"आह्वान"
हे! धीर, वीर, साहसी,
माँ भारती पुकारती।
प्रतिकार का शुभ मुहूर्त
वतन के हस्ती प्रशस्ति॥
उठो धरा के वीर पुत्र, हृदय में दीप उद्दीप्त करो।
शत्रु ललकारता है,रगों में में नव जोश सृजन करो॥
सिर में कफन बांधकर,
रिपु का शक्ति दमन करो।
कर्तव्य मार्ग में अटल,
सरहद में सदा डटे रहो॥
स्व पुण्य का काज है, उदधि की प्रवाह में बहो।
रणधीर, वीर, पराक्रमी, माँ भारती की जय कहो॥
हिंद वीरों की भूमि है,
प्राणों का आहुति दिये।
निज वतन के सेवार्थ,
फांसी के फंदे में लटक गए॥
रुको न शूर वीर जवान, शत्रु की शक्ति क्षीण करो।
अरि के हौसले दफन कर, सरहद में शमशान गढ़ो॥
उजड़े हिंद के चमन में,
फिर से गुल खिला दो।
लहू से सिंचित कर,
वीरों का बसंत ला दो॥
हिंद की समर भूमि में, विजय का शंखनाद कर दो।
कंपित हो उठे मन में, शत्रु को नतमस्तक कर दो॥
विश्रांति की घड़ी नहीं,
वतन के नवोदित शान हो।
मातृभूमि के वीर सपूत,
हिंद का विजय गान हो॥
मुखरित होकर वीरों, माँ भारती की दामन थाम लो।
नित विजय के पथ में, संकल्प का गांठ बांध लो॥
स्वधर्म में अडिग रहो,
प्रश्न है देश स्वाभिमान का।
अनंत, खुशी, कीर्तिंयाँ,
इतिहास साक्षी कुर्बान का॥
हिमाद्रि से ससेर कांगरी तक, दुश्मन लगायें घात हैं।
उन्मुख रहो रिपु दमन में,जब तक हृदय में श्वास है॥
रचना✍
मौलिक एवं स्वरचित
मनोज कुमार चंद्रवंशी बेलगवाँ
पुष्पराजगढ़ जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश
रचना दिनाँक - २४|०६|२०२०
हे! धीर, वीर, साहसी,
माँ भारती पुकारती।
प्रतिकार का शुभ मुहूर्त
वतन के हस्ती प्रशस्ति॥
उठो धरा के वीर पुत्र, हृदय में दीप उद्दीप्त करो।
शत्रु ललकारता है,रगों में में नव जोश सृजन करो॥
सिर में कफन बांधकर,
रिपु का शक्ति दमन करो।
कर्तव्य मार्ग में अटल,
सरहद में सदा डटे रहो॥
स्व पुण्य का काज है, उदधि की प्रवाह में बहो।
रणधीर, वीर, पराक्रमी, माँ भारती की जय कहो॥
हिंद वीरों की भूमि है,
प्राणों का आहुति दिये।
निज वतन के सेवार्थ,
फांसी के फंदे में लटक गए॥
रुको न शूर वीर जवान, शत्रु की शक्ति क्षीण करो।
अरि के हौसले दफन कर, सरहद में शमशान गढ़ो॥
उजड़े हिंद के चमन में,
फिर से गुल खिला दो।
लहू से सिंचित कर,
वीरों का बसंत ला दो॥
हिंद की समर भूमि में, विजय का शंखनाद कर दो।
कंपित हो उठे मन में, शत्रु को नतमस्तक कर दो॥
विश्रांति की घड़ी नहीं,
वतन के नवोदित शान हो।
मातृभूमि के वीर सपूत,
हिंद का विजय गान हो॥
मुखरित होकर वीरों, माँ भारती की दामन थाम लो।
नित विजय के पथ में, संकल्प का गांठ बांध लो॥
स्वधर्म में अडिग रहो,
प्रश्न है देश स्वाभिमान का।
अनंत, खुशी, कीर्तिंयाँ,
इतिहास साक्षी कुर्बान का॥
हिमाद्रि से ससेर कांगरी तक, दुश्मन लगायें घात हैं।
उन्मुख रहो रिपु दमन में,जब तक हृदय में श्वास है॥
रचना✍
मौलिक एवं स्वरचित
मनोज कुमार चंद्रवंशी बेलगवाँ
पुष्पराजगढ़ जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश
रचना दिनाँक - २४|०६|२०२०
1 टिप्पणी:
मैं पढ़ कर बहुत खुश हूं
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