पावस का आगमन
धरा पर नाचने लगे जब
तेज तपन
लौ-लपट का पहनकर
आभासी वसन
पवन बिछाने लगे जब पावक-सा शयन
धरा पर तब होता है पावस का आगमन।
सागर हिय मिलने धरा से जाये मचल
कहने भाव सागरजल जब जाये उछल
तापांतर का वेग सह नहीं
पाता गगन
धरा पर तब होता है पावस का आगमन।
कृषकों का देह गिरने लगे बनकर तरल
तपन बन जाये जब जीवों के लिए गरल
मुरझाने लगें जब धरा के श्रृंगार वन-सुमन
धरा पर तब होता है पावस का आगमन।
बीज नवांकुर बनने हो जाएँ जब विकल
पौध-प्रसूता लालायित हो जब धरा सकल
लौटाना हो जब प्रकृति को धरा का यौवन
धरा पर तब होता है पावस का आगमन।
करने भीषण ग्रीष्म का वीभत्स रूप हरण
हर जीर्णता धरा का पहनाने हरित वसन
रखना हो मोर, पपीहा और दादुर का मन
धरा पर तब होता है पावस का आगमन।
(सर्वाधिकार सुरक्षित,मौलिक एवं स्वरचित)
©सुरेन्द्र कुमार पटेल
ब्योहारी, जिला-शहडोल (मध्यप्रदेश)
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1 टिप्पणी:
Nice line
बहुत सुंदर पंक्तियां , कवि की सोच बहुत अच्छी
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