जीवन
में उपकार करो
(प्रेरणा गीत)
मानव तन पाकर जीवन में, औरों का उपकार करो।
निजता का भाव मिटा कर, जीवन में परोपकार करो॥
जीवन में उपकार करो।
क्षणभंगुर काया पाकर मन में, न तनिक अहम करो।
दीन, दुखी, शोषित जन पर, अब तो कुछ सहम करो॥
जीवन में उपकार करो।
प्रकृति प्रदत्त जड़-चेतन से, हमें कुछ शिक्षा लेना है।
पर संताप मिटाने हेतु, हित साधक की दीक्षा लेना है॥
जीवन में उपकार करो।
हर तपती तन को तरु, अपनी गोद में आश्रय देती है।
चारु सुमन सरस फल देकर, हमसे कुछ नहीं लेती है॥
जीवन में उपकार करो।
मानव क्रियाओं को, सहन करने वाली मां धरती है।
नवजात से वृद्ध तक, पल्लवित पुष्पित करती है॥
जीवन में उपकार करो।
मारुत मानव के स्वास कसक को, स्वयं हर लेती है।
शुचि समीर परहित में बहकर, शुद्ध वायु हमें देती है॥
जीवन में उपकार करो।
परोपकार के काज में, नित्य निर्झरिणी बहती है।
शुचि जल देकर,
किंचित विश्राम नहीं करती है॥
जीवन में उपकार
करो।
परहित के सेवार्थ में, वारिद ऋतु में वर्षा करती है।
वसुंधरा के सकल जीव को, सदा हर्षित करती है॥
जीवन में उपकार करो।
परमार्थ के काज में, सबको अनवरत लगे रहना है।
परहित के सेवार्थ में, मानवता की धारा में बहना है॥
जीवन में उपकार करो।
भोर काल में उदित दिवाकर, जग को रोशन करता है।
प्रकाश की पुंज विकीर्ण कर, धरती का तम हरता है॥
जीवन में उपकार करो।
विरामदायिनी संध्या के पश्चात, शशि उदित होती है।
धरा की तपन हराकर, हम सबको शीतलता देती है॥
जीवन में उपकार करो।
इस जग में परहित समान, कोई धर्म नहीं दूजा है।
पर पीड़ा, पर कसक, मानवता की सच्ची पूजा है॥
जीवन में उपकार करो।
रचना
मनोज कुमार चंद्रवंशी (शिक्षक) विकासखंड
पुष्पराजगढ़ जिला अनूपपुर (मध्य प्रदेश)
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