सावन में आग लगी (सवैया)
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भोर भयो जब आँख खुली तब,
काग फिरे चंहु व्याकुल बोला |
सावन में अब आग लगी जब,
सांझ सकार सबै पट खोला ||
खेत किसान खिझाय रहे सब,
दूभर होगय भातन रोटी |
नागर पाथर दूर भयो अब,
जेखर भैसन तेखर लाठी ||
सावन में जब आग लगी तब,
मीन जरै सब राख लगायो |
वारि तरुवर खूब हँसै सब,
जीव धरा पर टेर लगायो ||
सोंच विचार करो पढ़ने सब,
भूख पियास सबै मिट जायो |
कौन गरीब अमीर भयो अब,
डीएप्रकाश सबै सुधि लायो ||
सोवत जागत बात करें सब
पावन सावन है अकुलानी |
कानन से खग भाग गयेअब
रोवत हैं सब बादर पानी ||
दादुर मोर कपोत सबै मिलि
जीव चराचर लाज बचावें |
सावन मे दुख भोग रहें सब
प्रकाश विलोकि आग बुझावे ||
मैं डी.ए.प्रकाश खाण्डे घोषणा करता हूँ की उक्त रचना मेरी मौलिक है |
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