शनिवार, अप्रैल 04, 2020

मीम्स: सतीश सोनी

# मीम्स # 
     दुनिया में दिन-ब-दिन सोशल मीडिया के बढ़ते उपयोग ने लोगों पर बहुत गहरा प्रभाव डाला है। लोग अपने दिन भर का बहुत सारा हिस्सा इस सोशल मीडिया पर गुजार रहे हैं। जिनमें ना जाने कितनी जानकारियों के साथ अनेक मनोरंजन की सामग्रियां भी उपलब्ध हैं, यहां तक कि लोग  अपने व्यवसाय व अन्य कार्य क्षेत्र में इसका अधिकता से उपयोग कर रहे हैं। पर यह जानकारी या तथ्य जिस पर लोग आसानी से आंख मूंदकर विश्वास कर जाते हैं यह कितना सत्य है और यह हमारी सोच पर कितना गहरा प्रभाव डाल रहा है इसका आकलन करना  अत्यधिक मुश्किल है। 
किसी भी एक राजनैतिक, सामाजिक तथा व्यवहारिक घटना के होते ही चंद मिनटों बाद  उसका हास्य व्यंगात्मक रूपांतरण सामने आ जाते है जिन्हें मीम्स कहा जाता है। इन मीम्स (व्यंग्य) पर लाखों लोग अपनी प्रतिक्रिया देते हैं और यही मीम्स अनजाने में ही उनके मन मस्तिष्क पर एक गहरी छाप छोड़ जाता है। 
     सभी सोशल साइट्स पर हर दिन लाखों-करोड़ों मैसेज भेजे जाते हैं जिनमें किसी घटना का चलचित्र, छायाचित्र या ऑडियो क्लिप आदि चीजें वायरल होती हैं, और यह बनावटी काल्पनिक वायरल दृश्य हमें सच सा लगने लगता है तथा ये हमारे दिमाग को भ्रम की-सी अवस्था में लाकर सोचने पर मजबूर कर देते हैं। 
       जैसे हवा में उड़ता जादूगर, पांच मुखों वाला सर्प, आसमान पर दिखे शंकर जी और न जाने ऐसी हजार झूठी बातें जो कुछ आसान से फोटोशॉप तकनीकों के द्वारा बना लिए जाते हैं, और तो और यह भी कहा जाता है कि इसे दस ग्रुप में भेजें शाम तक अच्छी खबर मिलेगी। इसे भेजने से आपका जीवन बदल जाएगा और न जाने कहां कहाँ तमाम बातें। हम बिना सोचे समझे इनके झांसे में भी आ जाते है और इनके वायरल झूठ मैसेज को अन्य लोगों तक पहुंचाते भी है। ये सच-से लगने वाले वायरल मीम्स जिनमें सच का प्रतिशत लगभग शून्य होता है, ये व्यक्ति में व्यक्तिगत रूप से तथा सामाजिक रूप से कुप्रभावों को समाहित कर रहे होते हैं। 
        तत्कालीन घटना को लेकर हम बात करें तो विश्व जहां इस कोरोना की वैश्विक महामारी को झेल रहा है जिसमें समाज में लोगों में चारों तरफ भय व्याप्त है जिस भय का आधे से ज्यादा हिस्सा इन्हीं वायरल मीम्स के कुप्रभाव का उदाहरण है। जहां इस महामारी से सोशल डिस्टेंसिंग तथा कुछ सामान्य आसान से निर्देशों का पालन करके इससे बचा जा सकता है वहीं ये वायरल मीम्स लोगों तथा जनसाधारण में एक भय व्याप्त किए हुए हैं जिससे इस महामारी को लोगों से दूर करने में और भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। 
सोशल मीडिया के सारे प्लेटफार्म हमारे आजकल के निजी जीवन में अति आवश्यक हैं, लेकिन यह हमारे मस्तिष्क में साइकोलॉजिकल रूप से गलत प्रभाव भी डाल रहा है। जिसके लिए हमें इसके बढ़ रहे कुप्रभावों को तार्किक चिंतन के द्वारा दूर करने की आवश्यकता है। 
आलेख: सतीश कुमार सोनी 
जैतहरी जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश 

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