गुरुवार, जुलाई 02, 2020

श्रृंगार (कविता): बी.एस. कुशराम

रचनाकार--बी०एस०कुशराम बड़ी तुम्मी
जिला अनूपपुर 
(मध्यप्रदेश)
विषय--श्रंगार
विधा--कविता
   🌲श्रंगार🌲
श्रृंगार है अलंकार है,बहार ही बहार है।
अठारह बरस की नवेली,अद्भुत की श्रृंगार है।।
   पांव महावर चक्षु में कजरा, होठों लाली बालों में गजरा,
   चपल चंचल चटकीले चक्षु,लागे जस कटार है।
   श्रृंगार है अलंकार है---------
मांग सिंदूर माथे बिंदिया,रातों की ये उड़ाए निंदिया,
छुनुर-छुनुरछनन-छनन, ये पायल की झंकार है।
श्रृंगार है अलंकार है--------
   कानों में कुंडल नाक में नथनी लगे सुहावन कटी करधनी
   भृकुटि की सजावट ऐसा, कि लागे द्वै तलवार है।
   श्रृंगार है अलंकार है--------
स्वेत दंत जब खिल खिलाए,दर्शकों के मन को भाए,
मधुर मधुर मुस्कुराहट,याद आता बार-बार है।
श्रृंगार है अलंकार है----------
   इसे मैं नाम दूं पिकबयनी, और कहूं मृगनयनी,
   स्नेहिल भाव युक्त,रचना रचा करतार है।
   श्रृंगार है अलंकार है---------
कुशराम फिदा संसार है,यह लाजवंती नार है,
सबसे बढ़कर लज्जा ही,नारी का श्रृंगार है।।
श्रृंगार है अलंकार है,बहार ही बहार है।
अठारह बरस की नवेली,अद्भुत की श्रृंगार है।।
दिनांक 02/07/2020
    बी०एस०कुशराम बड़ी तुम्मी
   जिला अनूपपुर (मध्य प्रदेश)
मो०-9669334330,7828095047

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