आनंद के घर में
-रजनीश (हिन्दी प्रतिष्ठा )
कितना,अच्छा होताजब गूँगे बातें करते
अंधे देखने लगते
लँगड़े चलने लगते
तो सच, सब सजीव लगता।
कितना आनंद आता
जब तितिलियाँ हमसे बातें करते
हवाएँ हमसे अठखेलियाँ करते
आँखों से खुषियों की बरसात होती
खेतों से मिट्टी चलकर हमारे द्वार आते
सुरमयी संगीत बजते
तो सच, आनंद ही आनंद प्रस्फुटित होता।
जब रंग-बिरंगे फूल हमसे बातें करते
और हमसे गले मिलाते
नदियों की कल-कल मधुर धुन
हमारे हृदय में घर बना लेते
बसंत और सावन दोनों एक साथ आते
कोयल और मयूरों की षीतल सुर चारों ओर बिखरती
तो सच,यह जीवन स्पंदित होने लगता।
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