यही प्रसिद्ध शक्ति की शिला अटल,
हिला इसे सका कभी न शत्रुदल,
पटेल पर
स्वदेश को
गुमान है।
सुबुद्धि उच्च श्रृंग पर किए जगह,
हृदय गंभीर है समुद्र की तरह,
कदम छुए हुए जमीन की सतह,
पटेल देश
का निगहबान है।
हरेक पक्ष को पटेल तौलता,
हर एक भेद को पटेल खोलता,
दुराव या छुपाव से उसे गरज?
कठोर नग्न सत्य बोलता।
पटेल हिंद
की निडर
जवान है।
-हरिवंश राय बच्चन
सरदार पटेल का जन्म गुजरात के नाडियाद में एक किसान परिवार में 31 अक्टूबर 1875 को हुआ था। उनके पिता का नाम झवेरभाई और माता का नाम लाडबा देवी था। वह अपने पांच भाई बहनों में चौथे नंबर पर थे। सोमाभाई, नरसीभाई और विट्ठल भाई उनके अग्रज थे। बहन डाबीहा सबसे छोटी थी। उनका जन्म एक निर्धन किसान परिवार में हुआ था।
सरदार पटेल की स्कूली शिक्षा स्वाध्याय के बल पर हुयी। उनका विवाह 16 वर्ष की अवस्था में झाबेरबा के साथ हुआ किन्तु उन्होंने अपने विवाह को पढाई में बाधा नहीं बनने दिया। 22 वर्ष की अवस्था में उन्होंने 10वीं की परीक्षा उत्तीर्ण की। आर्थिक अभाव के कारण वे कालेज में नियमित अध्ययन नहीं कर सके किन्तु उन्होंने स्वाध्याय के रूप में अपना अध्ययन जारी रखा। उन्होंने स्वाध्याय के बल पर जिला अधिकारी की परीक्षा दी और प्रथम स्थान प्राप्त किया। इससे यह सिद्ध होता है कि सरदार पटेल अपने शुरूआती जीवन में ही बहुत अधिक परिश्रमी और संकल्पवान थे।
सरदार पटेल का भाई के प्रति त्याग
सरदार पटेल ने कुछ समय तक जिला अधिकारी के पद पर कार्य किया किन्तु उनकी इच्छा वकालत पेशे में जाने की थी, अतः उन्होंने लंदन में वकालत करने के लिए वीजा और पासपोर्ट का आवेदन । जब उनका वीजा और पासपोर्ट बनकर आया तो उसमें उनका नाम संक्षेप में व्ही.बी. पटेल लिखा हुआ था। इससे उनके बड़े भाई विट्ठल भाई का नाम भी प्रकट होता था। विट्ठल भाई पटेल ने स्वयं लंदन जाकर वकालत करने की इच्छा व्यक्त की जिस पर सरदार वल्लभ भाई पटेल ने अपना वीजा तथा पासपोर्ट अपने बड़े भाई को दे दिया. साथ ही अपने बड़े भाई को लन्दन भेजने के लिए आर्थिक प्रबंध भी किया।
हालांकि उसके तीन वर्ष बाद सरदार पटेल वकालत की पढाई करने लन्दन गए और जो पाठ्यक्रम 36 माह में पूरा होता था उसे उन्होंने 30 महीनों में ही पूरा कर लिया। इन तथ्यों से साबित होता है कि सरदार पटेल प्रारम्भ से ही कुशाग्र बुद्धि के थे किन्तु आर्थिक अभाव के कारण उनकी शिक्षा देर से पूरी हुयी। यहाँ 36 वर्ष की उम्र में उन दिनों पढाई की जिज्ञासा रखना आज के विद्यार्थियों के लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है।
सरदार वल्लभ भाई पटेल ने लन्दन से बैरिस्टर की पढाई पूरी कर गुजरात के अहमदाबाद में वकालत करने लगे.सरदार पटेल की वकालत चल निकली।
गाँधीजी से पहली मुलाकात-
