के पहले
ही मरकर जलप्रवाह हो गया। मछली मन में मुरादें लिए हुई तैरती जा रही थी ,उसको पता भी नहीं चला की खरगोश की जीवनलीला समाप्त हो गई। पीठ पर बैठा दुश्मन मन ही मन मुस्कुरा
रहा था की एक तो निपटा डाला हूँ अब तेरी बारी है। बिच्छू समय का इन्तजार कर रहा था की कब किनारा पहुँचू तो
मछली को डंक मारुं।
जीव का आधारीय गुण
कभी नष्ट नहीं होता है,भले दिखाई न दे। किनारे मछली पहुँचती है बिच्छू उसे भी डंक मार कर झाडी में
छिप कर बोलता है,मैंने अपने धर्म का पालन किया है, डंक मारना मेरा कर्तव्य था। वेचारी मछली भी तड़फ- तड़फ कर मर जाती है। दुष्ट प्रवृत्ति के जीव पर कभी विश्वास
नहीं करना चाहिए। कुटिल चाल के प्राणियों में स्वार्थ की
कोई पारावार नहीं होती है, इनके चिकने बातों पर विश्वास नहीं करना
चाहिए। मतलब यह है की विषम विचार के प्राणियों
के साथ कभी भी विश्वास नहीं करना चाहिए। इष्ट मित्र सच्चाई एवं ईमानदारी से अपना कर्तव्य निभाता है और दुष्ट मित्र
बर्वाद करने का समय ढूंढता रहता है।
रचना-डी.ए.प्रकाश खांडे
शासकीय कन्या शिक्षा परिसर पुष्पराजगढ़ जिला अनुपपुर मध्यप्रदेश मो 9111819182
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