नारी
एक बिटिया है वो ,एक मां है वो
बाबा की लाडली है वो
भाई की प्यारी सी परी है वो
पर समाज के लिए है सिर्फ वो एक नारी,
एक नन्ही सी पौध ,जिसे पनपने से पहले ही
कुचल देते हैं वो अपने पैरो तले।
ये मत कर,यहां मत जा, पढ़ कर क्या कर लेगी
ये कहकर हर बार पैरों में बेड़ियां
बांध दी जाती है नारी की,
एक कैद परिंदे सी जिंदगी
बना दी जाती है नारी की।
लोग क्या कहेंगे ये सोचकर हर बार
कदम पीछे कर लेती है वो
चाहे कितनी भी सच्ची क्यों ना हो
पर समाज के सामने नजरें झुकाकर चलती है वो।
हर बार उसे ही झुकना पड़ता है
गलत ना होकर भी बदनामी का
दाग़ उसे ही सहना पड़ता है।
क्यों हर बार उसके दामन पर
कीचड़ उछाला जाता है
क्यों हर बार उसे कटघरे में
लाकर खड़ा कर दिया जाता है।
क्यों हर बार अपनी पवित्रता का
सबूत उसे देना पड़ता है
क्यों हर बार अग्नि परीक्षा से
उसे ही गुजरना पड़ता है।
क्यों हर बार समाज ये भूल जाता है कि
सन् सत्तावन में चमकी वो तलवार थी एक नारी की
महाभारत का युद्ध जिसने रच डाला
वो भी एक नारी थी।
बस इतना कहना चाहती हूं मैं उन लोगो को
कि अबला न समझना तुम कभी नारी को
क्योंकि रावण जैसे बलशाली की
संहारक भी एक नारी थी।
अब खुद को अबला ना समझे कोई भी नारी
समाज की बेड़ियां तोड़ अब आगे बढ़े नारी।
अब समाज को ये समझना होगा
नारी के प्रति अपने नजरिए को
अब उन्हें बदलना होगा।
वैसे तो मन्दिर में जा जाकर
देवी को पूजा करते है लोग
फिर क्यों वो नारी का
सम्मान नहीं किया करते हैं।
जिस दिन नारी का सम्मान करना सीख जायेंगे हम
सही मायने में उस दिन महान बन जाएंगे हम।
● नेहा त्रिपाठी
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