पर्यावरण दिवस पर
वृक्षारोपण हुआ
इस बार अनोखा.
नेता, मंत्री और अफसरों ने
फलदार पौध स फल
मगर जड़ विहीन रोपा.
2. गांधी जयंती
गांधी जयंती पर
'सत्य और अहिंसा '
विषय पर भाषण और गाना हुआ.
मुख्य अतिथि का कार्यक्रम में
जरा देर से आना हुआ.
इस पर मुख्य अतिथि का झूठा बहाना हुआ
और इस प्रकार जनता के सामने ही
गांधीजी के सत्य का प्रयोग सुहाना हुआ!
और इधर भाषण ध्यान से न सुनने पर
शिक्षक का छात्र पर चपत लगाना हुआ,
और इस प्रकार गांधीजी का
अहिंसा का प्रयोग भी सफल निभाना हुआ.
3. देश-प्रेम
देखने में थे वे भले सज्जन
और दुकान में देशभक्ति पर दे रहे थे प्रवचन
दुकानदार ने बताया, पक्के बिल के साथ आठ सौ उनहत्तर हुए
वे आठ सौ थमाकर, बिना बिल के मुस्कुराकर चल दिए।
4. रोगी का हाल
जब मैं बीमार हुआ,
रुपये थे जो घर में,
वे सब खर्च हुए बीमारी में
और कर्जा चढ़ गया
आने-जाने वालों की खातिरदारी में
5. सास भी कभी बहू थी
सास भी कभी बहू थी
देखकर बड़ी हुई लड़कियाँ
रिस्क बिल्कुल नहीं लेती हैं
एकाध झगड़ों में ही चूल्हा अलग कर लेती हैं।
6. स्वच्छता अभियान
बाजार में आने लग गया है
स्वच्छता अभियान का अलग झाड़ू,
उसमें कम्पनी ने फिट किया है
बैटरी और मशीन बिलकुल जुगाडू
धुले हुए फर्श पर
पत्ते बिखरने का लगा उसमें यन्त्र है
और इन्टरनेट के जरिये
अखबार में फोटू आने का भी विकसित तंत्र है!
बाजार में आने लग गया है
स्वच्छता अभियान का अलग झाड़ू,
उसमें कम्पनी ने फिट किया है
बैटरी और मशीन बिलकुल जुगाडू
धुले हुए फर्श पर
पत्ते बिखरने का लगा उसमें यन्त्र है
और इन्टरनेट के जरिये
अखबार में फोटू आने का भी विकसित तंत्र है!
7. पुरुस्कार
करता साफ गन्दगी नाली का,
सफाईकर्मी जान गवां जाता है।
पुरुस्कार स्वच्छता दूत का,
कोई बल्लेबाज उठा ले जाता है।
8. नीबू
नीबू अपना काम कर गया.
गुनाह उसका नीबू के सर गया।
9. कानून
वे काले कोट वाले
इतना भी सह न सके।
माना अन्याय हुआ,
परन्तु न्यायाधीश से कह न सके।
कानून अपने हाथ में ले,
कानून को धता बता दिया।
अपने पर आए तो करें क्या,
उन्होंने देश की जनता को जता दिया।
पुलिस वाले भी कमतर नहीं ठहरे,
आंदोलनों पर लाठी भांजते थे जो।
खुद आंदोलन के लिए बैठ गये सड़क पर
औरों को तो सड़कों से खदेड़ते थे वो।
रचना:सुरेन्द्र कुमार पटेल
8. नीबू
नीबू अपना काम कर गया.
गुनाह उसका नीबू के सर गया।
9. कानून
वे काले कोट वाले
इतना भी सह न सके।
माना अन्याय हुआ,
परन्तु न्यायाधीश से कह न सके।
कानून अपने हाथ में ले,
कानून को धता बता दिया।
अपने पर आए तो करें क्या,
उन्होंने देश की जनता को जता दिया।
पुलिस वाले भी कमतर नहीं ठहरे,
आंदोलनों पर लाठी भांजते थे जो।
खुद आंदोलन के लिए बैठ गये सड़क पर
औरों को तो सड़कों से खदेड़ते थे वो।
रचना:सुरेन्द्र कुमार पटेल
1 टिप्पणी:
क्षणिकाएं तीर की भांति कार्य कर रही हैं तो जाकर सही निशाने पर लग रही है
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