बुधवार, अप्रैल 08, 2020

श्रृंगार के दोहे: कोमल चंद

              श्रृंगार के दोहे
राधा रानी दान दे मोहन करें सहाय।
रस की सरिता मांग लूं जामें रसिक नहाय।।1।।

देह धरा उर ताल पर विकसे पंकज लाल।
जिनको सेवन बैठे हैं षठपद दुई वाल।।2।।

पांव पंकज पंखुड़ी अंगूरी अरविंद नाल।
शिर जानो मलया गिरि भुजगन मानो बाल।।3।।

उडत नहीं नहि जात कहूं बसे रहत इक ठौर ।
मन में ऐसे सोच के रस न पिवे कोई और।।4।।

मस्सा गोरे गाल पर बैठा है गतिहीन।
सरसिज पर भंवर ज्यो बैठा हो रस लीन।।5।।

आस लगी पिया मिलन की आ गयो बसंत।
कोयल कू कू करन लगी पिय बिन सवै दुखंत।।6।।

नयन कटीले बयन सुरीले नैनो के पल गीले गीले।
याद पिया की करते करते आनन हो गए पीले।।7।।

कनक कर में कनक लिए खड़ी कनक के खेत।
चारिहु दिस पिय देख के कनक कर में लेत।।8।।

जब तक पिय के पास थी बही प्रेम की धार।
पिय वियोग में हो गया जीवन मेरा भार।।9।।

अंग-अंग रस की झलक केश प्रेम के फंद।
कमल न  विकसे ह्रदय के सोच रहे मुख चंद।।10।।

अंग अंग में रस भरा दिखे प्रेम की गंग
प्रेम पियासे प्रेम से पिए प्रेम की भंग।।11।।

अंग बिखरे लालिमा आंखों से अनुराग।
दर्शन करले पीव का जागे सोए भाग।।12।।

रसन दशन अरु वसन की कहिए प्रीत अपार।
बिन बोले नैन दोउ करें प्रेम व्यवहार।।13।।

नैनों में अनुराग है अधरों में मधुराग।
अंगों में मधु रस भरा सेवन हो तो जाग।।14।।

हाथ हमारे आरसी मुंह देखो  केहि काज।
सजना है सजना नहीं सजन में लागे लाज।।15।।

नील नयन नीले वसन नीली काजल रेख।
नील श्याम घनश्याम है नीला नीला देख।।16।।

हिरनी जैसे नैन हैं चंपा जैसी बास।
कोमल ऐसे रूप को लोचन मरत पियास।।17।।
काव्य रचना:
कोमल चंद कुशवाहा
शोधार्थी हिंदी
अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा
मोबाइल 7610103589
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