गुरुवार, जुलाई 01, 2021

बघेली पर्यावरण गीत: अशोक त्रिपाठी 'माधव' BAGHELI PARYAWARAN GEET



बघेली पर्यावरण गीत
हेरे मिलै नहिं पीपर बहेरा

मनई के जीबन मा होइगा अँधेरा
हेरे मिलै नहिं अब पीपर बहेरा

न आमा बगैचा न तेंदू न महुआ
नहीं अब खरहरी न हर्रा न कहुआ।
न चिरई चनूँगुन के खोंथइला बसेरा।
हेरे मिलै नहिं अब पीपर बहेरा।

न सालैं न गुँइजा न छुइला न सगमन।
जामुन खम्हार नहीं न बीही न सहिजन।
करौंदा बरारी अउ न बइरि मिलै हेरा।
हेरे मिलै नहिं अब पीपर बहेरा।

सीसम न नीलगिर सेमर न खैरा।
कैथा न इमली बेल सेहेरुआ सजैरा।
न चंदन चचेंड़ा न चिरुल चार चेरा। 
हेरे मिलै नहिं अब पीपर बहेरा।

सताबर पसारन न गुरिज अस्सगंधा।
पेंड़ काट मनई बनाय लिहिस धंधा।
बेंचि-बेंचि पेंड़न का बनाये है डेरा।
हेरे मिलै नहिं अब पीपर बहेरा।

एहिन के कारण आजु बगरा प्रदूषन।
हेरत फिरैं सब आजु शुद्ध आक्सीजन।
मरा रोइ-रोइ चाहे मूड़ का कचेरा।
हेरे मिलै नहिं अब पीपर बहेरा।

अबहूँ भरे भरे मा चेता बिरछा लगाबा।
नाहक मा देखा खुद के नास ना कराबा।
पइहा न हेरे कहौं जंगल-पतेरा।
हेरे मिलै नहिं अब पीपर बहेरा।

प्रकृति के कहर का माधव समझा न रोग हो।
मनई के तन पा के रचा न कुजोग हो।
अबहूँ भरे मा जागा करा न अबेरा।
हेरे मिलै नहिं अब पीपर बहेरा।

अशोक त्रिपाठी "माधव"
   शहडोल मध्यप्रदेश
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1 टिप्पणी:

Satish Kumar Soni ने कहा…

अद्भुत शब्दों का संगम।

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