सोमवार, मई 18, 2020

साहित्य की साधना (कविता): मनोज कुमार

** साहित्य साधना** (कविता)

हे! नर  साहित्य  साधना  के  पथ में  अविरल चल।
साहित्य  साधना में  समाविष्ट  कर निज आत्मबल॥
शुमार कवियों ने इस साधना में जीवन को तपाया।
निज  अलौकिक  अतरंग में  परमसुख  को  पाया॥

यथार्थ की  पावन  वसुधा में  दुर्लभ  तन  पाया है।
तब  अंतस्थ में साहित्य का  अथाह वेग  समाया है॥
साहित्य साधना की एक-एक बूंद से  सिंचित कर।
इस साधना से समाज को  पल्लवित, पुष्पित कर॥

हे! नर साहित्य साधना क्रम में तन,मन अर्पण कर।
लेखनी के  स्फूर्ति से  निज पूर्वजों  का तर्पण कर॥
साहित्य  साधना के  हृदयंगम  में  निज  निष्ठा  है।
साहित्य  साधना  में  स्वयं  की   छिपी   प्रतिष्ठा  है॥


साहित्य  साधना  का   रसास्वादन  कर  प्रतिपल।
तब  जीवन   निश्चित रूप से  हो  जाएगा  सफल॥
साहित्य साधना से सकल समाज को पावन कर।
व्यक्तित्व  उन्नयन कर  स्वयं को  मनभावन  कर॥

साहित्य नव सृजन कर इस  जीवन के  समतल में।
साहित्य की धारा बनकर बह जीवन के रसतल में॥
शुमार कवियों के जीवन  गाथा का  अनुसरण कर।
उनके साहित्य सृजन के कार्य को सदा स्मरण कर॥


साहित्य सृजन में अर्थ की  तनिक न अभिलाषा हो।
कुछ  नवसृजन करने की  निज उर में  जिज्ञासा हो॥
साहित्य  साधना में निश्चय  राष्ट्र  की  भक्ति है।
तव अंतः पटल में अद्भुत सृजन  कला की शक्ति है॥

दिनकर, निराला, पंत की सुकीर्ति जग में व्याप्त है।
इस साधना  के क्रम में प्राप्त  प्रशंसा ही पर्याप्त है॥
हे! नर सुधी पाठक पुलकित हैं इस पुनीत काज से।
सब गौरवान्वित  होगें  तब लेखनी  की आवाज से॥

साहित्य अमर है, कवि को अमरत्व प्रदान करता है।
इस पावन वसुंधरा में कवि का  यश अवदान करता है॥
हे! नर पुनीत काज में रुचि  जागृत कर तन्मयता से।
तब जीवन  साहित्यमय होगा नव नूतन सृजनता से॥
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                             रचना
मनोज कुमार चंद्रवंशी (शिक्षक) संकुल खाटी
    विकासखंड पुष्पराजगढ़ जिला अनूपपुर          
                       मध्य प्रदेश

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