बुधवार, फ़रवरी 08, 2023

मजदूर : रजनीश की कविता

👏मजदूर👏
मैं मजदूर हूँ
पसीने से ही मन महकाता हूँ
कुछ पैसों से ही, अपना चूल्हा सुलगाता हूँ
कुछ पैसे अपनी संगी के हाथों थमाता हूँ।
बच्चों वास्ते कुछ मिठगोलियाँ ले जाता हूँ
तो कुछ पैसे अपने औलादों के लिए जमा करता हूँ
सच, ऐसा है मेरा परमानंद।

महलों के फूलों से
मेरे कुटियों के बेल
ज्यादा लदे हैं
उनमें मानवता की शीतल महक है
और न खत्म होने वाली हरियाली भी

मैं मजदूर हूँ
दिनभर कर्मरत होकर धूलों के संग
खेलना मेरी आदत-सी हो गई है

दूसरों के कामों को ओढ़ना मेरी साधना है
मुझे कभी ठेला चलाना होता है
तो कभी सड़कों में झाड़ू भी लगानी होती है
हाँ,हाँ, मैं मजदूर हूँ
दो जून की रोटी संतोष और आनंद के साथ खाने वाला "दिलेर" मजदूर हूँ।
नवगीत गाने वाला मजदूर हूँ
संगीत बुनाने वाला मजदूर हूँ। 
हाँ, मैं मजदूर हूँ।
🖊️रजनीश

1 टिप्पणी:

Er. Pradeip ने कहा…

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