. फिर बाद में
नित बढ़ने दो
मुसीबतों पर चढ़ने दो
गीत कोई गाकर
जीवन अपनी गढ़ने दो
ना कोई रोको मुझे
ना कोई टोको मुझे
चल रहा मैं ताल हूँ
वज्र बड़ा विशाल हूँ
सोऊँगा तनिक नहीं
लक्ष्य मुझे ख्याल है
वाणी मेरी व्याल है
कभी देश -प्रेम में
कभी प्रकृति-प्रेम में
व्यस्त मेरा जीवन्त है
क्रांति मेरा मन्त्र है
वाणी मेरी अनंत है
सुर शिथिल करूँगा
फिर बाद में ।
हाँ खिलाता हूँ सबको
हँसाता हूँ सबको
सुलाता हूँ सबको
पर सोऊँगा बाद में ।
आवाज हूँ इंकलाब का
शपथ मुक्तिगान का
मान हूँ राष्ट्रध्वज का
राष्ट्रपूजा करने दो मुझे
‘‘मान’’ लूँगा फिर बाद
में ।
सलाम मातृभूमि का
गान विजय मूल का
शत्रु-नाश करने दो
आराम लूँगा फिर बाद में।
अपने ‘‘हृदय-मित्र’’ ज्ञानचंद को
भेंट स्वरूप
जुलूस जन षैलाब का
जुनून स्वतंत्र ख़्वाब का
पथ में सदा स्थिर रहने दो
साँस लूँगा फिर बाद में ।
हाथों में खनक तलवार का
युद्ध-पार पतवार का
नित आगे बढ़ने दो
आवाजें दूँगा फिर बाद में।
कथा भूतकाल का
चित्र युद्ध विषाल का
मुझे सदैव पढ़ने दो
आँखें बंद करूंगा फिर बाद में ।
हवन स्वतंत्रता के यज्ञ का
आहुति एक तुच्छ का
स्मरण मुझको है सदा
सबका रक्षण करने दो
रक्षा लूँगा फिर बाद में।
दिख रहा गरीब का
आह! बदनसीब का
उन्हें मुझे उठाने दो
उठूँगा फिर बाद में।
कथा बड़ा विचित्र है
सौम्यता ही मित्र है
युद्ध-दास्ताँ सुनाने दो
सुनूँगा फिर बाद में।
भीड़ है संताप का
चींख है हर माथ का
तिलक क्रांति का लगाने दो
फिर मैं लगाऊँगा बाद में।
चल रही बर्बादियाँ
आज इस संसार में
सौम्यता ना दृश्टि आता
शांति के बाजार में
शांति स्थापित करने दो
शांत होऊँगा फिर बाद में ।
धीर का, वीर का
युद्ध में प्रवीण का
आज एक इम्तिहान है
‘‘बलि’’ मेरी षान है
बलि मुझे चढ़ने दो
मान लूँगा फिर बाद में
काव्य रचना:रजनीश
ग्राम+पोस्ट-झारा, तहसील-सरई, जिला-सिंगरौली (मध्यप्रदेश)
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