शनिवार, अप्रैल 25, 2020

देश पुकारता है(कविता):मनोज कुमार

देश पुकारता है


संकट का पहर है,
मातृभूमि का अपमान है l
वतन की रक्षा में,
अपनत्व का स्वाभिमान है ll

विश्रांत की घड़ी नहीं,
हे! तरुण स्व दीप्तवान हो।
बढ़े चलो, बढ़े चलो,
अरे ! साहसी तुम शक्तिमान हो ll

सुवाडि्अग्नि में जलो,
स्व पुण्य का काज है l
आदम्यऔर शौर्य का,
मुख्य इम्तिहान आज है ll

पुनीत कार्य के लिए,
रुको न वीर साहसीl
हे ! तरुण हे! तरुण,
निज जीवन है तापसीll

स्वेद है तपन का,
अधर में न निराश है l
हे! तरुण मत रुको,
अभी जीवंत की आस है ll

मुल्क की सेवा में,
अवरोध से न डरो l
त्याग समर्पण भाव से,
परमार्थ में मिट-मरो ll

जब तक है रगो में लहू,
तुम निडर रहो, निडर रहो l
श्वास चलते दम तक,
भारती की जय कहो, जय कहो ll

जीना है वतन के लिए,
घट में अटल विश्वास हो l
तुम्हारे बलिदान से,
नव किरण की आश हो ll

निज वतन के लिए,
भाव का बहाना रसधार है l
सपूत हो मातृभूमि के,
तुम्हें भारत मां से प्यार है ll

त्याग निज स्वार्थ को,
मुल्क अधीनता नही स्वीकारती l
संकट की घड़ी में,
देश हमें रक्षार्थ पुकारती ll

स्वरचित कविता🖊️मनोज कुमार चंद्रवंशी (प्राथमिक शिक्षक )ग्राम बेलगवाँ विकासखंड-पुष्पराजगढ़, जिला-अनूपपुर (मध्यप्रदेश)

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