जीवन धरा- रजनीश हिंदी(प्रतिष्ठा)
अभी सभी सो रहे हैं
कभी पूर्ण सो जायेंगे कि
भस्म रह जायेंगे शेष !!
जीवन मूल्य समोन्नति की शिलालेख में
कभी खेले थे,कभी झूले थे उस आम की डालियाँ
सोते स्वप्न मे याद आई माँ की ननिहालियाँ !!
जहाँ सेतुओं के रंग,नानियों के संग
बनते हर्ष निवालों के उमंग
लग रहा था जीवन स्पन्दन !!
पूर्णरात्रि के पहर में
जन सब सो रहें हैं कि
मरणासन भी सोएँगे !!
स्मृति है,स्मृति रहे
अभी सभी सो रहे हैं
कभी पूर्ण सो जायेंगे कि
भस्म रह जायेंगे शेष !
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