मैं बकरी हूँ
बच्चे जन्मती हूँ
बच्चे बड़े होते हैं
फिर बेचे जाते हैं
बच्चा काटा जाता है
बच्ची पोषी जाती है
काटना और पोषना
दोनों स्वार्थ से कसी होती हैं
यह मेरे जीवन का कैसा क्रम है?
मैं पेट भर अपने बच्चों को
स्नेहल भी नहीं खिला पाती
मैं भी कैसी अभागिन माँ हूँ
कहीं न कहीं मेरा बच्चा काटा तो जायेगा
उसी समय मेरा हृदय विदीर्ण हो जायेगा
सच! मैं अपने को कोसने लगती हूँ
पर यह समझकर संतोष धरती हूँ
कि सेवा करने वाले ने
अपनी पूँजी को गति दी है
उसने मेरे बच्चों को बेचकर
अपनी खुशियों में चार चाँद लगा दी है
मुझे ख़ुशी होती है
और थोडा दुःख भी
मैं सदैव दुःख और सुख की
घड़ियों में बंधकर
जीती रहती हूँ।
काव्य रचना:रजनीश
ग्राम+पोस्ट-झारा, तहसील-सरई, जिला-सिंगरौली (मध्यप्रदेश)
................................................................................................................
[इस ब्लॉग में प्रकाशित रचनाएँ नियमित रूप से अपने व्हाट्सएप पर प्राप्त करने के लिए "यहां क्लिक करें" तथा ब्लॉग के संबंध में अपनी राय व्यक्त करने हेतु कृपया यहाँ क्लिक करें। कृपया अपनी रचनाएं हमें whatsapp नंबर 8982161035 या ईमेल आई डी akbs980@gmail.com पर भेजें,देखें नियमावली ]
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें