उस पवि़त्र दिवस को याद कर आज भी मस्तक विनम्रता से झुक जाता है। ईश्वरीय कृपा इस दुनिया में है या नहीं इसकी अवधारणा स्पष्ट न होने पर भी हृदय किसी अदृश्य, शाश्वत और सर्वोच्च शक्ति को याद कर कृतज्ञता के भाव से भर जाता है। उस एक दिवस ने मुझे जगत प्रसिद्व कर दिया। और तो और, जिस ‘‘सामाजिक‘‘ होने के लिए लोग न जाने किस-किसके दर ठोंकरे खाते रहते हैं घर बैठे ही मैं सामाजिक हो गया! सोशल मीडिया पर मेरा उस रोज खाता खुला था। उसके पहले तक मैं वैसे ही सर्व सभ्य समाज से अलग प्राणी समझाा जाता था जैसे आपके ही जान-पहचान में हो रहे शादी-ब्याह के कार्यक्रम में सभी को पूछा गया हो पर आपको जानबूझकर छोड़ दिया गया हो। सच कहूं तो उस रोज मेरा नया अवतार हुआ था। न जाने क्यों लोग उस रोज को हैप्पी नया अवतार नहीं मनाते! आपको विश्वास नहीं होगा, उस रोज से मैंने घर से रहा सही निकलना भी बन्द कर दिया। ऐसा क्यों? इसे आगे बताते हैं।
मैंने देखा, क्यों लोग इस प्लेटफाॅर्म को सोशलमीडिया कहते हैं। इस प्लेटफार्म में लोगों के व्यवहार का पूरा हिसाब-किताब रहता है। आपने कोई पोस्ट डाला, किस-किस ने लाइक किया, कमेंट किया इसका लेखा-जोखा रहता है। इसमें ऐसा नहीं होता कि व्यवहार देने वाले का नाम लिखने के लिए किसी और को बैठाना पड़े! बस क्या था, मैंने भी व्यवहार अदा करना सीख लिया। एक बार तो ऐसा हो गया। किसी मित्र ने अपने पिता के स्वर्गवासी होने की सूचना पोस्ट कर दी। मैंने देखा, उसने मेरे पिछले पोस्ट पर लाइक किया था, मैने भी ससम्मान उसके इस पोस्ट पर लाइक कर दिया। आपने भी देखा होगा, ऐसे पोस्टों पर भी लोगों के लाइक आ ही जाते हैं!
आपको उस आनन्द की अनुभूति बयां नहीं कर सकते जब पहली बार किसी ने फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजा था। परन्तु जैसा कि खाने-पीने के व्यवहार में होता है कोई खाने को बोले और आप लार टपकाते हाॅं कह दो तो लोग आपको जंगली, भूखा और असभ्य समझेंगे, ऐसा मानते हुए आप हाॅं नहीं कहते, भले मारे भूख के प्राण निकल रहे हों! वैसा ही कुछ फ्रंेड रिक्वेस्ट आने पर करना होता है। मैंने बाकायदा उसके प्रोफाइल को चेक किया, ठीक तरह से उसे जानते हुए भी कम से कम चार-पांच दिन पेंडिंग रखा। किसी अपने वरिष्ठ खाता धारक से ऐसा सीखा था कि दस-बीस फंेड रिक्वेस्ट पेंडिंग पड़ा रहना सम्मान की बात होती है।
और, जो-जो बाल्यकाल के जान-पहचान के थे, सभी को एक-एक कर खोजने का प्रयास करने लगा और इसमें काफी सफलता भी मिली। कई-कई लोगों से जान-पहचान हुई। और तो और इस खाते से घर बैठे विदेशी लोगों से मित्रता भी हो गई। हालांकि, मित्रता का और कोई लाभ उठाने की न तो मंशा थी और न वैसी जरूरत।
जबसे सोशलमीडिया में खाता खुला, मन को मानों पर लग गए। मन हमेशा सातवें आसमान में उड़ता रहता। कभी मूड आॅफ हुआ तो लिख दिया आज कुछ अच्छा नहीं लग रहा। हाल पूछने वालों का तांता लग जाता। ऐसे शुभचिंतकों की फौज पाकर खुद को धन्य ही समझता। दिन-दिन भर हो जाते अपने घर में बात नहीं होती परन्तु समुन्दर पार कोई मित्र बैठा हो और कुछ पूछा हो तो एक के बजाय चार-छः उत्तर भेज दिए जाते। राजनीति के शिक्षकों ने बच्चों को भूमण्डलीकरण का चाहे जो अर्थ बताया हो परन्तु सोशलमीडिया प्रेमियों को यदि यह समझा दिया जाए कि घर बैठे पूरी दुनिया से मिलने का जो अवसर सोशलमीडिया के माध्यम से मिलता है उसे भी भूमण्डलीकरण कहते हैं, तो वह इसके अर्थ को कभी न भूलें! तो अब तक आप समझ ही गए होंगे, पूरी दुनिया मुट्ठी में कैद हो चुकी थी।