ऐसा कहा जाता है कि प्रारम्भ में सरदार पटेल महात्मा गाँधी से बिलकुल भी प्रभावित नहीं थे। सरदार पटेल अहमदाबाद की जिला व सत्र अदालत में प्रैक्टिस करते थे और प्रैक्टिस के बाद वे गुजरात क्लब में आया करते। यह क्लब बुद्धिजीवियों का मंच हुआ करता। इस क्लब में बड़े-बड़े उद्योगपति, विभिन्न क्षेत्रों के प्रशासनिक अधिकारी और कुछ अंग्रेज नौकरशाह भी आया करते थे। वे सब इस क्लब में अहमदाबाद की राजनीति, संस्कृति और आर्थिक मामलों पर बात करते। उधर महात्मा गाँधी भी कानून की पढाई करके 1913 में अहमदाबाद आ गए थे और वे यहाँ आकर भद्र स्थित अदालत में प्रैक्टिस करने लगे थे। उन दिनों महात्मा गाँधी देश भर में भ्रमण करते और लोगों के बीच अपने बात रखते। तीन फरवरी को अहमदाबाद के पानकोर नाका के पास गांधीजी का संबोधन होना था, सरदार पटेल उनका संबोधन सुनने पानकोर नहीं गये किन्तु आयोजकों ने स्वयम गाँधी जी को गुजरात क्लब ले आए। और तब यहीं 3 फरवरी 1915 को दोनों महापुरुषों की पहली बार मुलाक़ात हुयी. गुजरात क्लब में हुयी चर्चा से दोनों नेता एक दूसरे से परिचित हुए।
गाँधी जी के साथ मेलजोल का बढ़ना- अब सरदार पटेल महात्मा गाँधी जी के साथ कांग्रेस के अधिवेशनों में जाने लगे. वे पहली बार 1915 में मुम्बई अधिवेशन में महात्मा गाँधी के साथ कांग्रेस अधिवेशन में शामिल हुए और उसके बाद 1916 में हुए लखनऊ अधिवेशन में भी वे महात्मा गाँधी के साथ कांग्रेस अधिवेशन में शामिल हुए. इससे उन दोनों में लगातार मेल-जोल बढ़ने लगा।
सरदार पटेल महात्मा गाँधी से ऐसे प्रभावित हुए- लखनऊ अधिवेशन में ब्रिटिश हुकूमत को ज्ञापन देने के लिए एक प्रारूप तैयार किया गया था। जो करीब दस पृष्ठों का था. महात्मा गाँधी ने इसे देखा और इस पूरे ज्ञापन को मात्र 10 वाक्यों में समेट दिया। इसी से सरदार पटेल महात्मा गाँधी से प्रभावित हुए और बाद में महात्मा गाँधी के कहने पर उन्होंने राजनीति के क्षेत्र में पदार्पण किया और अहमदाबाद नगरपालिका चुनाव लड़ा और वे अहमदाबाद नगरपालिका प्रमुख बने। इसके बाद वे आजीवन कांग्रेस और महात्मा गाँधी के साथ रहे और देश की आजादी के लडाई में अपना योगदान दिया।
सरदार पटेल का पहला आन्दोलन- सन 1918 में गुजरात के खेडा जिले की पूरे साल के फसल मारी गई। ऐसी स्थिति में अंग्रजों को किसानों की लगान माफ़ करनी चाहिए थी किन्तु अंग्रेजों ने किसानों की लगान माफ़ नहीं की। ऐसी स्थिति में महात्मा गाँधी ने उन्हें खेडा जाकर इसके विरुद्ध सत्याग्रह करने की सलाह दी। महात्मा गाँधी के आह्वान पर सरदार पटेल ने अपने चलती हुयी वकालत छोड़ दी और वे खेडा के लोगों को एकजुट किया। जो जमीन सरकार ने कुर्क कर ली थी उस खेत का किसानों ने जबरिया फसल काट ली. इस जुर्म में कुछ लोगों को जेल व जुरमाना भी हुआ। किन्तु सरकार को अपनी भूल का एहसास हुआ और गरीब किसानों की लगान वसूली बंद कर दी. इस प्रकार सरदार पटेल का पहला आन्दोलन सफल रहा।
सरदार की उपाधि- सरदार वल्लभ भाई पटेल को सरदार की उपाधि बारडोली सत्याग्रह में हुए सफल योगदान के लिए वहाँ की महिलाओं ने प्रदान किया था। 1928 गुजरात में प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में 30 प्रतिशत की वृद्धि कर दी। सरदार पटेल ने इस लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया। सरकार ने इस सत्याग्रह को कुचलने के लिए कठोर कदम उठाये पर अंततः विवश होकर उसे किसानों की मांगों को मानना पड़ा। एक न्यायिक अधिकारी बूमफील्ड और एक राजस्व अधिकारी माक्सवेल के प्रतिवेदन पर लगान को 6.03 प्रतिशत कर दिया।
भारत की आजादी और सरदार पटेल की भूमिका-
