राष्ट्र की सीमा पर देखकर विप्लव,
भरकर सभी के रगों में अब चेतना
नव।
गूंजने लगा है राष्ट्र का नव नव
स्वर,
नमन! शत-शत नमन! हे! बलिदानी अमर!
हमारे सैनिक सभी हैं सीमाओं पर डटे,
फिर हम क्यों नागरिक कर्तव्य से
हटें।
देकर योग्य योगदान यदि सर्वस्व
समर्पण,
विजयी होंगे हम, विजय ही है हमारा प्रण।
क्या हम तुच्छ वस्तुओं के मोह बंधन में?
क्यों न ठुकरा दें,वीरमाताओं के क्रंदन में।
ले संकल्प-शपथ,नवविचार का अभ्युदय,
जीत, जीत व केवल जीत का होगा निश्चय।
दूषित दृष्टि से हर बार अवलोकता व्याल!
साम्राज्य विस्तार का है उसका
ख्याल।
मीततायी के रस्म में निकालता वह
खंजर,
देखना है कलुषता, सीना उसका चीरकर।
राष्ट्रहित विरुद्ध व्यवसाय हम नहीं करेंगे,
पराजित करने का सर्वस्व उपाय
करेंगे।
दिखला देंगे उसको हम सीना चौड़ाकर,
भागने पर विवश होगा वह रण छोड़कर।
किसान, श्रमिक सभी मिलजुल श्रम करें,
और सभी जन हँसते-हँसते परिश्रम
करें।
इतिहास याद रखे यह अभिनव अनुभव,
वीरोचित उत्साह का हो अविरल
उद्भव।
हमारी संस्कृति में पहले न हम उत्तर देते हैं,
युद्ध का किन्तु वीरोचित
प्रत्युत्तर ही देते हैं।
बासठ के भारत को वह कर दे विस्मरण,
अबकी लिखेंगे हम एक कठिन संस्मरण।
भारत ने जिससे मित्रता का हाथ बढ़ाया,
व्यवसाय जगत में भी भागीदार
बनाया।
उससे ही निभाया जाता नहीं है
नेहबंधन,
उसके मुख से भी निकलेअब करुण
क्रंदन।
विश्वासघात ही है हथियार सदा से उसका,
अनुगामी बतलाता है वह खूनी पथ का।
और हमारे भीतर है जो शोणित अविरल,
हरेक बूँद बनेगा उसकी मौत का गरल।
उकसा क्रोध वह युद्ध का आगाज करता,
मैत्री भाव त्याग तैयार युद्ध साज
करता।
तब हम भी उसे सीख दें उस पर
प्रहार कर,
दुश्मन का दुश्मन की भाषा में संहार कर।
(मौलिक एवं स्वरचित)
दिनांक:- 18/06/2020
©सुरेन्द्र
कुमार पटेल
ब्योहारी,
जिला-शहडोल
(मध्यप्रदेश)
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5 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर रचना,
कर्तव्य पथ की सुंदर प्रेरणा
आत्मिक धन्यवाद।
आत्मिक आभार। ऐसे ही स्नेह-आशीष बनाये रखियेगा।
सुन्दर सृजन आदरणीय श्री
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