12 नवम्बर (1896) डॉ. सालिम अली का जन्म दिवस है, जो कि विश्वविख्यात पक्षी विशेषज्ञ थे। इन्हें भारत में "पक्षी मानव" के नाम से भी जाना जाता था। पक्षी विशेषक्ष सालिम अली के जन्म दिवस को 'भारत सरकार' ने राष्ट्रीय पक्षी दिवस घोषित किया है।
प्रस्तुत है राष्ट्रीय पक्षी दिवस के अवसर पर कुलदीप पटेल (के•डी•) की यह रचना ।
गगन के आजाद परिंदे
सुबह-शाम निशदिन एक मनोरम दृश्य देखा करते थे,आसमान में कलरव का एक वर्चस्व देखा करते थे।
चाहे खेल का मैदान हो या हो खेत-खलिहान,
गुनगुनाते गीतों का झुंड तब अवश्य देखा करते थे।
माँ देख इन्हें गौरैया, कोयल, कौवा बताया करती थी,
रात को सोते हुए लोरिया इन्हीं की सुनाया करती थी।
रूठ जाने पर तरह-तरह की आवाजें निकाला करती,
और हाथ फेर बालो में खूब प्यार जताया करती थी।
छोटे-छोटे पंखों से आँगन में फुदक-फुदक कर चलते थे,
या फिर होकर आजाद कभी नभ तक विचरण करते थे।
कभी तिनका-तिनका जोड़ रहने का बन्दोबस्त हैं करते,
तो कभी हमारे घर की चौखट के छप्पर पर ही पलते थे।
दूर कहीं सुबह से खाने की तलाश में रोज निकला करते थे,
छोड़ घर पे अपनी नन्हीं जानों कोमीलों दूर चला करते थे।
लौटते शाम को देर से झुंड में साथ सभी इकट्ठा कर भोजन,
जिसे खुद खाते और उनके बच्चे भी उसी में पला करते थे।
अब तो न कौवे की कर्कशता, न कोयल की मधुर वाणी है,
देखो नजर फेर जिधर भी इनके झुंड से ज्यादा नरप्राणी हैं।
अदृश्य हवा में जाल बिछाकर समझे कि करते गये विकास,
आपस मे जोड़ दुनिया को कब समझे कि करते गए विनाश।
बना कारखाने निज, काट रहे बने बसेरों के आधारों को,
धरती से अम्बर तक है फैला रहे घातक हथियारों को।
एक दिन कहानियों के पन्नो में ही सिमट कर रह जाएगी,
दर्द भरी व्यथा बिन कुछ कहे ही लिपट कर कह जाएगी।
एक दिन लुप्त हो जायेंगे गगन की दुनिया के आजाद परिंदे,
एक दिन लुप्त हो जायेंगे स्वरों की दुनिया के, हैं जो चुनिंदे।
घर का कोना-कोना बन रहा है आज मजबूत पत्थरों से,
एक दिन लुप्त हो जायेंगे छप्पर की दुनिया के बाज-बाशिंदे।
रचनाकार:कुलदीप पटेल (के•डी•)
कल्लेह, तहसील-जयसिंहनगर,जिला शहडोल (मध्यप्रदेश)
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1 टिप्पणी:
बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ
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