गुरुवार, अप्रैल 09, 2020

नीति के दोहे: कोमल चंद

KOMAL CHAND
जग का तम सूरज हरे, घर का हरता दीप।
मन का तुम गुरुवर हरें, स्वाति बूंद हरे सीप।।1।।


गुरु माता गुरु पिता गुरुवर ईश्वर होंय।
गुरुकृपा जब तक नहीं तब तक अंधा होय।।2।।


सोई रस जग सिद्ध है जामें जो है लीन।
सुखी रहे निश दिवस बस अगाध जल मीन।।3।।


ताजिए ऐसे मीत को जो अवगुण में लीन।
जैसे उथले घाट को तज देती है मीन।।4।।


प्यासा पानी पिएं भूखा भोजन जोय।
ऐसे धर्म निष्ठ का जीवन पावन होय।।5।।

महक रही वसंत में लू से उकठी डार।
समय एक सा ना रहे बदले बारंबार।।6।।

निर्बल को पहचान के अपनी सेवा देय।
ऐसे नर की दासी बन खुशियां पायन होय।।7।।

बुरा काम ना कीजिए बुरा ना बोलिए बोल।
संतन के ढिग बैठकर सुनिए शब्द अमोल।।8।।

जाके मन नहीं शुद्धता तन पापों में लिप्त।
ऐसे नर ना होइहै कबहूं दुखों से मुक्त।।9।।

जननि जनक को त्याग के बहुरि करैं जे निंदा।
जग में ऐसे भटक जाय जैसे उड़ें परिंदा।।10।।

काव्य रचना: कोमल चंद कुशवाहा
शोधार्थी हिंदी
अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा
मोबाइल 7610103589
[इस ब्लॉग में प्रकाशित रचनाएँ नियमित रूप से अपने व्हाट्सएप पर प्राप्त करने तथा ब्लॉग के संबंध में अपनी राय व्यक्त करने हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। कृपया  अपनी  रचनाएं हमें whatsapp नंबर 8982161035 या ईमेल आई डी akbs980@gmail.com पर भेजें,देखें नियमावली ]

तनावमुक्त जीवन कैसे जियें?

तनावमुक्त जीवन कैसेजियें? तनावमुक्त जीवन आज हर किसी का सपना बनकर रह गया है. आज हर कोई अपने जीवन का ऐसा विकास चाहता है जिसमें उसे कम से कम ...