रविवार, अगस्त 02, 2020

मन की गोद में (कविता)

मन की गोद में 

- रजनीश हिंदी(प्रतिष्ठा)



आशाएँ टिकाए, मन गड़ाए वह बूढ़ी

  अपने चुटपुट सामानों पर

कुछ मिठाईयाँ,कुछ रसद

  कुछ पूजन सामग्रियाँ.........

एक ही बोरी में बिछी थीं

  ये मनमोहक आकृतियाँ.........

ले लो कुछ सँभाले, तरासे मीठी नाजुक

  स्वादमूल अशर्फियाँ.........

धनिकों सुनते हो ये

  सब सिसकियाँ..........

आदि प्रातः से ग्रीव व्यस्त किये

  आशाएँ टँगाए हूँ

कलयुगी मानव सुनते हो

 मूल वस्तुएँ, रंजित वस्तुएँ

  चाहो तो लेलो, ले लो।

 आधुनिक रंगों से रँगी वस्तुएँ

  नहीं बेचती हूँ

 सुन ले हृत अर्जियाँ.........

  न रसायन का लेप,

 और ना ही कच्ची सामग्रियाँ

  मैं बेचती हूँ हृत व्यंजित राशियाँ.........

सत्यता और शुद्धता की माप से

  स्वयं बुनाती हूँ, मन चलाती हूँ

बेचती हूँ मैं, मन-मोतियाँ

   हाँ-हाँ बेचती हूँ मन-मोतियाँ..........

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