आनंद के फूल
- रजनीश हिंदी(प्रतिष्ठा)
फूल-फूल जब मन में उगते
तन पूरा-पूरा यह कहते
राग-रस का स्वाद बड़ा
मधु सम मीठा-मीठा लगता है
श्रृंगार भली सी प्रेम धीरे-धीरे सुलगता है।
उत्सव और उमंगों की होली
खुलते-मिलते प्रीति की झोली
अनुराग रीति की पहल, यौवन का मधुरतम महल
हर्षोहर्ष बरसाते हैं
जीवन को मोहित,मस्त और शिघित कर
यौवन को लहराते हैं।
गेहूँ की बाली सम,
लचकते,बिखरते यौवन रंग
गति प्रचण्ड, अनुराग सुगंध
प्रीति का शीतल अनुलेपन
मन को मस्त उपजाता
बूँद-बूँद आनंद कण मन में भरता जाता।
हाल बुरा अब होने लगता
मन में यौवन सोने लगता
मानो मन भी मस्त हो जाता
इक नूतन फूल संग व्यस्त वो सोता।
पग-पग,डग-डग
यौवन गीत जो बजता
अलि-पुष्प सम चित्र जो सजता
इक मीठी चुम्बन मन में उठता
फिर जीवन की प्यास है बुझता।
चित्र नूतन यौवन रंग के
भिन्न-भिन्न अनुरागों से
बिंबित होता मन मेरा
गीत खुला,यौवन खुला
केवल इक लिप्सित संग तेरा।
यौवन मेरा उभरा जाये
खिली फूल सम बिखरा जाये
सुगंध-रस ललित यौवन के
मन मेरा उसमें घुलता जाये
गीत यहाँ का, राग यहीं से
मन,यौवन-आलिंगन में रमता जाये।
और न किसी की चाह यहाँ पर
यौवन बँधता जाये राह यहीं पर
रंग-रास हो, गीत उल्लास हो
मदमस्ती की बरसात होता जाये
इक इच्छा है मेरे प्रियवर,
मेरा यौवन फिर से आये।
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