शुक्रवार, अप्रैल 10, 2020

जीवन राग:कोमल चंद कुशवाहा


मैं भी रस हूं तू भी रस है।
रस है जीवन सारा। 
तू मेरा ले मैं तेरा तेरा लूं ।
यह बात व्यर्थ है यारा।
मैं भी रस हूं तू भी रस है।
रस है जीवन सारा।
दोनों मिल दे दया दान का
चख ले यह जग सारा।
मैं भी मिट्टी तू भी मिट्टी
मिट्टी है जग सारा।
इस मिट्टी का गर्व न करना
यह तन न मिलेगा दुबारा।
मैं भी रस हूं तू भी रस है।
रस है जीवन सारा।।
ना मैं तेरा ना तू मेरा
सपना है जग सारा।
स्वार्थ के सब मीत बने हैं।
कोई ना अपना यारा।
मैं भी रस हूं तू भी रस है।
रस है जीवन सारा।।
काव्य रचना: कोमल चंद कुशवाहा
शोधार्थी हिंदी
अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा
मोबाइल 7610103589
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6 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

अति सुंदर कविता

Unknown ने कहा…

Very nice 👌👌 mama ji

Daily motivational ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Daily motivational ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Unknown ने कहा…

Mst h sir

Gyan Punj ने कहा…

Very nice line

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