कैबिनेट मिशन योंजना 1946 के अनुसार भारत को एक संविधान सभा का गठन करना था तथा इस संविधान सभा को ही अंतरिम सरकार के दायित्व का निर्वहन करना था। भारत के प्रधानमन्त्री के बतौर अधिकांश प्रान्तों ने सरदार पटेल के नाम पर अपनी सहमति दी थी किन्तु जवाहरलाल नेहरु ने महात्मा गाँधी से स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि वह किसी के अधीन रहकर काम नहीं कर सकते। ऐसी स्थिति में महात्मा गाँधी की इच्छा का सम्मान करते हुए सरदार पटेल ने अपना प्रस्ताव वापस ले लिया और इस प्रकार जवाहर लाल नेहरु आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने तथा सरदार पटेल को गृह और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई।
भारत के एकीकरण में सरदार पटेल का योगदान और लौहपुरुष की उपाधि-
सरदार पटेल की महानतम देन और लौहपुरुष की संज्ञा- भारतीय स्वतंत्र अधिनियम, 1947 के प्रावधानों के अनुसार भारत का विभाजन कर दो अधिराज्यों इण्डिया और पकिस्तान की स्थापना की गयी थी तथा इसमें यह प्रावधान किया गया था कि देशी रियासतें अपनी इच्छा से इन दोनों में से किसी भी अधिराज्य में शामिल होने अथवा किसी में भी शामिल न होकर स्वतंत्र अस्तित्व बनाये रखने के लिए स्वतंत्र हैं। इसके कारण देशी रियासतों के नवाब एवं महाराजाओं ने आजादी के सपने देखने लगे। उस समय 562 देशी रियासतें थीं। इनके भारतीय संघ में विलय के बिना अखंड एवं सम्पूर्ण भारत का सपना पूरा नहीं हो सकता था।. ऐसे में सरदार पटेल ने अपनी सूझबूझ, कूटनीतिक कुशलता से अधिकांश देशी रियोसतों को विना किसी खुनी क्रांति के भारत में विलय के लिए सहमत कर लिया। हैदराबाद, जूनागढ़ और जम्मूकश्मीर का प्रकरण जटिल बना रहा। जिसमें हैदराबाद को पुलिस कार्यवाही के द्वारा और जूनागढ़ को जनमत संग्रह के द्वारा भारत में मिला लिया गया। जम्मू एवं कश्मीर की स्थिति अनेक कारणों से भिन्न थी. कश्मीर का प्रकरण प्रधानमन्त्री स्वयम देख रहे थे. हालाँकि पाकिस्तान के आक्रमण के पश्चात् वहां के राजा की सहमति से जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय हो गया किन्तु युद्ध विराम के पश्चात लगभग 32000वर्ग मील क्षेत्रफल अभी भी पकिस्तान के कब्जे में बना हुआ है। सरदार पटेल जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह कराने एवं इस प्रकरण को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने के पक्ष में नहीं थे। भारत के एकीकरण के उनके योगदान के कारण ही उन्हें लौहपुरुष कहा जाता है। उन्हें भारत का बिस्मार्क भी कहा जाता है। किन्तु कुछ इतिहासकारों का मानना है कि सरदार पटेल के सामने बिस्मार्क कुछ भी नहीं था क्योंकि बिस्मार्क ने जर्मनी का एकीकरण खूनी क्रांति के बल पर कर पाया था जबकि सरदार पटेल ने वही काम बिना खून बहाए अल्प समय में कर दिखाया।
सरदार पटेल और नेहरु के सम्बन्ध- आजादी के बाद कई ऐसे प्रकरण आए जिसमें नेहरु और सरदार पटेल के बीच मतभेद उजागर हुए किन्तु यह मतभेद दोनों की कार्यप्रणाली को लेकर था। जवाहर लाल नेहरु सम्भवतः रोक-टोक पसंद नहीं करते थे और सरदार पटेल, किसी काम को यथार्थ रूप में जाने बिना आगे नहीं बढाते थे। हालाँकि वे महात्मा गाँधी की इच्छा का सम्मान करते हुए आजीवन सरकार में बने रहे। .