मित्रता सूची जैसे-जैसे बढ़ती गई मन फूलकर कुप्पा होता गया। निठल्लों का स्वाभिमान जागृत करने का इससे आसान और कोई उपाय नहीं है। गाॅंव-देहात में अपनी पैठ साबित करने के लिए लोग न जाने क्या-क्या जुगत भिड़ाते हैं। किसी न किसी बहाने लोगों को खिलाने-पिलाने का जुगत करते हैं यह देखते हैं कि उसके आॅंगन में कितने लोगों ने भातभोज किया। इससे उनकी प्रतिष्ठा साबित होती है। स्वास्थ्य और शिक्षा विषय पर खर्च करने को कहेंगे तो बीसियों गरीबी दिखा दिए जाएं परन्तु भोग-भण्डारा के नाम पर बखारी खाली कर दें और चूॅं तक नहीं करेंगे! शक्ति परीक्षण में बहुमत जो साबित करना होता है। लेकिन सोशलमीडिया में इतना खर्च समेटने की जरूरत नहीं पड़ती। एक खाता खोलें और उसकी मित्रता सूची को अधिकतम क्षमता तक पहुंचा देना है बस! फिर जब कोई आपके जान-पहचान का व्यक्ति आपको अपनी मित्रता सूची में जोड़ना चाहेगा तो खुद ब खुद उसे पता लग जाएगा कि आपकी मित्रता सूची पूरी हो चुकी है! सोशलमीडिया पर आपकी असाधारण पकड़ देखकर वह दांतों तले उंगली दबाए बिना नहीं रहेगा।
इसी असाधारण महानता को प्राप्त करने के बाद मैं खुद को महान समझने लगा। लोग सामने मिलें तो चाहे आपको देखकर ही दूसरी ओर मुंह कर लें परन्तु सोशलमीडिया में वह आपको बहुत आदर देते हैं। आपके किसी पोस्ट पर चार-छः ऐसे ही कमेंट आ जाएं फिर देखिए उस रोज की आपकी गर्विल चाल! आपके कदम स्वयं ही शान से चलने लगते हैं। बस कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ। उस आभासी दुनिया का नायक था मैं। उससे बाहर निकलॅंू तो कोई पहचानता तक न था। न तो वो अदब न वो दुआ-सलाम! सौ मैंने तय कर लिया कि इसी आभासी दुनिया में मगन रहना है। कम से कम यहां एक पहचान है। पहचान का प्रमाण है। रिकाॅर्ड है। बाहरी दुनिया में आपको लाखों पसन्द करते हों। आपकी दीर्घायु के लिए मन्नतें मांगते हों परन्तु उसका प्रमाण यहीं से दिया जाएगा। आपकी लोकप्रियता सोशलमीडिया पर आपके फाॅलोवर्स से आंकी जाएगी।
एक दिन मन में एक अलग ढंग का प्रश्न उभरा। हरेक इंसान मरने के लिए पैदा हुआ है। और इसीलिए हरेक इंसान में यह आम प्रश्न पैदा होता है कि मेरे मरने के बाद लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे? यही प्रश्न मेरे मन में भी उभरा। हालांकि ऐसा संभव नहीं है कि मरकर इसे जांचा जा सकता है। इसका पहला कारण तो यह है कि मरने के बाद पुनः जीवन धारण संभव नहीं है और दूसरा यह कि यदि हम मरकर जीवन धारण कर भी लें तो मरे हुए स्थिति में कैसे देखेंगे कि लोग मेरे मरने पर कैसा सोचते हैं। और तीसरा यह कि यदि लोगों को पता हो कि मरकर जिया भी जा सकता है तो लोग वास्तविक विचार रखेंगे ही नहीं। परन्तु सोशलमीडिया के साथ ऐसा करना संभव है। तो मैंने लिखा- मैं कुछ दिनों बाद सोशलमीडिया छोड़ने वाला हॅूू! और मैंने देखा, मेरे हर पोस्ट पर कमेंट करने वाले कुछ आदतन साथियों के अलावा किसी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया! मुझे लगा शायद लोग इसे मजाक समझते हों। उन्हें भरोसा ही न हो कि मैं सचमुच सोशलमीडिया छोड़ने वाला हॅू। मैंने सचमुच एक दिन अपना सोशलमीडिया एकाउन्ट डिएक्टीवेट कर दिया। उस रोज से हर रोज एक कुलबुली-सी होती, शायद कोई फोन कर कहेगा- आपने सोशलमीडिया क्यों छोंड़ दिया? पर हद हो गई हफता बीत गया, महीना बीत गया। सब अपने रोजमर्रा के काम में व्यस्त किसी ने पूछा तक नहीं। फिर एक दिन खुद ही पुनः अपने पुराने खाते को चालू कर लिया। इंतजार में था कि कोई पूछेगा- आपने सोशलमीडिया एकाउन्ट डिएक्टीवेट क्यों किया था। पर किसी ने न पूछा। अपने आॅंसू खूद ही पोछने पड़े। तब से इस आभासी दुनिया और आभासी दुनिया के मित्रों से भरोसा ही उठ गया है। दोस्ती अब भी है पर वैसा ही है जैसा कि एक लेखक ने अपने लेख में लिखा है- छल का धृतराष्ट्र जब आलिंगन करे तो पुतला ही आगे बढ़ाना चाहिए। मेरे आभासी मित्र कुछ ऐसे ही लगे। हालांकि मेरे मन को राहत है क्योंकि हाल ही में मेरे इस पैटर्न को एक अदद माननीय ने अपनाया है। उसने घोषणा की है वह सोशलमीडिया के खाते बंद करने का सोच रहे हैं। मेरा विश्वास है उनका अगला पैटर्न मेरे जैसा ही होगा!
-सुरेन्द्र कुमार पटेल
1 टिप्पणी:
पढ़ कर मजा आ गया सर।
सच में यह सोशल मीडिया की दुनिया एक छल के धृतराष्ट्र से बढ़कर कुछ नहीं है।
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