वीरांगना झलकारी बाई
अंग्रेजों से
युद्ध क्षेत्र में जाकर के ललकारी थी।
खूब लड़ी मर्दानी
वह तो झांसी की झलकारी थी॥
अठारह सौ तीस में
इनका जन्म हुआ था झांसी में।
पिता सनोबर, पाला
पोषा लड़कों जैसा झांसी में॥
शादी बाद हो गई पूरन
कोली
की नारी थी।
खूब लड़ी मर्दानी
वह तो झांसी की झलकारी थी॥
हँसिया, खुरपी और
कुल्हाड़ी उनकी यही सहेली थी।
सनोबर और जमुना
देवी की वह संतान अकेली थी॥
वीरोचित गुण उसमें समाई फूल नहीं चिंगारी थी।
खूब लड़ी मर्दानी
वह तो झांसी की झलकारी थी॥
गदा, बाण, तलवार
चलाना, पति पूरन से सीखी थी।
घुड़सवारी ऐसी थी कि मर्द
की शैली फीकी थी॥
लक्ष्मीबाई सी
सूरत पाई लगती सबको प्यारी थी।
खूब लड़ी मर्दानी
वह तो झांसी की झलकारी थी॥
अंग्रेजों की
सेना ने जब हमला किया था झांसी में।
लक्ष्मीबाई संग लड़ी थी झलकारी भी झांसी में॥
झलकारी के रण
कौशल से अंग्रेजी सेना हारी थी।
खूब लड़ी मर्दानी
वह तो झांसी की झलकारी थी॥
अगली बार अंग्रेजों
ने झांसी में हमला बोल दिया।
विभीषण बन गुलाब
दुर्ग का पिछला द्वार खोल दिया॥
किले के अंदर घुस
गए सैनिक यह मंजर भयकारी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी
की झलकारी की॥
स्थिति समझी
झलकारी ने बाहर भेजी रानी को।
उनके वस्त्र पहन
के रण में चकमा दी सेनानी को॥
चंडी बन रणआंगन
गरजी दुश्मन पर वह भारी थी।
खूब लड़ी मर्दानी
वह तो झांसी की झलकारी थी॥
पति शहीद भये इसी युद्ध में हरकारों से जानी थी।
फिर भी मातृभूमि
की खातिर लड़ती रही भवानी थी॥
अभी उम्र सत्ताइसवाँ झलकारी की जारी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी की झलकारी थी॥
बाईस नवंबर अठारह
सौ तीस को जन्म हुई थी झांसी में।
चार जून सत्तावन को लड़ते शहीद हुई झांसी में॥
‘कुशराम’ कहे झलकारी
तो चिंगारी थी, अवतारी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी की झलकारी थी॥
(रचना दिनांक 20
अप्रैल 2020)
© बी एस कुशराम
प्रधानाध्यापक, माध्यमिक विद्यालय बड़ी तुम्मी
विकासखंड-पुष्पराजगढ़, जिला-अनूपपुर
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