''हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकालके,
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के।''
यह गीत देशभक्ति जगाने के लिए आज के समय में युवाओं को प्रेरणा का संदेश देता है। देश में गुलामी से आजाद होने के लिए अनेक/हजारों युवाओं ने अपनी कुर्बानिया दी और हंसते-हंसते मौत को गले लगाया। जो चिंगारी 1857 में देश की स्वतंत्रता के लिए फूटी उसने 1947 में स्वाधीन भारत की लौ जलायी। अंग्रेज ही नहीं सारी दुनिया युवाओं के इस जोश देखकर चकित रह गई।
युवा वर्ग का योगदान सदा ही अतुल्य रहा है, क्रांतिकारी संगठनों को दिशा युवा वर्ग ही दे रहा था और उस आजादी की लड़ाई में अपनी जवानी की ऊर्जा को, खून को बहा दिया। जवानी की उम्र 25 से 30 में ही देश के लिए शहीद हो गए। आज 21वीं सदी में युवाओं की संख्या 65 प्रतिशत है, जो देश को विकासशील से विकसित बनाने में अहम भूमिका निभा सकती है, लेकिन तस्वीर कुछ अलग नजर आती है।
जिन युवाओं को देश का सर्वश्रेष्ठ बनाने में अपना योगदान करना चाहिए वह एक भीड़ तंत्र का सहभागी बनकर मृगमारीचिका का शिकार होता जा रहा है। जिनके कंधों पर संविधान को बचाने की एवं लोकतंत्र मजबूत करने की जिम्मेवारी है वे आज स्वयं ही पथ भ्रमित हैं।
पहले का युवा नील आर्मस्ट्रोंग जिन्होंने चांद में पहुँचकर देश का नाम रोशन किया था आज का युवा किसी ओर के धार्मिक चिन्ह चाँद को तोड़ना चाहता है। उसके पास कोई राह और मंजिल नहीं है, वह गलत राह पर भटकने को मजबूर है। खाली दिमाग शैतान का घर होता है। आज का युवा उस नाव पर सवार हो गया है जिसकी एक ओर का खेवनहार धर्म और दूसरी ओर राजनीति है। जिसके भंवर में वह फंसता नजर आ रहा है। अंगेजों की गुलामी के समय युवाओं का लक्ष्य या आजाद भारत बनाना, 21वीं सदी के युवाओं का लक्ष्य मेक इन इंडिया, डिजिटल भारत, स्वच्छ भारत होना चाहिए मगर इन युवाओं को धर्मों की राजनीति के चक्रव्यूह में उलझाया जा रहा है।
राजनीतिक दलों के कुचक्र में फंसते युवा
‘‘हम भारत के लोग’’ की जगह हिंदू, मुस्लिम शब्द की बात हो रही है। आज का युवा राजनीतिक दलों के लिए वोटवाहक का काम कर रहा है। भीड का हिस्सा बनकर राजनीति के माध्यम से सत्ता में बैठे लोग उसके साथ न्याय नहीं कर रहे है। जब सत्ता में बैठाने के बाद वही युवा रोजगार, अच्छी शिक्षा मांगता है तो उस पर पुलिस की लाठी से प्रहार करवाया जाता है। जिससे वह फिर जुर्म की दुनिया में जाने को विवश हो जाता है। राजनीतिक पार्टियाँ उसका उपयोग अपने जय-जयकार और धार्मिक नारों के लिए करती है। जबकि युवा का नारा होना चाहिए बेरोजगारी हटाने, भ्रष्टाचार हटाने, अच्छी गुणवत्ता वाली शिक्षा , गरीबों तक पहुँच वाली अच्छी स्वास्थ्य सुविधा एवं अपने अधिकारों की मांग वाली होनी चाहिए थी । महिलाओं की सुरक्षा, जातिवाद का कलंक मिटाने की, रूढ़िवादी और पाखण्ड, अंधविश्वास मिटाने की और युवाओं की गूंज देश को आपसी भाईचारा बनाये रखने के साथ एक सूत्र में पिरोने की होनी चाहिए पंरतु इसके विपरीत संभव इसलिए नहीं है क्योंकि स्वयं युवा भी अपनी सोच के साथ इन देश को दीमक की तरह चरने वाले कुछ राजनीतिक व्यक्तियों, पार्टियों के कीचड़ रूपी दल-दल में फंसता जा रहा है। अगर युवाओं से भरा देश इन समस्याओं पर विजय नहीं पाता तो फिर बूढ़े भारत से उम्मीद करना बेकार होगा।
मंजिल तक पहुंचने के लिए रास्तों में आने वाली कंटीली चीजों को हटाना होगा। किसी के हाथों की कठपुतली बनकर उन युवाओं के अच्छे दिन नहीं आने वाले हैं। देश की जो समस्या है। देश की जो समस्या है उसका हल कलम और स्याही से ही निकलेगा, न कि बन्दूक की गोली और पत्थर से। क्योंकि पत्थर चलाने से न तो किसी प्रकार की आजादी मिलेगी न ही रोजगार और न ही अच्छी शिक्षा। इन युवाओं को टी करना होगा कि उनके हाथों में कलम अच्छी लगेगी या पत्थर या बंदूके? हाथ में कलम, किताब पकड़ने से भविष्य है। देश तभी तरक्की कर सकता है जब सभी जगह बधुत्व की बात होगी और पाखंड पर विराम लगेगा।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के स्वयं के हैं)
आलेख:पुष्पेन्द्र पटेल, अधिवक्ता,युवा समाज सेवी, गोदावल रोड ब्योहारी,जिला- शहडोल (मध्यप्रदेश)
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