महात्मा गाँधी की हत्या और सरदार पटेल का क्षुब्ध होना- 30 जनवरी 1948 को महात्मा गाँधी की हत्या हो गयी इसे सरदार वल्लभ भाई पटेल ने ह्रदय से लिया। वे उस समय भारत के गृहमंत्री थे। कदाचित महात्मा गाँधी की हत्या ने उन्हें अत्यधिक क्षुब्ध किया और इसके बाद वह बीमार भी रहने लगे। बीमारी के चलते 15 दिसंबर 1950 को 75 वर्ष की अवस्था में मुम्बई(उस समय बाम्बे) में भारत के एकीकरण का महान नायक अस्ताचल में समा गया।
सरदार पटेल का सम्मान-
भारत सरकार ने सन 1991 में उन्हें मरणोपरान्त "भारतरत्न" सम्मान से नवाजा।यह भी हतप्रभ करता है कि अखंड भारत का नक्शा बनाने वाले महापुरुष को भारत रत्न देने में इतना अधिक समय लगा। देश भर में उनके नाम से कई संस्थानों का नामकरण किया गया है। सरदार पटेल के 137वीं जयंती के अवसर पर भारत सरकार द्वारा गुजरात में सरदार सरोवर बाँध के सामने 3.2 किलोमीटर दूरी पर नर्मदा नदी के बीचोंबीच स्थित एक टापू साधूबेट पर उनका स्मारक बनाया गया है। जिसकी कुल ऊंचाई "स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी" से लगभग दुगुनी है।इसकी ऊंचाई 182 मीटर है। इसे "एकता की मूर्ति" अर्थात "स्टेचू ऑफ़ यूनिटी" के नाम से जाना जाता है।सरदार वल्लभ भाई पटेल के जन्मदिन को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
भारत सरकार ने सन 1991 में उन्हें मरणोपरान्त "भारतरत्न" सम्मान से नवाजा।यह भी हतप्रभ करता है कि अखंड भारत का नक्शा बनाने वाले महापुरुष को भारत रत्न देने में इतना अधिक समय लगा। देश भर में उनके नाम से कई संस्थानों का नामकरण किया गया है। सरदार पटेल के 137वीं जयंती के अवसर पर भारत सरकार द्वारा गुजरात में सरदार सरोवर बाँध के सामने 3.2 किलोमीटर दूरी पर नर्मदा नदी के बीचोंबीच स्थित एक टापू साधूबेट पर उनका स्मारक बनाया गया है। जिसकी कुल ऊंचाई "स्टेचू ऑफ़ लिबर्टी" से लगभग दुगुनी है।इसकी ऊंचाई 182 मीटर है। इसे "एकता की मूर्ति" अर्थात "स्टेचू ऑफ़ यूनिटी" के नाम से जाना जाता है।सरदार वल्लभ भाई पटेल के जन्मदिन को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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5 टिप्पणियां:
बहुत ही अच्छा आलेख सर ,अच्छी जानकरी
Ati uttam
Lauh purush
काफी विस्तार से लिखा है, बहुत सारी जानकारी समाहित की गई है। बहुत ही शानदार पोस्ट है धन्यवाद।
बहुत सटीक जीवन परिचय
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