मंगलवार, मई 12, 2020

प्रार्थना(कविता): डी ए प्रकाश खाण्डे


स्वाभिमान से अत्याचारी,
नहीं होंगे ये वचन हमारी।
तुम एक दाता;जगत भिखारी,
एक खुदा की एक पुजारी।

कुटुम्ब कबीला ताना मारे,
और क्या तुझे बताऊँ।
आगे की क्या कथा लिखूं,
पाछे की क्या व्यथा सुनाऊँ।
तन में बसकर मन में रमजा,
एक नहीं सौ अरज हमारी।
एक खुदा की एक पुजारी,
जब तक जीऊ कसम तुम्हारी।।

तेरा तन;तेरा है वतन,
तेरा मंदिर मस्जिद है।
तुम देखा मैं अनदेखा,
मेरे अंदर भी जिद है।।
केश-वेश जब होवे श्वेत,
लिख कर खत पहुंचाया।।
मेरा खत तू बांच न पाया,
जीवन को मैं दांव लगाया।।
मेरा दांव न जीत पाया
कैसे तुम हो जुवारी।।
एक खुदा की एक पुजारी,
जब तक जीऊं कसम तुम्हारी।।

परिश्रम करना काम मेरा,
जीवन में सतकाम तेरा है।।
आशा पथ पर नाम तेरा,
बिगड़ी बनाना काम तेरा है।।
यह काया तुम हमको दिया,
अब.अच्छी शिक्षा दूँ सबको।।
दया धर्म तुम मुझको दिया,
बदले में क्या दूँ तुमको।।
पाप-पुण्य सब तुझको अर्पण,
अब क्या दूँ त्रिपुरारी।।
एक खुदा की एक पुजारी,
जब तक जीऊं कसम तुम्हारी।।

रचना:डी ए प्रकाश खाण्डे

  

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